________________
120
अनेकान्त 59/1-2
महेन्द्र जैन (11वीं श.)
इनका अपर नाम महेन्द्र योगिक भी मिलता है, ये कृष्ण वैद्य के पुत्र थे। इनके द्वारा 'द्रव्यावलि समुच्चय' नामक ग्रंथ की रचना किए जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। पूना से प्रकाशित धन्वन्तरि निघण्टु (1985) में भी 'द्रव्यावलि' समन्वित है। हेमचन्द्र (12वीं श.) और मंख (12वीं शता.) ने धन्वन्तरि निघण्टु को उद्धृत किया है। अंतः इनका काल 11वीं शता. होना प्रमाणित होता है। द्रव्यावलि में विभिन्न वानस्पतिक द्रव्यों के गुण-कर्मों का विवरण दिया गया है।
दुर्गदेव (1032)
ये 11वीं शती के प्रख्यात मनीषी हैं। इन्होंने प्राकृत भाषा में ज्योतिष पर आधारित रिट्ठ (रिष्ट) समुच्चय नामक ग्रंथ की रचना की है जिस में 261 गाथाएं हैं। भावी मरणसूचक लक्षणों के आधार पर रोगी या स्वस्थ मनुष्य की आयु ज्ञात करना (आयु निश्चय करना) रिष्ट या अरिष्ट कहलाता है-"नियतमरणख्यापकं लिंगमरिष्टम् । आयुर्वेद में इस विषय का अत्यधिक महत्व है। क्योंकि रोगी में समुत्पन्न लक्षणों के आधार पर या रोगी को देखने हेतु बुलाने के लिए आए दूत में अथवा रोगी को देखने हेतु जाते समय मार्ग में प्रकट हुए शुभाशुभ लक्षणों के आधार पर प्रत्याख्येय-अप्रत्याख्येय रोगी का निर्णय करने और तदनुसार विवेकानुसार उसकी चिकित्सा करने या नहीं करने में वैद्य को सुविधा रहती है। ऐसे लक्षणों का कथन तथा अन्य विभिन्न प्रकार के अरिष्ट लक्षणों का कथन 'रिट्ठ समुच्चय' में किया गया है। अतः आयुर्वेद की दृष्टि से भी यह ग्रंथ महत्वपूर्ण है, और आयुर्वेद के प्रति दुर्गदेव का योगदान अविस्मरणीय है।
आचार्य हेमचन्द्र
बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं वैदुष्य मण्डित श्री हेमचन्द्राचार्य जी