Book Title: Anekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 253
________________ 116 अनेकान्त 59/3-4 5. स्त्रीअवलोकन त्याग- स्त्रियों के अंगोपांग को राग भाव से नहीं देखना। शरीर अशुचि है, अपवित्र है ऐसा विचार करना। 6. पूजनीय स्त्री सत्कार पुरस्कार त्याग- रागभाव पूर्वक स्त्रियों का सत्कार पुरस्कार नही करना माता, बहिन, धार्मिक भेषधारी आर्यिका, क्षुल्लिका आदि का विनय करने का त्याग नहीं है। क्योंकि काम, राग, रस, से युक्त होकर सत्कार पुरस्कार करना निषेध है। 7. अतीत भोग स्मरण त्याग- पूर्व समय में भोगे हुए भोगों का स्मरण नहीं करना क्यों कि अतीत काल के भोगों का स्मरण करने से परिणाम मलिन होकर ब्रह्मचर्य व्रत के घात का अवसर आ सकता है। 8. अनागत विषयाभिलाषा त्याग- भविष्यत् काल सरबन्धी भोगों की अभिलाषा नहीं करना। 9. पंचेन्द्रिय विषय सम्बन्धी इष्ट विषय सेवन का त्याग- पंचेन्द्रिय विषय सम्बन्धी इष्ट पदाथों का सेवन करने से इन्द्रियां और मन स्वच्छन्द हो जाते हैं। भाव पाहुड़ में मुनि को अठारह हजार शील और चौरासी लाख उत्तर गुणों के पालन करने हेतु लिखते हैं सीलसहस्सद्वारस चउरासी गुणगणाण लक्खाई। भावहि अणुदिणु णिहिलं असप्पलावेण किं बहुणा। हे मुने! (हे आत्मन्) अधिक प्रलाप करने से क्या लाभ है? तू प्रतिदिन सम्पूर्ण अठारह हजार शील और चौरासी लाख उत्तर गुणों की निरन्तर भावना कर, रातदिन उनका चिन्तन, स्मरण एवं पालन कर। दुर्भावनाओं का विनाश करके सद्भावनाओं का चिन्तन शील कहलाता है। इन शील का वर्णन दो प्रकार से है। एक अहिंसात्मक परिणति दूसरी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन। इन दोनों का परस्पर सामंजस्य है क्योंकि अहिंसात्मक परिणति से ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन होता है और ब्रह्मचर्य व्रत के पालन से अहिंसा की सिद्धि होती है। ब्रह्मचर्य व्रत का

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