Book Title: Anekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 215
________________ अनेकान्त 59/3-4 मन्दकषायी, पुण्यप्रकृतियों के उदय वाले तथा विविध विनोदों में आसक्त होते हैं। 12 78 कुभोगभूमि कुमानुष जहाँ जन्म लेते हैं, वे जहाँ रहते हैं, उस स्थान को कुभोगभूमि या कुमानुषद्वीप कहते हैं। कुभोगभूमि में उत्पन्न मनुष्य गुफा एवं वृक्षतल में रहते हैं तथा फल-फूलों को खाकर जीवनयापन करते हैं । यहाॅ के मनुष्य पाप कर्मों के फलस्वरूप कुत्सित रूप को धारण करने वाले होते हैं । लवण समुद्र के आभ्यन्तर भाग में 24, बाह्य भाग में 24 इसी प्रकार कालोदधि समुद्र के आभ्यन्तर भाग में 24 एवं बाह्य भाग में 24 कुल 96 द्वीपों में कुभोगभूमि है । इन द्वीपों में रमणीय उपवन, तडाग एवं फलपुष्पसमन्वित वृक्ष पाये जाते हैं। कुभोगभूमियों में एक जंघा, एक कर्ण, पशुमुख, मत्स्यमुख, गोमुख, मेघमुख, विद्युन्मुख, हस्तिमुख आदि कुत्सित आकृति वाले मनुष्यों होते हैं। एक जंघा वाले पूर्व दिशागत कुमानुष मीठी मिट्टी खाकर, शेष फल-फूल खाकर जीवनयापन करते हैं । ये सभी मन्दकषायी होते हैं, इनकी आयु एक पल्य है । इनका जन्म-मरण अन्य भोगभूमिज के समान ही होता है। इन मनुष्यों का मृत शरीर भी भोगभूमिज के मनुष्यों के समान कपूर की तरह उड़ जाता है । इनका अग्निसंस्कार आदि नही होता है । कुमानुष द्वीपों में तिर्यंच नही पाये जाते हैं, वहाँ मनुष्य गति नाम कर्म के उदय वाले मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं। कुभोगभूमि की सम्पूर्ण व्यवस्था जधन्यभोगभूमिवत् कही गई है। 3 तीस भोगभूमियों एवं छ्यानवे कुभोगभूमियों में केवल सुख ही होता है, जबकि कर्मभूमि में सुख-दुख दोनों होते हैं। 14 I भोगभूमि में चरित्र का अभाव भोगभूमिजों में उत्कृष्ट रूप से चार गुणस्थान ही रहते हैं । धवला

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