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आगम की मौलिकता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता न करन वाले आप में जहाँ एक ओर वज्र सी कठोरता थी, वहाँ हृदय में विरोधी विचारक के प्रति भी नवनीत सी कोमलता थी। किसी प्रकार का प्रलोभन आपको अपने मार्ग से नहीं डिगा सका । विद्या एवं विद्वत्ता के क्षेत्र में आपके द्वारा स्थापित आदर्श पूर्णतः अनुकरणीय हैं। स्वाभिमानी एवं दबंग व्यक्तित्व के धारक पण्डित जी के ज्ञानालोक से जैन विद्वज्जगत् सदैव आलोकित रहेगा।
आदरणीय पण्डित जी के निधन से जैन समाज की अपूर्णीय क्षति हुई है । वीर सेवा मन्दिर के तो वे पर्याय ही थे । “अनेकान्त” के पाठकों को उनके आलेखों जैसे समर्थ दस्तावेजों का अभाव अवश्य खलेगा। मैं 'अनेकान्त' के सुधी पाठकों के साथ समवेत रूप से आदरणीय पण्डित जी के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित करता हुआ भावना भाता हूँ कि उनके परिवार एवं जैन जगत् को इस अपार दुःख को सहन करने की शक्ति प्राप्त हो तथा उनके द्वारा दर्शाये मार्ग पर हम चलने में समर्थ हों । सत्कर्मो के प्रतिफलस्वरूप उन्हें सद्गति की प्राप्ति तो असंदिग्ध है ही । अन्त में, मैं वीर सेवा मन्दिर के पदाधिकारियों से आशा करता हूँ कि वे उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयासशील रहेंगे, जिनके संरक्षण में पं. पद्मचन्द्र शास्त्री आमरण समर्पित रहे ।
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सम्पादक