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नेमि शीर्षका हिन्दी साहित्य
नेमीश्वर गीत-रचयिता ब्रह्म धर्मसागर अठा- इसकी संवत् १७६८ में लिपिबद्ध प्रति गुटका नं. १०८ रहवीं शती के पूर्वार्द्ध के संत कवि और ये भट्टारक अभय- ठोलियों का मन्दिर, जयपुर के शास्त्र भण्डार में प्राप्य है। चन्द द्वितीय के संघ में थे। नेमीश्वर गीत में कुल १२ नेमि राजुर बारहमासा- रचनाकार लक्ष्मी छन्द है जिसमें राजुल के सौन्दर्य और विरह का सुन्दर वल्लभ खतर गच्छीय शाखा के उपाध्यक्ष लक्ष्मीकीर्ति के निरूपण हुआ है। यह गीत डा० कासलीवाल सम्पादित शिष्य थे। प्रस्तुत बारहमासा इन्होने अठारहवी शताब्दी पुस्तक 'भट्टा० रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एव के दूसरे चरण में लिखा था। काव्य में कुल १४ पद्य है कृतित्व' में दिया गया है। कवि ने इसके अतिरिक्त भी जो सभी सवैया छन्द मे निबद्ध हैं अतः गेयात्मकता सराहस्फुट गीत लिख कर नेमि प्रभु के प्रति अनन्य भक्ति का नीय बन पड़ी है। एक उदाहरण प्रस्तुत हैप्रदर्शन किया है।
उमड़ी विकट घनघोर घटा चिहुं.नेमिनाथ का बारहमासा-इसके कृतिकार
ओरनि मोरनि सोर मचायो। विनोदीलाल (वि० सं० १७५०) तीर्थकर नेमि के एक- चमके दिवी दामिनी यामिनी कुपंथ, निष्ठ भक्त थे अतः इनकी अनेक रचनाएँ नेमि राजुल से
भामिनी कुं पिय संग भायरे । सम्बन्धित है । इनकी कृतियां अत्यधिक लोकप्रिय हुयी लिव चातक पीउ ही पीड़ लइ भई, कारण कई शास्त्र भण्डारों मे एकाधिक प्रतियां भी संग्र
राजभती भुई देह छिपायों। हीत है। यह बारहमासा 'जैन पुस्तक भवन कलकत्ता'
पतिया व न पादरी प्रीतम की अलि, से प्रकाशित हो चुका है । विनोदीलाल कृत 'नेमि
श्रावण आयो पै नेम न आयो। व्याह' सुन्दर खण्ड काव्य है, 'राजुल पच्चीसी' २५
नेमि राजमती जखड़ी-हेमराज नाम के चार छन्दो की लघु कृति है 'नेमिनाथ के नव मगल' मे ६ छन्दो कवि हो चुके हैं । विवेच्य कृति के रचनाकार पाण्डे हेममे नेमि कथा वणित है, 'नेमि राजल रेखता' उर्दू फारसी राज है । डा० कासलीवाल ने अपनी पुस्तक 'कविवर मिश्रित हिन्दी भाषा की रचना है तथा नेमिश्वर राज्ल बुलाखीदास, बुलाकीदास एव हेमराज' में पांडे हेमराज सवाद मे शीर्षक के अनुरूप सवाद शैली मे नेमि के वैराग्य- रचित जखडी की जिस प्रति का परिचय दिया है उसे पूर्ण उत्तर और विरहिणी राजुल के प्रश्न मार्मिक रूप से
तिलोकचन्द पटवारी चाकसू वाले ने सवत् १७८२ मे प्रस्तुत है।
दिल्ली मे लिपिबद्ध किया था। इस लघु रचना की एक नेमिनाथाष्टक-रचयिता भूधरदास अठारहवी।
प्रति बधीचन्द जी के मन्दिर, जयपुर गुटका न० १२४ शताब्दी मूर्धन्य साहित्यकारों में से है। 'नेमिनाथाष्टक' में भी है। आठ छन्दों को एक स्वतन्त्र लघु कति है जिसकी प्रति, नामकुमार को चू दड़ा-एक मुनि हेमचन्द्र रचित गुटका न० ३६५ शास्त्र भण्डार श्री महावीर जी मे है। 'नेमि कुमार की चूदड़ी' देखने का लेखिका को अवसर कवि भधरदास ने 'भघर विलास' नामक पद सग्रह मे मिला । यह कुल ६ पृष्ठो की लघु कृति है और इसकी नेमि राजल पर अनेक पद लिखे है जिनका परिचय पूर्ण प्रति दिगम्बर जैन मन्दिर बड़ा तेरापथियो के शास्त्रडा० प्रेमसागर जैन ने अपनी पुस्तक हिन्दी जैन भक्ति भण्डार के वेष्ठन ६१५ मे सकलित है । गीत की टेक है काव्य और कवि' मे दिया है।
"मेरी सील सू रगी चूदड़ी"। नेमिनाथ चरित्र-कवि अजयराज पाटणी ने सवत नेमोश्वर रास -कवि नेमिचन्द्र ने नेमीश्वर रास १७९३ मे नेमिनाथ चरित्र की रचना की थी। काव्य- की रचना संवत् १७६६ मे की थी लेखिका को बधीचन्द सृजन की प्रेरणा इन्हे अम्बावती नगर के जिन मन्दिर मे जी के मन्दिर, जयपुर (वेष्ठन १००८) से जो प्रति प्राप्त स्थापित तीर्थकर नेमिनाथनाथ की मनोज्ञ प्रतिमा को देख हुई उसका लेखन काल स० १७८२ है। वस्तुतः यह एक कर मिली। प्रस्तुत काव्य में कुल २६४ पद्य हैं और सुन्दर वारह मासा है और कुल १२ छन्दो में राजुल की