Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 116
________________ वर्ष ३९, कि०४ अनेकान्त तीसरे कोठे में क्यों रखा? मनुष्यों में तीन कोठे रखे गये। उत्तर-वह उपचार से साध्वी हैं, वस्तुतः नही। इस तरह चतुर्णिकाय के देवों के दो-दो कोठे होने से सवस्त्र होने से उसका गुणस्थान शास्त्रों में पांचबा ही कुल ८ कोठे देवगति के और ३ कोठे मनुष्यगति के तथा बताया है वह संयत नही है इसी से उसे पंच परमेष्ठी मे १ कोठा तिर्यंच गति का कुल १२ ही कोठे रखे हैं न कम स्थान नहीं है। जिस वेश से और पर्याय से मुक्ति हो और न ज्यादा । नरकगति के नारकी न अन्यत्र जा सकते सकती है उसे ही पूज्य होने योग्य माना है। आयिका हैं न कोई उन्हे ला सकता है अत: तीन गतियो के आधार इसमें नहीं हैं। अत: परमेष्ठियो के प्रथम कोष्ठ मे उसे पर ये १२ ही कोठे होते है । नहीं रखा है । दूसरा कारण यह है कि उसका और मुनि- ये कोठे भगवान के चारों ओर गोलाकार होते हैं। रत्नों का सानिध्य आचार शास्त्र से निषिद्ध है। अतिशय के कारण एक ही भगवान् चारो दिशाओं में प्रश्न-ऐलक क्षुल्लक तो गृहत्यागी और कुमार चतुर्मख दिखाई देते है। वे सिंहासन पर चार अगुल ऊँचे श्रमण है आचार शास्त्र से भी मुनियों के साथ रहने मे अधर पद्मासन से विराजमान होते है सब जीव उन्हें हाथ कोई दोष नहीं है। फिर उन्हें प्रथम कोठे मे न रखकर जोड़े अपने-अपने कोठो मे बैठे हुए दिव्य ध्वनि का असृतसामान्य मनुष्यो के साथ ११वें कोठे मे क्यो रखा ? पान करते है। उत्तर-ऐलक क्षुल्लक भी वस्त्रधारी होने से पचम- प्रश्न---देवा को पुरूषो से पहिले क्यो रखा? गुणस्थानी है। परमेष्ठी, पूज्य-देव नही है। अतइन्हे उत्तर ---- (क) गोल वस्तु का कही से भी आदि और प्रथम कोठे मे स्थान न देकर ११वें मे दिया है। प्रथम कही पर भी अत किया जा सकता है। समवशरण के कोठे मे केवली-गणधर-उपाध्याय-साधु ये चार परमेष्ठी ही कोठे भी गोलाकार होने से उनमे कोई भी पहिले पीछे होते है। कल्पित किये जा सकते है । ___प्रश्न -- आयिका के कोठे मे सब स्त्रियो को रख दिया (ख) गुणस्थान की अपेक्षा भी आगे पीछे का क्रम तो मुनियो के कोठे में सब मनुष्यों को क्यों नही रखा? नही है क्योकि देवो में चार गुणस्थान तक ही सभव है उत्तर-नायिका पचमगुणस्थान से ऊपर नही हो जबकि तियचो तक में भी पचम गुणस्थान सभव है। सकती जबकि मुनि षष्ठादि गुण स्थानी होते है । आर्यिका मनुष्यो मे तो सर्व ही गुणस्थान है । की तरह अन्य व्रती श्राविकाए भी पचम गुणस्थानी हो (ग) देवो मे मनुष्यों की अपेक्षा विशेष भक्ति होती जाती हैं जबकि मुनियो की तरह ऐलक क्षुल्लकादि कभी है नियोग ड्यूटी भी विशेष होती है। इसी से कल्याणकों षष्ठ गुणस्थानी नहीं हो सकते। अत: आयिका और मुनि मे स्वर्गों के समस्त देव और इन्द्र आते है जबकि सर्व के पद में महान् अन्तर होने से इनके कोठों की योग्यता. मनुष्य नही आते। देव ही भगवान् के चमर ढोरते हैंपात्रता में भी महान् अन्तर है। इससे आयिका के कोठे वष्टि करते है, सिंहासन छत्र भामंडलादि अष्ट प्रातिहार्य मे तो पचमगुणस्थान की सम्भावना से सब स्त्रियां आ करते हैं मनुष्य नही। मूर्ति में भी यक्ष गंधर्व किन्नरादि गई किन्तु मुनि के कोठे में सब मनुष्य नहीं आये क्योंकि का यह सब करते हुए अंकन है, मनुष्य का नही। उनके कुछ न कुछ वस्त्र-परिग्रह है। (घ) कोई भी देवता भगवान् का कभी अवर्णवाद प्रश्न-चार प्रकार के देवो के दो दो कोठे रखे तो नहीं करता सब देवता जैन होते है। कोई अन्य धर्मी मनुष्यों के दो कोठे न रखकर तीन कोठे क्यों रखे गये। मनुष्य ही या मिथ्यात्वी जैनी मनुष्य ही कभी भगवान् का उत्तर-देवों में देव देवी के रूप में दो ही पद होते अवर्णवाद करते हैं जैसे पोते मरीचि ने भगवान ऋषभहै संयत (पूज्य) पद नहीं होता जबकि मनुष्यों में नर-नारी नाथ का किया था। के रूप मे दो पद के सिवा एक संयत (पूज्य-परमेष्ठी) पद (ङ) देवियों के बाद देवो को एक ही गति वाले और होता है अतः देवों में दो-दो कोठे ही रखे गये और होने की वजह से रखा गया बीच में मनुष्यो के आने पर

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