Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ आयुर्वेद में अनेकान्त 0 आयुर्वेदाचार्य राजकुमार जैन, दिल्ली एकान्त से भिन्न या विपरीत अनेकान्त है। एकान्त में यह गुण के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। यही कारण है कि एक ही पक्ष का कथन या प्रतिपादन होता है, जबकि वस्तु के लिए सामान्यतः कहा जाता है कि वह अनेक या अनेकान्त में अन्य पक्ष का भी प्रतिपादन किया जाता है। भिन्न गुण-धर्म बाली है। जैसे आयुर्वेद के अनुसार वात में एकान्त के अनुसार जो कथन किया जाता है उसमें "यह पक्ष, शीत, लघु, सूक्ष्म, चल, विषद, खर आदि अन्यान्य बात ऐसी ही है" इसका प्रतिपादन किया जाता है, जबकि गूण धर्म पाए जाते हैं। पित्त में उष्णता, द्रवता, स्नेह, अनेकान्त के अनुसार "ही" के स्थान पर "भी" शब्द की न पर “भा शब्द का अम्लता' सर, कटु आदि गुण पाए जाते हैं और श्लेषमा अमलता' मर कर आदि विशेष महत्व दिया जाता है । अर्थात् यह बात ऐसी ही है मे शैत्य, श्वत्य, स्निग्ता, गुरुता, श्लक्ष्णता आदि गुण पाए कहने की अपेक्षा" यह बात ऐसी भी है"-इस प्रकार जाते है। इससे स्पष्ट है कि वस्तु या द्रव्य अनेक गुण कहा जाता है। अनेकान्त मे एक ओर जहां पक्ष भी धर्मात्मक है। विशेष या दृस्टिकोण का एक पहलू है वही दूसरी ओर दार्शनिक सन्दर्भ में "अन्त" शब्द का अर्थ "निर्णय" दूसरा पक्ष या पहलू भी कहा जाता है । अत: उसमे दृण्टि भी लिया जाता है। अत: “अनेकान्त" पर विचार करने कोण की व्यापकता विद्यमान रहती है। अनेकान्त में से पूर्व “एकान्त" की विवक्षा भी आवश्यकक है, ताकि दूसरा पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण होगा, जितना पहला । विषय की विवेचना समुचित रूप से की जा सके । पक्ष । अतः यह समानता के दृष्टिकोण पर आधारित है। एकान्तवाद का अर्थ जिस वाद (कथन) में एक (केवल यही कारण है कि शास्त्र में एक स्थान पर जो बात कही एक धर्म मात्र) का अन्त अर्थात् निर्णय हो वह एकान्तवाद गई है, अन्य स्थान पर वही बात अन्यथा रूप मे या भिन्न कहा जाता है (एक: केवलम् अन्तः निर्णयः यत्र यत्र वादे प्रकार से कही जा सकती है। इसका कारण वहा प्रसग सः एकान्तवादः) वस्तुमें यद्यपि अनेक धर्म एक ही साथ रहते या विषय की भिन्नता है। इसीलिए उसमे व्यापकता का हैं ! किन्तु वे सब धर्म एक शब्द द्वारा एक ही समय में दृष्टिकोण रहता है । ष्टिकोण की व्यापकता उदारता की नही कहे जा सकते है। उन सब धर्मो की विवक्षा मे सूचक होती है, जिससे दूसरे के मत को समझने मे महायता वक्ता भिन्न-भिन्न शब्द और समय द्वारा कहता है ! मिलती है। अनेकान्त के कारण विरोधभाव और विग्रह किन्तु शब्द वाचक है और वस्तु वाच्य है एक शब्द द्वारा की स्थिति उत्पन्न नही हो पाती और वातावरण मे सभ्यता एक धर्म एक समय में बताया जाता है तो भी वाच्य बनी रहती है। (वस्तु) सब धर्मों से युक्त ग्रहण की जाती है। अतः ____ अनेकान्त का अर्थ सामान्यतः इस प्रकार से किया जा एकान्त पक्ष की अनेकान्त पक्ष मे वाधा आती है । वास्तव सकता है-"न एकान्तः इति अनेकान्तः" अर्थात् जिसमें से एक शब्द द्वारा एक समय में कथन करने पर एक ही एकान्त (एक पक्ष का प्रतिपादन) न हो या जो एकान्त धर्म का निर्णय करना सर्वथा युक्ति समत नहीं है। धर्मा से विपरीत हो वह अनेकान्त है। इसी प्रकार अन्य वस्तु से एक ही शब्द द्वारा एक ही समय में सब धर्मों को व्याख्या के अनुसार अनेके अन्ताः धर्मा : यस्मिन् सः- कथन करना सम्व नहीं है। फिर भी वस्तु में अनेक धर्मी बनेकान्तः अर्थात् जिसमें अनेक नन्त यानी धर्म हों वह का निवास रहता ही है। जैसे "जल" शब्द से संघात/ भनेकान्त है। धर्म शब्द यहां स्वभावबाची है। कहीं-कहीं 'सलिल' शब्द से जमना/"वारि" शब्द से वरण आदि का

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144