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अनेकान्त 59/1-2
हर्षकीर्ति सूरि (16वीं शताब्दी)
ये वैद्यक विद्या के साथ व्याकरण और ज्योतिष में निष्णात थे। इन्होंने इन तीनों विषयचों पर आधारित ग्रंथों की रचना की थी। वैद्यक शास्त्र पर आधारित इनके द्वारा रचित 'वैद्यक सारोद्धार' भी मिलता है-"नागपुरीय तपोगणराज श्री हर्षकीर्ति संकलिते वैद्यकसारोद्धारे तृतीयो गुटिकाधिकारः।" इस पुष्पिका से यह भी ज्ञात होता है कि ये नागपुरीय तापगच्छ के भट्टारक साधु थे। एक पुष्पिका में इन्होंने अपने नाम के साथ 'उपाध्याय' भी लिखा है। इनके द्वारा रचित ग्रंथ का रचना काल 16वीं शताब्दी है। इनके द्वारा रचित अन्य 15 ग्रंथों का उल्लेख मिलता है।
जयरत्न गणि (1605 ई.)
ये श्वेताम्बर सम्प्रदाय में पूर्णिमा पक्ष के आचार्य भावरत्न के शिष्य थे। इनका निवास स्थान 'त्रांबावती' नगर था। यहीं पर जयरत्न गणि ने 'ज्वर पराजय' नामक वैद्यक ग्रंथ की रचना की थी जिसका उल्लेख उन्होंने अपने ग्रंथ में किया है। इन्होंने अनेक मान्य वैद्यक ग्रंथों का अध्ययन करने के उपरांमत वि. सं. 1662 में भाद्रपद शुक्ला 1 को इस ग्रंथ की रचना की थी-ऐसा उनके द्वारा किए गए उल्लेख से ज्ञात होता है।
लक्ष्मीकुशल (1637 ई.)
ये गुजरात निवासी और तपागच्छ वीरशाखा में पं. जिनकुशल के शिष्य थे। इनके द्वारा रचित ग्रंथ में गुरु-शिष्य परम्परा का उल्लेख मिलता है। इनके द्वारा रचित ग्रंथ का नाम 'वैद्यक साररत्नप्रकाश' है जिसकी रचना सं. 1694 (1637 ई.) में की गई थी।
हंसराज मुनि (17वीं शताब्दी)
ये खरतरगच्छीय वर्द्धमान सूरि के शिष्य थे। इन्होंने 'भिषक्चक्र