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अनेकान्त 59 / 3-4
कभी-कभी नृत्य एवं सङ्गीत का भी समायोजन किया जाता है। पूजा एकाकी भी की जाती है और सामूहिक रूप में भी ।
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भगवान् सुपार्श्वनाथ पूजा की रचना भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है । सम्प्रति कविवर बख्तावर, कविवर वृन्दावन एवं श्री राजमल पवैया ने पूजा के माध्यम से भगवान् सुपार्श्वनाथ का गुणगान करते हुये अपनी श्रद्धा-भक्ति प्रदर्शित की है । 18
गुरु ग्रह की शान्ति के लिये जिन तीर्थङ्करों की जाप्य का विधान है उनमें तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ के जाप्य करने का भी उल्लेख है । 19
पुरातत्व में सुपार्श्वनाथ :
तीर्थकर सुपार्श्वनाथ के सम्बन्ध में जो पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं, उनमें मथुरा के सम्बन्ध का कङ्काली टीला प्रमुख है और प्रायः इसी को आधार बनाकर अनेक विद्वानों ने अपने अपने ग्रन्थों में इसका उल्लेख किया है। इसी को आधार बनाकर पं. बलभद्र जैन ने लिखा है कि" मथुरा के कङ्काली टीले पर एक स्तूप के ध्वंसावशेष प्राप्त हुये हैं । आचार्य जिनप्रभस्रि ने इस स्तूप के सम्बन्ध में विविधतीर्थकल्प में लिखा है की इस स्तूप को कुबेरादेवी ने सुपार्श्वनाथ के काल में सोने का बनाया था और उस पर सुपार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित की थी । फिर पार्श्वनाथ के काल में उसे ईटों से ढक दिया। आठवीं शताब्दी में
भट्ट ने इसका जीर्णोद्धार किया था, किन्तु सोमदेव सूरि ने यशस्तिलक चम्पू (6/17 - 18 ) में एवं हरिषेण कथाकोश में वज्रकुमार की कथा के अन्तर्गत इस स्तूप को वज्रकुमार के निमित्त विद्याधरों द्वारा निर्मित बताया है। आचार्य सोमदेव ने तो उस स्तूप के दर्शन भी किये थे और उसे देवनिर्मित लिखा है। इस स्तूप का जीर्णोद्धार साहू टोडर ने भी किया था, इस प्रकार की सूचना कवि राजमल्ल ने जम्बूस्वामी चरित्र में दी है। उन्होंने भी इस स्तूप के दर्शन किये थे। उस समय वहाँ 514 स्तूप थे । "20