Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 118
________________ नेमि शीर्षक हिन्दी साहित्य 0 डा० कुमारी इन्दुराय जैन जैन परम्परा के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाय की ऐति- हैहासिक प्रामाणिकता भले ही मिद्ध न हो सकी हो परन्तु नेमिनाथ फागु-इसके रचयिता राज शेखर सरि यह निर्विवाद है कि उनका ब्यक्तित्व जैन साहित्यकारो को हैं जो हर्षपुरीय गच्छ के कोटिक गण से सम्बन्धित मुनि अधिक प्रिय रहा है। वर-वेश में सुगज्जिन नेमिकुमार का तिलक सरि के शिष्य थे। पशुओं का करुण क्रन्दन सुनने मात्र पर वाग्दत्ता राजुल २७ पद्यों वाले इस फागु की रचना कवि ने वि० (राजीमती) को विवाह मण्डप में विग्ह दग्ध छोडकर सं० १४०५ के लगभग की थी । काव्य भक्ति प्रधान है अक्षय वैराग्य धारण कर लेना तथा रेवतक पर्वत पर तदपि राजुन के सौन्दर्य चित्रण सम्बन्धी पद दृष्टव्य हैंदुर्धर तपश्चर्या द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त करना, साथ ही किम किय राजल देवि तणऊ सिणगारु भणेवऊ, राजुल के संयम, अनन्य निष्ठा एवं अन्त में वैराग्यपूर्वक चपइ गोरी अइधोइ अगि चन्दन लेवउ । मुक्तिलाभ की घटनाओं ने कवियों को कितना अधिक खूप भरविड जाइ कुसुम कस्तूरी सारी, प्रभावित किया है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं उनके जीवन सीमतइ सिंदूर रे मोति सरि सारी ॥ नेमिनाथ नव रस फागु-इसके रचयिता सोम पर लिखी गयी विपुलात्मक कृतियां । सुन्दर सूरि हैं तथा फागु की भाषा पर प्राकृत एवं गुजयं तो आगम ग्रन्थों जैसे कल्पसूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, राती का पर्याप्त प्रभाव है कवि ने तीर्थंकर नेमिनाथ के अन्तकृद्दशा, ऋषिभाषित आदि, विभिन्न पुराणों में यथा प्रति अपनी अनन्य भक्ति को निवेदित किया है। हरिवंश पुराण, महापुराण, नेमिनाथ पुराण, पाण्डवपुराण, नेमिनाथ विवाहलो-उपाध्याय जयसागर रचित उत्तर पुराण आदि तथा अन्य काव्य ग्रन्थों यथा त्रिषष्टि इस कृति का परिचय डा० प्रेम सागर जैन ने 'हिन्दी जैन शलाका पुरुष चरित, च उपन महापुरुष चरित्र, प्रद्युम्न- भक्ति काव्य और कवि' पुस्तक में पृष्ठ ५२ पर दिया है। चरित्र, सौरिचरित्र, श्रीचिह्न काव्य, द्विसंधान काव्य, काव्य का रचना काल वि० सं० १४७८ लगभग है। वसुदेव हिण्डी जैसी महत्त्वपूर्ण रचनाओं में तीर्थकर नेमि- नेमीश्वर का बारह मासा-विवेच्य काव्य कृति नाथ का जीवन वर्णित है परन्तु प्रस्तुत लेख में विस्तारभय के रचनाकार बूचराज विक्रम की १६वी शती के अन्तिम से, केवल हिन्दी भाषा मे विरचित नेमि शीर्षक कृतियों चरण के प्रमुख व वियो में से थे । इनके बूचा, वल्ह, वील्ह का परिचय देना अभीष्ट है । १४वी १५वी शताब्दी तक वल्हव नाम भी लोकप्रिय रहे तथा ये भट्टारक भुवनकीति उत्तर भारत में अपभ्रंश भाषाओं का प्रसार और प्राचर्य के शिष्य थे । 'नेमीश्वर का बारहमासा' में राग बड़हंस रहा तदपि खडी बोली हिन्दी तथा अन्य स्थानीय बोलियो निवद्ध कुल १२ पद्य हैं तभा प्रारम्भ श्रावण मास से करके का स्वरूप लिखना प्रारम्भ हो गया था अतः नेमि शीर्षक आषाढ पर समाप्त किया है । इसके अतिरिक्त बूचराज ने रचनाओं में जो हिन्दी भाषा की सर्व प्राचीन रचना मिली 'नेमिनाथ वसन्तु' तथा 'वील्हब नाम से 'नेमीश्वर गीत' है वह 'नेमिनाथ फाग' है जिसके रचयिता राजशेखर सरि गीत की रचना की थी। 'कवि बूचराज एवं उनके समहैं तथा कृति का रचनाकाल संवत् १४०', लगभग है कालीन कवि' नामक पुस्तक में लेखक, सम्पादक डा० अतएव लेख में इस कृति से लेकर बीसवी शताब्दी तक कस्तूरचन्द कासलीवाल ने 'नेमीश्वर का बारहमासा' तथा की रचनाओं का कालक्रमानुसार संक्षिप्त उल्लेख प्रस्तुत 'नेमिनाथ बसन्तु' का मूल पाठ प्रस्तुत किया है। 'नेमी.

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