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अनेकान्त 59/3-4
काल के सौ वर्ष पूर्ण कर चुका है उपर्युक्त तीनों मन्दिर पास-पास स्थित हैं तथा तीनों ही भगवान् सुपार्श्वनाथ के गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान-इन चार कल्याणकों के लिये प्रसिद्ध हैं किन्तु बाबू सुबोधकुमार जैन के पूर्वजों द्वारा निर्मित एवं श्री स्याद्वाद महाविद्यालय से सटे हुये मन्दिर में छतरी है और प्राचीन चरण भी, अतः जनसामान्य की दृष्टि में यही दिगम्बर जैन मन्दिर भगवान सुपार्श्वनाथ की जन्मभूमि के रूप में प्रसिद्ध
है।
सुपार्श्वनाथ की निर्वाणभूमि सम्मेद शिखर : __ श्री सम्मेद शिखर चौबीस तीर्थङ्करों में से बीस तीर्थङ्करों एवं अन्य करोडो मनिराजों की निर्वाणभूमि है। यह 'पार्श्वनाथ हिल' के नाम से भी विख्यात है। क्योंकि तैइसवें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ की निर्वाण स्थली टोंक/चोटी सबसे ऊँची है। इसकी उपत्यका (तलहटी) में बसा हुआ कस्बा मधुवन कहलाता है। जहाँ पहाड़ के ऊपर विविध तीर्थङ्करों के चरण चिह्न हैं, वहीं मधुवन में अनेक मन्दिर हैं जो गगनचुम्बी शिखरों से युक्त हैं। यहाँ अनेक संस्थाओं के विशाल भवन भी हैं। यह स्थान पारसनाथ स्टेशन अथवा ईसरी से लगभग बीस किलोमीटर दूर है मघुवन जाने का रास्ता एवं पर्वतराज का दृश्य बड़ा ही मनोहर है।
इस पर्वत की सबसे ऊँची चोटी सम्मेद शिखर कहलाती है। यह शब्द सम्भेद शिखर का रूपान्तर प्रतीत होता है। इसकी निष्पत्ति सम् मद अर्थ में क अथवा अच् प्रत्यय करने पर हर्ष या हर्षयुक्त होगा। कुछ लोगों का अनुमान है कि जैन श्रमण इस पर्वत पर तपस्यायें किया करते थे, इसलिए इस पर्वत की ऊँची चोटी का नाम समण शिखर से सम्मेद शिखर हो गया।
इस पर्वत से अन्य उन्नीस तीर्थङ्करों एवं करोड़ों मुनिराजों के अलावा प्रभासकूट से तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया है, अतः यह भूमि धन्य है। प्रणम्य है।
भाव सहित इस क्षेत्र के दर्शन-पूजन करने से 49 भव में नियम से