Book Title: Anekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 255
________________ 118 अनेकान्त 59/3-4 अस्सी (17280) भेद चैतन्य स्त्री सम्बन्धी है तथा सात सौ बीस(720) अचैतन्य स्त्री सम्बन्धी भेद हैं। दोनो को मिलाने से 18000 शील के भेद होते हैं वे इस प्रकार है___ अचेतन स्त्री तीन प्रकार की है- काठ की बनी हुई, पाषाण (पत्थर) की मूर्ति और लेप, रंग आदि से लिखित स्त्री। इन तीनों अचेतन स्त्रियों का स्पर्श और मानसिक अनुराग रूप काय, मन, से गुणा करने पर कुशील के छह भेद होते है। इन अचेतन स्त्रियों के साथ वाचनिक प्रवृत्ति नहीं होती। इन छह विकारों को कृत, कारित, अनुमोदना से करने पर 18 भेद होते है। इन 18 दुर्भावनाओं को स्पर्शन आदि पांच इन्द्रियों से करने पर 90 भेद होते है। इन 90 भेदों को द्रव्य और भाव से गुणा करने पर 180 भेद हुए। इन 180 भेद रूप कुशील का सेवन क्रोध, मान, माया, और लोभरूप चार कषाय के वशीभूत होकर किये है अतः अचेतन स्त्री सम्बन्धी कुशील के 720 भेद होते है। चैतन्य सम्बन्धी कुशील के भेद इस प्रकार हैं- चैतन्य स्त्री तीन प्रकार की हैं देवी, मानुषी और तिर्यञ्चनी। नरक में स्त्री नहीं होती। इन तीन प्रकार की चेतन स्त्री सम्बन्धी दर्भावना करना, कराना और करने वालों की अनुमोदना करने की अपेक्षा नौ भेद हैं- और इन नौ भेदों को मन, वचन, काय, से गुणा करने पर 27 भेद होते है। इन 27 प्रकार के विकार भाव, पंचेन्द्रिय से सम्बन्धित है। स्पर्श आदि की भावनाओं के कारण इनका आहारादि चार संज्ञाओं से गुणा करने पर 1080 भेद होते है। इन एक हजार अस्सी कुशीलों में प्रवृत्ति कषाओं के कारण होती है और कषाय 16 है 1080 भेदों को कषायों से गुणा करने पर कुशील के 17 280 भेद होते हैं। ये चेतन स्त्री सम्बन्धी विकारों के भेद हैं। इनमें अचेतन स्त्री सम्बन्धी 720 भेद मिला देने पर कुशील के 18000 भेद होते हैं। इन 18000 कुशील का (विभाव भावों का) त्याग कर अपने स्वरूप में रमण काल 18000 शील के भेद हैं। ब्रह्मचर्य व्रत का सामाजिक महत्व - ब्रह्मचर्य भावना आत्मा की आन्तरिक शक्ति है और इसके द्वारा सामाजिक क्षमताओं की वृद्धि की

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