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अनेकान्त पर लोकमत श्री पं० फूलचन्द्र जैन सिद्धांताचार्य :
हस्तिनापुर
'और पढ़ या समय न मिले तो न पढ , पर, आपके विचार अवश्य पढ़ता है। आप हो कि किसी की चिन्ता न करके तथ्यपूर्ण लिखते हो। यह प्रवृत्ति सराहनीय है। २७-६-८६ श्री डा० जिनेन्द्र कुमार शास्त्रो पी-एच. डी. :
सासनी 'आगम और सिद्धान्त की ऐसी ऐतिहासिक खोज, बिना लाग-लपेट के प्रस्तुत करना, समाज की आंखें खोलना है। वीर सेवा मन्दिर अब सार्थक हो रहा है। समाज में अनेकान्द जैसी पत्रिका की आवश्यकता है-जिसकी पूर्ति वीर सेवा मन्दिर कर रहा है।'
२६-६-८६ डा०कन्छेदीलाल शास्त्री: सह-सम्पादक, 'जन-सन्देश' (शहडोल)
अनेकान्त मिला : आपके 'मुक्ति मे करुणा एक विसगति, पतन का कारण परिग्रह, जरा सोचिए' तीनों शब्दश: पढें आपके तर्क एव युक्तियाँ आगम के परिप्रेक्ष्य में भी तथा लौकिक दृष्टि से भी उचित है। वीतराग के करुणा कहाँ ? राग-द्वेष की तरह करुणा व कठिनता परस्पर सबद्ध है । श्री प० मूलचन्द्र जी प्रतिभाशाली संस्कृत कवि थे। उनके अभाव की जानकारी मुझे नही थी। फिर भी वे 'विद्वामो घ्नन्तु मागमम्' लिख कर दे गए । लक्ष्मी का सम्मान ही समाज करती है । सरस्वती भी लक्ष्मी का सम्मान करती है, यह आश्चर्य की बात है। आपने दो टूक बात लिखी है। ३-१०-८६ डा० ज्योति प्रसाद जैन : लखनऊ
'आपके लेख बडे ज्ञान-वर्द्धक, बोधक एव मामयिक भी हैं'-चाव से पढता ह, लिखे जाइए। ६.१०.८६ श्री पं० भंवरलाल न्यायतीर्थ : सम्पादक-वीरवाणी, जयपुर-३
आप दिगम्ब रत्व के लिए लिखते हैं-खूब लिखते है । वास्तविक धर्म जो जीवन मे अपनाया जाना चाहिये उस पर आपकी लेखनी कमाल रखती है। मै आपके लेखो को वीरवाणी मे स्थान देने में अपना अहोभाग्य मानता हूं। आप लिखते रहिये, भेजते रहिए। ३-४-८६ डा० नन्दलाल जैन : (रीवां म० प्र०)
श्री पद्मचन्द्र शास्त्री के माध्यम से अनेकान्त की दिशा व्यापक और विकसित हो रही है । इसके स्तर को बनाये रखने मे पण्डित जी महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहे है-उनके स्पष्टवादी लेखो से जागरूकता आ रही है। ७-४-८६ श्री पं० रतनलाल कटारिया : केकड़ी
"जानतः पश्यतश्चोवं जगत्कारुण्यतः पुनः । तस्य बन्ध प्रसंगो न, सर्वाश्रव परिक्षयात् ।।" इसका अर्थ इस प्रकार है
जानते देखते भी (मुक्त जीव) सासारिक करुणा से ऊपर हैं-ऊपर उठ गए है अतः उनके कर्म-बन्ध का पुनः प्रसंग नही होता क्योकि सब आस्रवो का पूर्ण क्षय हो गया है। यहाँ ऊवं को 'जगत्कारुण्यतः' के साथ लगाना चाहिए । अर्थात् संसार के प्रति करुणा से ऊँचे हो गए है । ४-१०-६६