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पादान्तेतस्युरम्य
४३/३६ २० प्रद्युम्न
वर्ष प्राप्त
१०: ३६ कि.
मनमान ११. तापत्यविहीनाया विलूनालवल्लरीम ।
(क) कालसंवर ।..."प्रकृष्टद्युम्नधामत्वात प्रद्युम्न इति स्नास्यतस्तीमंधः कृत्वा पायोस्तु वप्पूवरी ॥
संज्ञितः । ह० पु० ४३।५६, ६१ हरि० पु० ४३/२६ (ख) उत्तरपुराण के अनुसार विद्याधर शिशु का नाम देव(क) विष्टिशलाकापुरुष चरित एवं "प्रद्युम्न चरित" में दत्त रखता है।
७०६० सत्यभामा यह शर्त बलराम की ताक्षी में रखती हैं। (ग) त्रिषष्टि में कृष्ण शिशु का नाम प्रद्युम्नं रख चुके १२. त्रिषष्टि के अनुसार एक दासी श्री कृष्ण को थे पर संवर भी गंयोगवश उसका नाम "प्रद्युम्न"
रुक्मिी के पुत्र जन्म की सूचना देती है। नारायण रखता है। कृष्ण रुक्मिणी-भवन में जाते हैं और नवजात शिशु १६. साधारुकृत "प्रद्यम्न चरित" की प्रकाशित प्रति में को गोद में उठाकर, उसकी अभूतपूर्व कान्ति देख १२वें वर्ष में लौटने का उल्लेख है। जबकि अन्य उसका नाम तक्षण 'प्रद्युम्न" रखते हैं।
सभी कृतियों में १६वें वर्ष ही वापस आने का वर्णन १३. शिरोन्ते सत्यपविष्णोः पादान्तेतस्युरन्यया ।
ह० पु० ४३/३६
२० प्रद्युम्न इतिनाम्ना सो पितुभयां माक्ष्यते पुनः । १४. विशष्टि में धूम्रकेतु स्वयं रुक्मिणी का वेश बनाकर
संप्राप्त षो शेवर्ष प्राप्त षो शलाभकः । आता है और शिशु का हरण करके उसे बताठ्यगिरि
स प्रज्ञप्ति महा विद्याप्रधोतित पराक्रमः । में भूतरमण उद्यान की तक्षशिला के नीचे छोड़ जाता
हरी० पु० ४३।१६ १५. (क) हरि० पु० ४३।३६-४८
२१. "प्रद्युम्न" एवं जाम्बवती पत्र "शाम्ब", के पूर्वभवों (ख) उत्तरपुराण ३२२५१-५३
में उनके क्रमश: शृगाल अग्निमति वायुभूति, स्वर्ग (ग) बाधनहाय सिला सोपेखि,
विमान के देव, पर्णभद्र-मणिभद्र, सोधर्म, स्वर्ग के देव, इहितल धरउ मरउ दुख देखि ।
मधु-कैटभं, अच्युत स्वर्ग के देव. इन भवों का हरिप्रद्युम्न चरित-साधारु कृत छन्द ।२५ वंश पुराण, नेमिनाथ पुराण, प्रद्युम्न चरित (महा१६.(क) उत्तरपुराण, प्रद्युम्न चरित (महासेना चार्य)
सेना चार्य) त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित सभी में प्रद्युम्न चरित (साधारु) में कालसंवर की पत्नी
समान एवं विस्तृत वर्णन है। उत्तर पुराण में भी का नाम कांचन माला है।
इन्हीं पूर्वभवों का वर्णन है केवल इसमें कैटभ के (ख) त्रिशष्टि में कालसंवर के लिए विद्याधर की स्थान पर "क्री इव" नाम दिया है।
अपेक्षा खेचर (आकाशचारी होने के कारण) २२. उत्तर पुराण के नारद पहले से ही पूर्व विदेह क्षेत्र के सम्बोधन प्रयुक्त है। पत्नी का नाम कनकमाला स्वयंप्रभ तीर्थकर से प्रद्यम्न के विषय में सारी जानही दिया है।
कारी प्राप्त करके आते हैं और रुक्मिणी के विलाप (ग) कवि साधारु ने कालसंवर के स्थान पर, कदम. पर बताते हैं कि तीर्थकर प्रभु के अनुहार वह पुत्र
वित अधसाश्य की दृष्टि से, "यमसंवर" नामक विभिन्न लाभों से युक्त है। १६ वर्ष बाद माता पिता प्रयोग किया है।
से समागम करेगा। उ०पु० ७२।६१-७० १७. इत्युकते सान्त्वयित्वा तां गृहीत्वा कर्णपत्रकम् । २३. हरिवंश पुराण-४७२५ (क) युवराजो येमित्युक्त्वा पट्टमस्य बबन्ध सः। २४. उत्तरपुराण में कालसंवर के विरोधी का नाम अग्निहरि० पु० ४३१५७ राज दिया है।।
७२।७३ (ख) तत्कणेगन सौवणपत्रेणारवि पट्टकः । उ०प० ७२१५६ २५. हरिवशपुराण, उत्तरपुगण, 'प्रद्युम्न-चरित' आदि मे १८. गृहं गर्भा महादेवी प्रसूता तनयं शुभम ।
उक्त लाभों की प्राप्ति का वर्णन है यद्यपि उनके "इतिवार्तापरेकृत्वा कोविदः ।
नामों में किंचित भेद है परन्तु त्रिषष्टि में इस प्रसंग