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अनेकान्त 59/1-2 अनन्त देव सूरि (14वीं-15वीं शताब्दी)
इनके विषय में व्यक्तिगत जानकारी उपलब्ध नहीं है। इनके द्वारा वित रसशास्त्र सम्बन्धी 'रसचिन्तामणि' नामक ग्रंथ प्राप्त होता है जिसकी दो हस्तलिखित प्रतियां भण्डारकर प्राच्य विद्या शोध संस्थान, पूना में (ग्रंथ संख्या 192, 193) सुरक्षित हैं। संस्कृत में लिखित इस ग्रंथ में 900 श्लोक हैं। इस ग्रंथ को टोडरानंद कृत 'आयुर्वेद सौख्य' जो 16वीं शताब्दी की रचना है में उद्धृत किया गया है। अतः 'रसचिन्तामणि' ग्रंथ 14वीं शताब्दी (उत्तराध) एवं 15वीं शताब्दी (पूर्वाध) में किसी समय रचित प्रतीत होता है। यह ग्रंथ प्रथम बार 1911 में और द्वितीय वार 1967 में मुद्रित हो चुका है।
माणिक्य चन्द्र जैन (14वीं-15वीं शताब्दी)
इनका व्यक्तिगत परिचय अज्ञात है। इनके द्वारा रचित रस विद्या सम्बन्धी 'रसावतार' नामक ग्रंथ की प्रति भण्डारकर प्राच्य विद्या शो ध संस्थान पूना में (ग्रंथ संख्या 373) उपलब्ध है। इस गंथ में उल्लिखित अनेक रस योगों का समावेश श्री हरिप्रपन्न जी ने अपने ग्रंथ 'रसयोग सागर' में किया है। टोडरानन्छ कृत आयुर्वेद सौख्य' में भी 'रसावतार' का उल्लेख होने से 'रसावतार' की रचना 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध एवं 15वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में किया जाना सम्भावित है।
नयनसुख (16वीं श्ताब्दी)
इनके द्वारा हिन्दी में पद्यमय रचना के रूप में लिखित 'वैद्यमनोत्सव' नामक ग्रंथ प्राप्त होता है। कविवर नयनसुख द्वारा छन्दोबद्ध इस लघुकृति की रचना संवत 1649 (1592 ई.) में की गई थी जो दोहा, सोरठा और चौपाई आदि छन्दो में निबद्ध है। कविवर नयनसुख श्रावककुल में उत्पन्न केसराज (कुछ हस्तलिखित प्रतियों के अनुसार केशवराज) के पुत्र थे-"केसराजसुत नयनसुख श्रावककुलहि निवास"।