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अनेकान्त 59/3-4
युक्त भद्र के मध्य में भित्ति से थोड़ा बाहर की ओर निकलती हुई देव-कलिकाएँ निर्मित की गई हैं। जंघाओं के कोनों पर दो भुजाओं वाले दिग्पालों की सुडौल आकृतियों उत्कीर्ण की गई हैं, जो मनोहर त्रिभंग मुद्रा में खड़ी हैं और जिन्हें कीचकों ने उठाया हुआ है। गूढ़ मण्डप के सिन्निकट त्रिक-मण्डप के प्राचीर स्तंभों पर नौवें और दसवें दिग्पाल ब्रह्मा तथा अनंत की मूर्तियाँ भी दिखाई पड़ती हैं। जंघा के स्थान पर छज्जों पर राजसैनिक, वेदिका, आसनपट्ट, कक्षासन गोटे लगाए गए हैं, जो छोरों पर शिल्पांकनो तथा स्पंदनशील आकृतियाँ से अलंकृत हैं। त्रिक मण्डप के सभी छह स्तंभ तथा चार प्राचीर-स्तंभ भव्य हैं और उनके ऊपरी भाग ललित रूप में उत्कीर्ण हैं। मुख-चतुष्की के सोपान के दोनों पावों पर विद्या-देवियाँ तथा यक्षों की आकृतियाँ बनी हुई हैं। अंतस्थ भवन की छत पर मनोरंजक और विविधतापूर्ण आकृतियों का चित्रण किया गया है। मुख-चतुष्की पर मसूराकार क्षिप्त-विमान का निर्माण किया गया है, जो नाभिच्छंद शैली में है। इस शैली की निर्मितियाँ वर्मन के ब्राह्मणस्वामी मंदिर, अउवा के कामेश्वर मंदिर और ग्यारसपुर के मालादेवी मंदिर जैसे प्राचीन मंदिरों में देखी जा सकती हैं। त्रिक-मण्डप की केन्द्रीय छत समतल वितान के रूप में है, जिसमें दण्ड-रास के उत्कीर्ण कला-पिण्डों से युक्त प्रभाग दर्शाए गए हैं। इस प्रकार कोटाई अन्य जगहों से भी जाने जाते है। इसके बायीं ओर की पंक्तियों में नाभिच्छंद शैली में गजतालुओं के साथ क्षिप्त वितानों की रचना की गई है।
गूढ-मण्डप में पाँच शाखाओं के द्वारमार्ग का निर्माण किया गया है, जिस पर पत्र-शाखा और रूप-शाखा उत्कीर्ण है और पार्श्वभाग व्यालों अप्सराओं, पद्मपत्र-शाखा तथा रत्न शाखा से अलंकृत किये गये हैं, जिसके नीचे नागों की आकृतियाँ बनी हुई हैं। सरदल तथा रूप शाखा की देवकुलिकाओं में विद्यादेवियों अथवा यक्षियों की बीस आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। गर्भगृह का द्वार गूढ-मण्डप के समान और अपने वाहनों पर आरूढ़ विद्यादेवियों और यक्षियों की आकृतियाँ रूप-स्तंभों पर उत्कीर्ण हैं। ढाकी, जिन्होंने इस मंदिर का विस्तृत अध्ययन किया है इसे वास्तुकला की