Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 126
________________ गतांक से आगे : महाकवि प्रहदास : व्यक्तित्व एवं कृतित्व D डा० कपूर चन्द जैन, खतौली पुरुदेव चम्पू सुविध राजा बाद में अच्युतेन्द्र तदनन्तर ब्रजनाभि राजमहाकवि अहंदास की प्रतिभा का चरम निदर्शन 'पुरू- पुत्र और अन्त में अहमिन्द्र हुआ। (चतुर्थ स्तबक) महादेव चम्पू' है। इसमें आद्य तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की राज नाभिराज और रानी मरुदेवी से उक्त अहमिन्द्र कथा वणित है। आरम्भ के तीन स्तवकों में ऋषभदेव के वषभ नामक राजपत्र आतीथंकरोनित । पूर्व भवों का सातिशय वर्णन है। बाद के ७ स्तवकों में और जन्मकल्याणक मनाये गए । (पंचम स्तबक) इसमे ऋषभ देव, भरत एवं बाहुबली का चरित्र चित्रित है। भगवान के अभिषेक और बाल-क्रीड़ाओं का सुन्दर वर्णन इसका कथा भाग अत्यन्त रोचक है, जिस पर हुआ है। अहंदास की नवनवोन्मेष शालिनी प्रतिभा से सम्पृक्त नई (षष्ठ स्तवक) इसमें ऋषभदेव की विवाह और उनके नई कल्पनाओं तथा श्लेष, विरोधाभास, परिसख्या आदि १०१ पुत्र तथा ब्राह्मी और सुन्दरी नामक दो कन्याओं के अलंकारों के पुट ने इसके सौन्दर्य को और अधिक वृद्धिगत __ जन्म का वर्णन है भरत की वाल्यावस्था का सुन्दर चित्रण कर दिया है। यही कारण है कि अजितसेन जैसे काव्य यहां हुआ है । (सप्तम स्तबक) ऋषभदेव ने पुत्र पुत्रियों शास्त्रियों ने पुरूदेव चम्प के पद्यों को उदाहरण के रूप म को विभिन्न शास्त्रों और कलाओं का उपदेश दिया। प्रस्तुत किया है। ऋषभदेव के राज्याभिषेक के बाद नीलांजना का नृत्य इसकी कथावस्तु महापुराण से ली गई है जिसमें और भगवान के वैराग्य तथा दीक्षा कल्याणक का सुन्दर अनेक परिवर्तन किये गए हैं । इसका अंगीरस शात है। वर्णन हुआ है। वर्णन हुआ है। (अष्टम स्तबक) इसमें ऋषभदेव की रसानुकूल माधुर्य गुण की मधुरता यत्र तत्र विद्यमान है। तपस्या और राजा श्रेयांस द्वारा इक्षुरस के आहार का अनेक गद्य वाणभट्ट की टक्कर लेते है। कुल २३ छन्दों वर्णन है । फाल्गुन कृष्ण एकादशी को भगवान को केवलका प्रयोग पुरूदेव चम्पू में हुआ है । अर्हद्दान का प्रिय ज्ञान हुआ। देवताओं ने दीक्षा कल्याणक मनाया। (नवम अलंकार श्लेष है इसमें भरत बाहुवलि के युद्ध का सुन्दर । स्तबक) इस में भरत की दिग्विजय और अयोध्या लौटने चित्रण हुआ है। संक्षिप्त कथा वस्तु निम्न है का वर्णन है। (दशम स्तबक) में भरत और बाहुबलि के प्रथम स्तवक में मंगलाचरण के उपरान्त कहा गया तीन युद्धों, बाहुबलि की दीक्षा, केवल ज्ञान, मुक्ति तथा राजा अतिबल के पुत्र महाबल के मन्त्री का नाम भरत को दीक्षा और मुक्ति का वर्णन है। माघ कृष्ण स्वयंबद्ध था। महाबल २२ दिन की सल्लेखना के साथ चतुर्दशी को भगवान ऋषभदेव निवांण को प्राप्त हुए । मरकर ललितांग देव हुआ। वही स्वयं प्रभा नाम को अन्तिम मंगलाचरण के साथ काव्य समाप्त हो जाता हैदेवी उत्पन्न हुई । (द्वितीय स्तबक) ललिताग का जीव जयतां मद्गम्भीरर्वचनैः परिनिवृत्तेर्हेतुः । वजजंध और स्वय प्रभा का चोव श्रीमती राजपुत्री सुरसार्थ सेवितपदः पुरूदेवस्तत्प्रबन्धश्च ।। हुआ। पण्डिता धाय के माध्यम से दोनों का मिलन मनि सव्रत काव्य : हुआ। (तृतीय स्तबक) बजजध और श्रीमती ने पचास अहंद्दाम की दूसरी महत्त्वपूर्ण कृति मुनिसुव्रतकाव्य युगल पुत्रों को उत्पन्न किया और आर्य दम्पती हुए, इसके है। स्वय कवि ने इसे 'काव्य रत्न' कहा है । यह दस सगो बाव श्रीधर तथा स्वयप्रभदेव हुए । श्रीधर का जीव का महा काव्य है जिसमें बीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रत स्वामी

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