Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 121
________________ नेमि शीर्षक हिन्दी साहित्य थे । नेमि जी को मंगल रचना आपने संवत् १६९८ में नेमीर राजुल विवाह-इसके रचनाकार ब्रह्म की थी। कृति की एक पूर्ण प्रति दिगम्बर जैन मन्दिर ज्ञान सागर के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नही पाटोदी का, जयपुर, गु० न० १२ मे सकलित है । कवि हो सकी। कृति की एकमात्र प्रति गुटका नं०५० (पत्र विश्वभूषण कृत 'लक्षुरि नेमीश्वर की' की प्रति दिगम्बर संख्या २६ से ३१ तक पाटोदी के मन्विर जयपुर के शास्त्र जैन मन्दिर विजयराम पाड्या, जयपुर के भडार मे गुटका भण्डार मे है अन्त इस प्रकार है - नं. ४ मे सग्रहीत है। राजमती प्रबोध के सुध भाव सयम लीयो। नेमिनाथ रास-यं तो रूपचन्द नाम के अनेक ब्रह्म ज्ञान सागर कहे वाद नेमि राजुल कीयो । कवि हुए है परन्तु आलोच्य कृति के रचनाकार पाण्डे नेमिनाथ फाग-कृतिकार भट्टारक रत्नकीत्ति रूपचन्द भगवानदास के पुत्र थे । नेमिनाथ रास की रचना सत्रहवीं शताब्दी के मूर्धन्य सत एव साहित्यकार थे। सवत् १६९० के लगभग की थी। रूपचन्द कवि विरचित भट्टारक अभयनन्दी ने सवत १६३० में भट्टारक पद पर 'राजल विनती' (मुटका न० ८१ शास्त्र भण्डार, श्री महा इनका महाभिषेक किया था। नेमिनाथ भाग की रचना वीर जी) तथा 'नेमिनाथ स्तवन' (गुटका न० ७६ भट्टार गुजरात के हासोट नगर गहुयी थी। इस कति मे कुल कीय दि० जैन मन्दिर, अजमेर) का भी उल्लेख मिला है। ६६ पद्य है जो राग केदारमें निबद्ध है । भट्टा. रत्नकीति ने नेमि जनंद ब्याहलो-इसके रचनाकार खेतसी गुजरात के हो घोघा नगर मे 'नेमिनाथ बारहमासा' लिखा अथा खेतसिह है । ये सादू शाखा के चारण कवि और था। यह २४ पद्यो की सुन्दर लघु कृति है जिसमे राजुल जोधपुर नरेश के आश्रित थे। 'ब्याहलो' का सृजन इन्होने की व्यथा सशक्त रूप में व्यंजित है। इनके अतिरिक्त सत सवत् १६६१ मे किया था । कविता मे खेतसी अपना कवि ने नेमिराजीमती से सम्बन्धित अनेक स्फुट गीतो की 'सहि' या 'साहि' नाम प्रयुक्त करते थे । नेमि जिनद रचना की थी। ये गीत विभिन्न रागो मे यथा मल्हार. व्याहलो की प्रतिया-(१)गुटका न० ६५ पाटोदी का मदिर केदार मारुणी, सारग, आसावरी आदि मे निबद्ध है। फाग, जयपुर, (२) गुटका न० ६ दिगम्बर जैन मन्दिर पार्श्व बारहमासा तथा कुछ गति डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल नाथ, जयपुर (५) गुटका न० ४२ शास्त्र भण्डार श्री लिखित पुस्तक 'भट्टारक रत्नकीत्ति एव कुमुदचन्द्र : महावीर जी मे उपलब्ध हैं। व्यक्तित्व एवकृतित्व' में प्रकाशित हुए हैं। नेमीश्वर के दश भवान्तर-रचयिता ब्रह्म० राजुल का बारहमासा-इसके रचयिता सत्रहवीं धर्मरुचि अभयचन्द प्रथम के शिष्य थे और इनका रचनाकाल सत्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध रहा था। प्रस्तुत कृति शताब्दी के ही कवि पद्मराज हैं। सभवतः ये ही पदमराज मे तीर्थंकर नेमिनाथ के पूर्व जन्मो का विस्तृत वर्णन है। 'अभयकुमार प्रबध' के रचयिता हैं और ये खतरगच्छीय आचार्य जिनहस के प्रशिष्य और पुण्यसागर के शिष्य थे। काव्य की प्रतियां, गुटका न० १३६ बधीचन्द जी का विवेच्य रचना की एक प्रति बधीचन्द जी के मन्दिर, जयपुर मन्दिर, जयपुर तथा गुटका नं० ८टका नं० ८५ गोधों का मन्दिर, जयपुर के शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत है। के शास्त्रभण्डार मे गुटका न. ६२ वेष्ठन १०६८ में है। नेमीश्वर को डोरडो-विवेच्य काव्य के कवि नेमिनाथ रास-रचनाकार मुनि अभयचन्द भट्टारक हर्षकीर्ति हैं। ये सत्रहवी शताब्दी के उत्तरार्ध में राजस्थान कुमुदचन्द्र के योग्य शिष्य थे और ये संवत् १६८५ मे के ख्यात सत रहे । नेमीश्वर को डोरडो में कुल २१ पद्य हैं गादी पर विराजमान हुए। नेमिनाथ रास का सृजन और काव्य भाषा राजस्थानी प्रधान है। इसकी प्रति शास्त्र । सत्रहवीं सती के उत्तरार्द्ध में किया था और इसकी प्रति भण्डार श्री महावीर जी मे है। हर्षकीति ने ही नेमिनाथ गुटका न ५३ वेष्टन ५६२ में भट्टारकीय दिग० जैन मन्दिर का बारहमासा, (गुटका न० १६२ वधीचन्द्र जी का मन्दिर अजमेर के शास्त्रभण्डार में है। कवि की एक अन्य प्रसिद्ध जयपुर) तथा नेमिराजुल की भक्ति विषयक ६६ स्फुट पदो हो कति 'चन्दागीत' है जिसमें कालिदास के मेघदूत की विरही कृति च की रचना की थी। यक्ष की भांति राजुल भी अपना संदेश चन्द्रमा के माध्यम

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