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अनेकान्त 59/3-4
त्रिक-मण्डप गूढ-मण्डप मूल-मण्डप के स्तंभ और छत के अलंकरणों में कुछ अवशिष्ट आलंकारिक विशेषताएँ प्राचीन महा-मारु स्थापत्यीय शैली का स्मरण कराती हैं। यह मंदिर पत्र, पुष्षों, पशु, पक्षियों, मानव-आकृतियों तथा आलंकारिक कला प्रतीकों के समृद्ध अंकन द्वारा अति-सुसज्जित है। छत, स्तंभ, टोड़े, तोरणों की आकृतियाँ रीतिबद्ध होने पर भी आकर्षक हैं।
चित्तौड़ या चित्रकूट मध्यकालीन जैन स्थापत्य का एक सर्वाधिक उल्लेखनीय केन्द रहा है। यहाँ जैन मंदिर पर्सी ब्राउन के अनुसार चौदहवीं शताबदी का है और यह उसी स्थान पर बना है जहाँ पहले इसका मूल मंदिर स्थित था। इसके शिखर और गुंबद-युक्त मण्डप का बाद में पुनरुद्धार किया गया। परन्तु इसका गर्भगृह अंतराल और उससे संयुक्त मण्डप वाला निचला भाग पुराना ही है। इसकी चौकीदार पीठ पर स्थित बाह्य संरचना में शिल्पांकित आकृतियाँ तथा अन्य अलकृतियों उत्कीर्ण हैं, जो कलात्मक दृष्टि से अत्यंत संपन्न हैं इस मंदिर का रथ-भाग, छाद्य तथा अन्य बाह्य संरचनाएँ इसे अतिरिक्त सौन्दर्य प्रदान करती हैं। तीर्थकर शांतिनाथ को समर्पित श्रृंगार-चौरी स्थापत्यीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। सन् 1448 में निर्मित यह मंदिर पंचरथ प्रकार का है, जिसमें एक गर्भगृह तथा उत्तर और पश्चिम दिशा से संलग्न चतुष्कियाँ हैं। गर्भगृह अंदर से अष्टकोणीय है, जिस पर एक सादा गुंबद है। मंदिर की बाह्य संरचना अनेकानेक प्रकार की विशेषताओं से युक्त मूर्ति-शिल्पों से अलंकृत है और जंघा-भाग पर उत्कीर्ण दिक्पालों, अप्सराओं, शार्दूलों आदि की प्रतिमाएँ हैं। मानवों की आकर्षक आकृतियों के शिल्पांकन भी यहाँ पर उपलब्ध हैं। मुख्य प्रवेश-द्वार की चौखट के ललाट बिंब में तीर्थकर के अतिरिक्त गंगा और यमुना विद्यादेवियों तथा द्वारपालों की प्रतिमाएँ अंकित हैं। गर्भगृह के मध्य में मुख्य तीर्थकर प्रतिमा के लिए एक उत्तम आकार की पीठ है तथा कानों पर चार स्तंभ हैं जो वृत्ताकार छत को आध पार प्रदान किए हुए है। छत लहरदार अलंकरण युक्त अभिकल्पनाओं से अलंकृत है। इस मंदिर के मूर्ति शिल्प का एक उल्लेखनीय पक्ष यह है कि