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गतांक से आगे:
पं० शिरोमणि दास कृत धर्मसार सतसई
॥ श्री कुन्दनलाल जन प्रिन्सिपल, दिल्ली
अथ पंचम संधि प्रारभ्यते : चौपाई-कर जोड़े नृप पूछ बात,
गणधर देव कहो तुम बात । तीर्थकर पद कसे होय,
मुनिवर धर्म कहो पुनि सोय ।।१।। षोडश कारण व्रत को कर,
केवली सति क्षायक धरै । छट सात गुणथान विराज,
होय दिगम्बर मुनिवर राजै ॥२॥ गणधर कहै सुनो हो राय,
यतिवर धर्म महा सुखदाय । महा कठिन कहिये ससार,
जात भवधि पावै पार ॥३॥ क्रोध लोभ माया मद त्यागी,
देह भोग ससार विरागी। आशा विषय तजे जब व्रती,
____ सो जग मे यह कहिये जती ।।४।। त्रस थावर की जो करहिं सुरक्षा,
दया महाव्रत यह जिन शिक्षा । निज पर हेतु मृषा जब तर्ज,
अनन्त महा व्रत सो मुनि भजे ॥५॥ पर धन इच्छा कर न बाधु,
निज दोषन नही गोप साधु । मन-वच-काय तज जब दोष,
स्तेय महा व्रत यह सुख पोप ॥६॥ दोहा-बउ विधि नारी जानिए, जे त्यागे मन वच काय ।
ब्रत कीरति अनुमोद है, इह विधि गुनि जै राय ॥७॥ पांचक इद्रिय लिंग दस, काम विकिन दस जानि ।
शील भेद इह विधि गुन, अठारह सहस बखानि ।।८।। चौपाई-इह विधि शील धर मुनि कोई,
महावत ब्रह्मचर्य है सोई।
दश विधि उपधी वाहिज कहै,
चौदह पुनि अभ्यन्तर रहे ॥६॥ ए चौबीस उत्पागै शुद्ध,
महाव्रत यह आकिंचन बुद्ध । अब सुनु पाचों समिति भेद,
___ जाते होय पाप बहु छेद ॥१०॥ भूमि शोध पग धरै जु साधु,
जात जीव लहै नही बाधु । नीची दृष्टि मद अति चले,
ईया समिति यह तासौ पलं ॥११।। धर्म वचन बोले शुभ बन,
के घरि मोन रहै दृढ़ जैन । विकया वचन तजै जब मुनी,
भाषा समिति जान यह गुनो ॥१२॥ पहर उठे दिन चढइ जु जो लौ,
रहइ पहर उठे पुनि तो लौ । आहार शुद्धि नव कोटि बखानि,
एषणा समिति कही जिन वानि ॥१३॥ घरहि कमडल घरनी देख,
अरु पुनि ताहि लेहि पत रेख । आदान निक्षेपण समिति बनाई,
धरै मुनीन्द्र सकल सुखदाई ॥१४॥ भूमि देख मल मूत्रहिं क्षिप
फिर पुनि आनि जाप नित जपं । धरहिं जो गुनिय भासो नित्त,
प्रतिष्ठापन यह समिति जु मित्त ॥१५॥ पाचो इन्द्रिय विषय विरोधे,
तप सों अग्नि महा तनु सोधे । षट् आवश्यक साधे जती,
भूमि शयन पुनि राचे व्रती ॥१६॥ स्नान रहित सोहै मुनिराज,
वसन विजित पुनि दिगंबर वास ।