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९७, वर्ष ३६, कि०१
अनेकान्त सारणी १. जैन विद्याओं तुलनात्मक (१९७३-६३) विषय (८-१४) ६ ३.० ५१ १६.५ ४६ (७-१४) में शोध: आंकड़े
१४.२० (म) सामान्य १६७३ प्र० १९८३ : अप्र० १९८३ : ब प्र० १६. तुलनात्मक
शत
शत शत अध्ययन १० ५.० ३३ ७.७ ४० १२-३ १. प्रदेश
१५
- १७. विज्ञान ४ २.० ५ १.२ २ ०.६ २. विश्ववि० २५
- १८. विविध ६ ३.० ० ० ३. शोधकर्ता २०४ ४२६ (अ) जैन १०
२०४ ४२६ ३२४ (ब) जेनेतर११४
- (अ) शोध और प्रकाशन(स) पजी. ८८ (द) उपाधि
सारणी १ से स्पष्ट है कि पिछले दस वर्षों में जैन प्राप्त ११६
विद्याओं में शोधकर्ताओ की सख्या दुगुनी से अधिक हो गई
३२४ ४. शोध-प्रवध
है। जनेतर विद्वान् इस क्षेत्र में अधिकाधिक सख्या मे रुचि प्रकाशन ३२ १५.६ ६८ १५.८५ ३६ -
ले रहे है। दस वर्ष पहले जहां इनका अनुपात१:१२५.
२११, वही अब १ : २.८३ हो गया है। इसके विपर्यास (ब) विषयवार शोधकर्ता
मे, शोध प्रवन्ध प्रकाशन की स्थिति में कोई विशेष अन्तर
नहीं पड़ा है। यह प्रायः १५.७ प्रतिशत ही है। इस १. ललित
प्रकार, जहा जैन विद्याओं का शोध प्रतिशत बढ़ रहा है, माहित्य १०२ ५० १७५ ३६ १५० ४६.२ २. न्याय/दर्शन २७ १३ ३६६
वहां इसके सप्रसारण की स्थिति शोचनीय है। इसे
सुधारने की आवश्यकता है। ३. भाषा (प्रा०, ___अ०, वितान) ८ ४ ३४ ८
(ब) शोध क्षेत्र ४. आगम १० ५ १२ ५ ७ २.२
सारणी २ से प्रकट होता है कि जैन विद्याओ के शोध ५. नीति,
क्षेत्र की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है जहां आचार, धर्म १०५ ४२ ६.५ ___ १२ ३.७
३५.६ प्रतिशत शोध हो रही है। उसके बाद बिहार ६. व्यक्तित्व
(१५-१५ प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (१० प्रतिशत) आते कृतित्व ११ ५ २७
है। महाराष्ट्र और राजस्थान मध्य प्रदेश से कुछ ही पीछे ७. कला,
हैं। दिल्ली और गुजराज मध्यम कोटि में है । दक्षिण के पुरातत्व १० ५ १२
सभी प्रदेशों में मिलाकर जैन विद्या शोध का प्रतिशत ६.४ ८. इतिहास
है। अन्य प्रान्तो में भी यह काफी कम हैं। ऐसा प्रतीत ६. राजनीति
होता है कि नाभिकाओ में जिन क्षेत्रों का विवरण नहीं १०. अर्थ-शास्त्र
है, वे जैन विद्या शोध की दृष्टि से शून्य हों। फलतः यह ११. समाज-शास्त्र
स्पष्ट है कि वर्तमान में जिन क्षेत्रों मे जैन अधिक संख्या १२. भूगोल
में हैं, वहीं शोध प्रतिशत भी अधिक है । ऐतिहासिक दृष्टि १३. मनोविज्ञान
से अन्य क्षेत्रों में अधिक शोध होनी चाहिए क्योंकि वहीं १४. शिक्षा
जैन इतिहास की निमिति हुई है । यदि१५ अाधुनिक
२३ ६.६