Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 90
________________ महाकवि धवल और उनका 'हरिवंशपुराण' श्रीमती अलका प्रचण्डिया 'दीति' एम० ए० अपभ्रंश काव्यधारा में पुराणकाव्य ओर चरितकाव्य जिनमें अधिकांश कवि नवौं शती के हैं। यह आश्चर्य का दो प्रभेद उल्लिखित । पराने कवियों की मल रचना विषय है कि महाकवि धवल ने महाकवि पुष्पदंत का नामोहोने से इस प्रभेद को 'पुराण' कहा जाता है । पुराणों का ल्लेख नहीं किया जबकि वह एक असाधारण कवि थे। प्रणयन प्राय: जैन प्रणेताओं द्वारा हुआ है। पुराण की प्रो० हीरालाल जैन ने महाकवि धवल को पुष्पदंत का परम्परा अपभ्रंश में संस्कृत के हिन्दू पुराणों से सर्वथा समकालीन मानते हुए उन्हें दसवीं शताब्दी में रखा है। भिन्न है। जैन वाङमय आगम कहलाते हैं। आगम के चार निर्दिष्ट कवियों में से असग को छोडकर सब नवीं शताब्दी अनुभाग निर्दिष्ट हैं-(१) प्रथमानुयोग (२) करणानुयोग के लगभग या उससे पूर्व हए हैं। असग ने 'अपना वीर(३) चरणानुयोग (४) द्रव्यानुयोग । प्रथमानुयोग के ग्रंथ चरित' हत. शक सं० अर्थात् ९८८ ई. से लिखा था। ही पुराण संज्ञा से सम्बोधित हुए हैं । इतिहास और पुराण अतः कल्पना की जा सकती है कि महाकवि धवल भी में भेदक रेखा खींचते हुए कहा जा सकता है कि इतिहास १०वी शताब्दी के बाद ही हए होंगे। वस्तुतः धवल शक एक पुरुष की कथा होती है और पुराण तिरमठ पुरुषों की संवत की १०वीं शती के अन्तिम पाद या ११वीं शती के जीवन कथा । वस्तृतः अपभ्रश के पुराण पोराणिक शैली प्रथम पाद के महाकवि थे। में रचित प्रबंधकाव्य अथवा महाकाव्य है। हरिवंशपुराण' में २२वें तीर्थकर यदुवंशी नेमिनाथ अपभ्रश वाङ्मय के प्रबंधकाव्य-प्रणेताओं में महाकवि का जीवन वन अंकित है। साथ ही महाभारत के पात्र धवल का नाम अग्रगण्य है । प्रो. हीरालाल जैन ने कौरव और पाण्डव तथा श्रीकृष्ण आदि महापुरुषों के "इलाहाबाद यूनिवमिटी स्टडीज" भाग १, सन १६२५ जीवन वत भी गमिफन हैं। १२२ सन्धियों के इम काव्य में कवि धवल द्वारा १२२ सन्धियों एवं १८ हजार पद्यों में ग्रंथ में प्रत्येक मयों में कड़वकों की संख्या भिन्न-भिन्न विरचित 'हरिवंशपुराण' का निर्देश किया था। कैटलाग ही है । ७वी सन्धि में २१ कहतक है और ११ वी सन्धि में में का आफ संस्कृत एण्ड प्राकृत मेनस्किप्ट्स इन दि सी० पी. केवल चार । संधियों के अंतिम घता में 'धवल' शब्द का एण्ड बरार, नागपुर सन् १९२६ में पृष्ठ ७६५ पर भी प्रयोग परिलक्षित है। ग्रंय में प्रायः प्रत्येक सन्धि की इस प्रथ का कुछ उल्लेख मिलता है। प्रस्तुत ग्रंय श्री ममानि पर महाकवि ने भाषा वर्ण:, पंचम वर्णः, मालदिगम्बर जैन मदिर (वडा १३ पथियों का) जयपुर में वेसिका वर्णः, कोड वणं : इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया विद्यमान है। इस महाकाव्य की हस्तलिखित प्रति का है। इस प्रकार के शब्दों में मगलपंच, टकार, पंचम, हिंदोअवलोकन डा० कोछड ने डा. कस्तुरचंद जी कासलीवाल लिका, वकार. कोलाह आदि शब्दों का भी व्यवहार हुआ है। की कृपा से किया था। पंडित नाथराम प्रेमी ने भी धवल ग्रंयारम्भ में महाकवि ने 'हरिवंशपुराण' को 'सरोरुह' कृत 'हरिव पुराण' का उल्लेख अपने इतिहाम में "कुछ (कमल) कहा है और इस कथा के पूर्व वक्ताओं में चतुअप्राप्य ग्रथ" शीर्षक में किया है। मुख और व्यास को आदर पूर्वक स्मरण किया है तदनंतर ____ महाकवि धवल के पिता श्री का नाम सूर और मातु मंगनाचार के रूप में चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन किया श्री का नार केसुल्ल था। आपके गुरू का नाम अम्बसेन गया है । महाकवि धवल क्षणभंगुर शरीर की सश्वरता का था। आप ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हा थे परन्तु बाद में आप वर्णन करते हुए स्थायी अविनाशी काव्यमय शरीर रचना ने जैन धर्म अपनाया था। कवि द्वारा निर्दिष्ट उल्लेखों के का विचार करते हैं। यथाआधार पर उनकी प्रतिभा और कवित्व शक्ति का परिज्ञान जो णवि मरइ ण छिज्जइ णवि पीडिज्जइ, हो जाता है। 'हरिव शपुराण' के आरम्भ में महाकवि धवल अक्खउ भुवणि भुवणि मैं भीरुवि । ने अपने पूर्ववर्ती कवियों एवं काव्यों का उल्लेख किया है (शेष पृ० कवर ३ पर)

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