Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ १२, बर्व ३९, कि.४ अनेकान्त से नेमिनाथ के पास भेजती है। यह गीत डा० कासलीवाल कुमुदचन्द्र व्यक्तित्व' (लेखक डा० कासलीवाल) मे प्रकाशित संपादित, अिखित पुस्तक 'महा० रत्नकोति एव कुमुदचन्द्र: हुआ है। व्यक्तित्व एवं कृतित्व' में प्रकाशित किया गया है। नेमिगीत-रचयिता ब्रह्म० सयम सागर भट्टा० नेमाश्वर रास-भट्टारक वीरचन्द्र सत्रहवी शती के कुमुदचन्द्र के शिष्य थे। कवि की कोई बड़ी रचना प्राप्त प्रतिभा सम्पन्न कवि और भट्टारक लक्ष्मीचन्द के शिष्य नहीं हुयी है। नेमिगीत का सृजन सत्रहवी शताब्दी के दूसरे थे नेमीश्वर रास एक लघु कृति है जिसमे केवल नेमिनाथ चरण में किया था इसके अतिरिक्त इन्होंने नेमि विषयक के विवाह की घटना का वर्णन है तथा इसकी रचना संवत् स्फुट पद रचे जो बिभिन्न गुटको मे संकलित है। १६३३ मे पूर्ण हुई थी। वीरचन्द्र ने ही नेमिराजुल के नेमिनाथ रास-खतरगच्छीय शाखा मे नयकमल जीबन वृत पर १३३ पद्यों काएक खण्ड काव्य 'वीर विलास के शिष्य और जयमन्दिर के शिष्य कनककीत्ति ने नेमिनाथ फाग नाम है लिखा था। रास फी रचना १६३५ ई० मे की थी रास की भाषा नेमिनाथ द्वादशमासा- इसके रचयिता सुमति गुजराती प्रधान है और इसकी प्रति विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, सागर (सवत् १६००-१६६५) भट्टा० अभयनन्दी के शिष्य जयपुर मे उपलब्ध है। थे। प्रस्तुत बारहमासे में १३ पद्य है प्रथम १२ पद्यों में सत्रहवी शताब्दी मे ही कवि सिंहनन्दि विरचित विरहिणी राजुल की व्यथा व्यजित है और अन्तिम पद में नेमोश्वर राजमती गीत (गुटका न० २६२ भट्टारकीय कवि प्रशस्ति है । सुमति सागर ने ही एक सुन्दर 'नेमि गीत' दि० जैन मन्दिर, अजमेर) एव 'नेमीश्वर चौमासा' तथा की रचना की थी जिसमे बड़े मार्मिक ढग से वणित है कि साधुकीति रचित 'नेमिस्तवन' एवं नमिगीत का उल्लेख स्वामी के अभाव मे अबला नारि राजुल स्वयं को कैसा मिलता है। रचनाक्रम अविकल रूप से अठारहवी शती में निरीह, अनाथ, परिमल विहीन पुष्प, कमल रहित सरोवर, भौ प्रवहमान रहा। प्रतिमा विहीन मन्दिर जैसा अनुभव करतो है। गीत नेमीश्वर रास- इसके रचयिता मलूक पुत्र भाऊ है 'भट्टा० रत्नकीत्ति एव कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' जो अठारहवी शताब्दी के पूर्वाधं के ख्यात कवि रहे । पुस्तक मे प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत गस में कुल १५५ चौपाई छन्दो मे नेमि के वैराग्य, नेमिनाथ हमची-रचनाकार भट्टा० कुमुदचन्द्र राजुल के संयम और नेमिनाथ के निर्माण का मार्मिक (सवत् १६५६-१६८५) प्रसिद्ध भट्टा० रत्नकीति के प्रमुख निरूपण हुआ है। इसकी प्रतिया गुटका न. ६५ पाटोदी शिष्य थे। नेमीश्वर हमची मे कुल ८७ छन्द हे और भाषा का मन्दिर जयपुर तथा गुटका न० २३२ भट्टारकीय राजस्थानी-मराठी मिश्रित है। कुमुदचन्द्र कृत 'त्रण्यरति दिगम्बर जैन मन्दिर अजमेर मे सग्रहीत है। गीत' एक विरहात्मक गीत है जिसमे तीन प्रमुख ऋतुओं नेमिराजुल बारहमाता-रचनाकार जिनहर्ष मे प्रिय वियोग जनित, राजूल की मनोव्यथा का बड़ा 'जसराज' नाम से प्रख्यात थे और इसी नाम के आधार मर्मस्पर्शी चित्रण है। इसी प्रकार ३१ छन्दो बाले पर 'जसराज बावनी' को तिखा था। नेमिराजुल बारह'हिन्बोल गीत' मे कवि ने विरह विदग्धा राजीमती के मासा जिसे नेमिराजीमती बारहमास सवैया भी कहा गया सन्देश विभिन्न वाहकों के माध्यम से नेमिनाथ तक पहुंचाए है की रचना सवत् १७१५ के लगभग की थी। काव्य मे है। 'नेमिनाथ का दावशमाशा' भी कुमुदचन्द्र रचित कुल १२ सवैया छन्द है और इसकी प्रतियाँ अभय जैन १४ छन्दों की लघु कृति है अषाढ़ से सावन मास तक ग्रथालय बीकानेर तथा शास्त्र भण्डार श्री महावीर जी में प्रसारित इस गीत मे राजुल के उद्गारो की सुन्दर अभि- उपलब्ध है। जिनहर्ष कवि ने ही 'नेमोश्वर गीत' (वेष्ठन व्यक्ति हुयी है। इनके अतिरिक्त कवि ने नेमिभक्ति विषयक १२४५, बधीचन्द जी का मन्दिर जयपुर) एवं 'नेमिराजलविभिन्न रागो में बद्ध, स्फुट पदो की भी रचना की। उक्त स्तवन' गुटका नं० ६७ गेलियों का मन्दिर, जयपुर) की सभी रचनाओं का मूल पाठ 'भट्टा० रत्नकीर्ति एवं रचना की थी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144