Book Title: Anekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 235
________________ अनेकान्त 59/3-4 शेष भाग में उनके वर्तमान कालीन भव का। प्रथम प्रस्ताव में सुपार्श्वनाथ के मनुष्य एव देवभवों का विस्तृत विवेचन है, जिसमें लक्ष्मरागणि ने बतलाया है कि किस प्रकार अनेक भवों में सम्यक्त्व एवं संयम के प्रभाव से अपने व्यक्तित्व का विकास किया या और अन्त में तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्धकर सप्तम तीर्थङ्कर का पद प्राप्त किया था। द्वितीय प्रस्ताव में तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ के जन्म, विवाह और निष्क्रमण आदि का वर्णन है। इस प्रकार इसमें विविध धर्मोपदेशों और कथाओं के माध्यम से भगवान् सुपार्श्वनाथ का चरित्र-चित्रण किया गया है। साथ ही सम्यग्दर्शन का माहात्म्य, श्रावक के बारह व्रत और उनके अतिचार तथा अन्य धार्मिक विषयों को भी विविध कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इन कथाओं में तत्कालीन बुद्धि-वैभव, कला-कौशल, आचार-व्यवहार, सामाजिक रीति-रिवाजों, राजकीय परिस्थितियों एवं नैतिक-जीवन को उन्नत बनाने वाले विविध प्रसंगों पर प्रकाश डाला है।12 अन्य सुपार्श्वनाथ चरित्र- उपर्युक्त के अतिरिक्त जालिहर गच्छ के सर्वानन्द के प्रशिष्य एवं धर्मघोषसूरि के शिष्य तथा पट्टधर श्री देवसूरि (विक्रम की तेरहवी शताब्दी) के द्वारा भी प्राकृत भाषा में रचित एक सुपार्श्वनाथचरित का उल्लेख मिलता है। इसी क्रम में विबुधाचार्य द्वारा प्राकृत भाषा में रचित एक सुपार्श्वचरित्र का उल्लेख है। इनके अतिरिक्त एक अज्ञातकर्तृक सुपार्श्वनाथचरित्र तथा संस्कृत भाषा में निबद्ध एक अन्य सुपार्श्वनाथचरित्र का भी उल्लेख है। स्तोत्र-साहित्य : स्वयंभू स्तोत्र- यह आचार्य समन्तभद्र की रचना है। इसमें उन्होंने ऋषभादि से लेकर महावीर पर्यन्त कुल चौबीस तीर्थङ्करों की स्तुति की है। सातवें क्रम में भगवान् सुपार्श्वनाथ की कुल पाँच पद्यों में स्तुति की

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