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अनेकान्त 59/3-4
और सिद्धांतों की दृष्टि से कुछ लाक्षणिक विशेषताओं को भी प्रस्तुत किया, जिनके कारण जैनकाल को एक अलग ही स्वरूप मिल गया। ___प्राचीन जैन मंदिरों के अवशेष प्रायः लुप्त हो गए हैं, सम्भवतः इसका कारण हूणों का आक्रमण है। जो अवशेष अभी बचे हुए हैं। उनका समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है, जिसके कारण वे अपना परिवर्तन कर चुके हैं। अतः अब जैन मंदिरों की प्राचीन स्थापत्य सम्बधी जानकारी प्राप्त होनी कठिन हो गई है। इस कारणवश लगभग 8वीं शताब्दी से हमें मध्यकालीन जैन मंदिरों के स्थापत्य सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। यहाँ जैन मंदिरों से तात्पर्य जैन धर्म के अनुयायियों के संरक्षण में बनवाए हुए मंदिर हैं।
राजस्थान के अधिकतर मध्यकालीन जैन मंदिर नागर शैली के हैं। राजस्थान में प्रायः सभी स्थानों पर जैन मंदिर विद्यमान हैं, लेकिन सभी मंदिरों का जैन स्थापत्य दृष्टि से अपना विशेष लक्षण नहीं है। आठवीं, नवीं तथा 10वीं शती के मंदिर साधारण हैं, जो गुप्त काल के अंतिम चरम के अनुकरण हैं। 11वीं और 12वीं शताब्दी के मंदिर एक लम्बे अनुभव और लगातार विकास का परिणाम हैं। इस समय जैन स्थापत्य शैली अपनी चरम बिन्दु पर पहुंच चुकी थी, तथा एक दो शताब्दियों तक विकसित होती रही, परन्तु ऐसा होने पर इसने अपनी पूर्णता और शुद्धता विस्मृत कर दी, जो उसने आरम्भिक समय में प्राप्त की थी। उस चरम बिन्दु पर पहुँचने के पश्चात् उसका पतन प्रारम्भ हो गया, जिसके उदाहरण हमें वर्तमान समय तक उपलब्ध है।
राजस्थान के प्रारम्भिक मध्य काल के मंदिर नष्टप्राय हो गए हैं। अवशिष्ट मंदिरों में प्रमुख पाली जिले का घानेराव तथा जोधपुर जिले का ओसियां मंदिर महत्वपूर्ण हैं।
ओसियां (प्राचीन उपकेश) राजस्थान का सबसे पुराना मध्ययुगीन कला और स्थापत्य का उदाहरण है। यहाँ आठवीं शताब्दी के मंदिर प्राचीनतम हैं। यहाँ का प्रमुख मंदिर महावीर मंदिर है, जो ओसियां के