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अनेकान्त 59 / 3-4
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त्याग वृत्तिपरिसंख्यान कायक्लेश और विविक्तशय्यासन ये छह बाह्य तप है । 2 अनशन दो प्रकार का होता है- (i) अद्धानशन और (ii) सर्वानशन । ग्रहण और प्रतिसेवन काल में अद्धानशन होता है, जबकि मरण समय में सर्वानशन होता है। पेट भर खाने का त्याग तप में सहायक होने से यह अवमौदर्य तप कहा जाता है। मुनि पुरुष पेट भर 32 ग्रास प्रमाण और आर्यिका स्त्री के कुक्षि पूरक आहार का परिमाण 28 ग्रास होता है इससे कम ग्रास से लेकर एक ग्रास प्रमाण का आहार अवमौदर्य है । सल्लेखना के समय दूध, दही, घी, तेल, गुड़ लवण, पत्रशाक, सूप घृतपूर पुवे आदि सब का या एक एक का त्याग रस परित्याग होता है । शंख के आवर्ती के समान या पक्षियों की पंक्ति जैसे गोचरी भिक्षा के अनुसार भ्रमण करते हुए, भिक्षा मिली तो ग्रहण करूँगा ऐसा संकल्प करना वृत्तिपरिसंख्यान है । सुखासन पूर्वक आहार ग्रहण न करना और आहार के पश्चात् शयन हेतु लेटना नहीं तथा आहार के पश्चात् निषद्या परिषह पूर्वक तपती शिला या सर्दी में बाहर एकान्त में सामायिक में बैठना कालक्लेश है तथा जिस वसति में मनोज्ञ या अमनोज्ञ शब्द, रूप गंध स्पर्श के द्वारा अशुभ परिणाम न होते हों अथवा स्वाध्याय व ध्यान में व्याघात नहीं होता हो, वह विविक्त वसति है । इसके साथ ही उद्गम उत्पादन और एषणा दोषों से रहित, जीवों की उत्पत्ति से रहित, शय्या रहित, दुःप्रमार्जन आदि संस्कार से रहित वसति में निवास करना, शून्य घर पहाड़ की गुफा, वृक्ष का मूल आने वालों के लिए बनाया गया घर, देवकुल, शिक्षालय, आराम घर आदि विविक्त वसतियाँ होती है जिनमें समाधिमरण लेने वाला क्षपक अपनी साधना को सम्पन्न करता है । कायक्लेश के अन्तर्गत रात्रि में शयन नहीं करना, स्नान नहीं करना, दाँतों को वृक्ष की दातौन से सफाई नहीं करना, शीतकाल तथा गर्मी में आतपन योग करना आदि भी आता है।
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बाह्यतप से सब सुख-शीलता छूट जाती है । सुखशीलता राग उत्पन्न करती है । राग, राग को बढ़ाता है जो कर्मबन्ध का कारण होने