Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 111
________________ मोमबहम IIIIIII, 7 TAIR - परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम्॥ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर- निर्वाण सवत् २५१३, वि० स० २०४३ वर्ष ३६ किरण ४ अक्टूबर-दिसम्बर १९८६ णमोकार-महिमा घणघाइकम्ममहणा, तिवरणवरभव्व-कमलमत्तण्डा । अरिहा प्रतणारणी, अणुबमसोक्खा जयंतु जए ॥१॥ अट्टविहकम्मवियला, रिपट्टियकज्जा परगट्ठसंसारा । दिट्ठसयलत्थसारा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥२॥ पंचमहन्वयगा, तक्कालिय-सपरसमय-सुदधारा । रणारणागुरगगरणमरिया, पाइरिया मम पसीदंत ॥३॥ अण्णाणघोरतिमिरे, दुरंततीरम्हि हिंडमारणारणं । ___ भवियारगणुज्जोययरा, उवझाया वरमदि देंतु ॥४॥ थिरधरियसीलमाला, बवगयराया जसोहपडिहत्था । बहुविरणयभूसियंगा, सुहाइं साहू पयच्छंतु ॥५॥ भावार्थ- सघन-घाति कर्मों का आलोडन करने वाले, तीनों लोकों में विद्यमान भव्यजीवरूपी कमनों को विकसित करने वाले सूर्य अनंतज्ञानी और अनुपम सुखमय अरहंतों की जगत् में जय हो। अष्टकर्मों से रहित, कृत्यकृत्य, जन्ममृत्यु के चक्र से मुक्त तथा सकलतत्त्वार्थ के दृष्टा सिद्ध मुझे सिद्धि प्रदान करें। पंचमहावतों से समुन्नत, तत्कालीन स्व-समय और पर-समयरूप श्रुत के ज्ञाता तथा नानागुणसमूह से परिपूर्ण आचार्य मुझ पर प्रसन्न हों। जिसका ओर-छोर पाना कठिन है, उस अज्ञानरूपी घोर अंधकार में भटकने वाले भव्यजीवों के लिए ज्ञान का प्रकाश देने वाले उपाध्याय मुझे उत्तम मति प्रदान करें। सो माला को स्थिरतापूर्वक धारण करने वाले, संगरहित, यशःसमूह से परिपूर्ण तथा प्रवर विनय से अलंकृत शरीर वाले साधु मुझे सुख प्रदान करें। 000

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