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प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश साहित्य के विलक्षण-अनुसन्धाता पं. पद्म चन्द्र शास्त्री ने आजीवन अघोषित रूप में परिग्रह परिमाण व्रत का पालन किया और अनेकान्त में समय-समय पर आगमिक, साहित्यिक, सामाजिक विसंगतियों पर करारी चोट की परन्तु उनकी बुलन्द आवाज नक्कारखाने में तूती ही सिद्ध हुई। इसे आगम, साहित्य और समाज की दृष्टि से शुभ चिन्ह नहीं कहा जा सकता। आज पण्डित जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी सशक्त लेखनी ज्वलन्त सन्दर्भो में आज भी जीवन्त और कार्यकारी है। ___ अस्तु, यदि हम अब भी सचेत न हुए तो पण्डित जी के अवदानों के प्रति हमारी कृतघ्नता ही कहलायगी। पण्डित जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी सार्थक होगी जब हम उनके द्वारा स्थापित प्रतिमानो के प्रति न्यायिक दृष्टिकोण से उन्हें मूर्त रूप देने में प्रयत्नशील हों।
प्रस्तुत है निष्कम्प दीपशिखा में डॉ. प्रेम चन्द द्वारा प्रसूत पण्डित जी की जीवनी जो उन्होंने बड़ी कठिनता से प्राप्त की थी।
- सुभाष जैन (महासचिव)