Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 104
________________ जरा सोचिए ! १. धार्मिक शिक्षा के कम्प्यूटर यह कम्प्यूटर युग है और विश्व तथा अपने देश भारत ने इस दिशा में पर्याप्त प्रगति की है। जो कार्य पहिले महीनो और सालो मे पूरा किया जाता था, वह अब कम्प्यूटरो द्वारा त्वरित सपन्न कर लिया जाता है । इस प्रक्रिया मे समय और द्रव्य दोन की बचत है । यद्यपि थोड़ी हानि भी हे और वह है-क्लर्कों आदि की छँटनी के आसार की, उनके बेकार हो जाने की सभावनाओ की पर, सरकार बड़ी समझदार है । जब वह सरकार बनी है, तो वह प्रजा के हितो के मार्ग भी खोजेगी । यह उसका कार्य और फर्ज है हमे इससे क्या लेना-देना । अस्तु ।' हम तो इस समय धर्म-क्षेत्र मे बंठ है और धर्म की बात कर रहे है | स्मरण होगा कि पहिले समय मे जीवन का तिहाई अश व्यय कर वह भी बड़े परिश्रम से शिक्षा ग्रहण की जाती थी और फिर भी निष्णात ज्ञान में सदर जाता या कार वप-दो व ट्रॉन-सन्टर चक्कर लगाकर उस सन्दह का दूर किया जाता था तब कहो सतोष हाता था। आज तक के सभी निष्णात विद्वान् बुजुर्गों का इसी मार्ग से गुजरना पड़ा है। ऐसी स्थिति बार आजको स्थिति का मुकाबला करन से अब तो एसा स्पष्ट होने लगा है कि वास्तव म आज धम-क्षत्र में शिक्षा के साधन में कम्प्यूटर का निमारा हो चुका है। कार्य दीर्घकाल में सम्पन्न होता था वह काय अब साप्ताहिक या पाक्षिक शिक्षण शिविरा द्वारा अल्प समय में पूरा होने लगा है । नेताओं के शब्दा म इस चमत्कार तक कह दिया जाय ता भी सन्देह नहीं ! ठाक भी है वह नता हो क्या जो कोई चमत्कार न कर । अस्तु, - हमने ऐसे कम्प्यूटराइज्ड कई शिक्षण शिविरो को देखा है और आप उद्घाटन विसर्जन पर्यन्त देखा हूँ व्यवस्थापका शिक्षका ओर शिक्षाथियों को भी देखा हूँ हमने किसा शिक्षण शिविर के उद्घाटन में नेताओं का स्टेज पर विराजमान देखा, उन्हें मालाएं पहनते देखा और 1 'परस्पर प्रशंसन्ति' का अनुसरण करते हुए देखा। यह सब हमारे मन्तव्य के अनुकूल न हो ऐसी बात भी नही । परन्तु हमे दुख तब होता है जब किसी बारात में बर को पीछे फेक स्वयं बाराती पहिले से मालाएँ पहिनने लग जायें और यश लूटने लग जायें एक शिविर उद्घाटन में हमने देखा कि शिविर में निमन्त्रित शिक्षक विद्वान् नीचे जन सधारण मे मौन से नीचा मुख किए बैठे थे मानो वे अपनी अब जना के दर्द म हो और आयोजक तथा नेता ऊँची स्टेज पर विराजमान थे । हमारा शिर शर्म से नीचे झुक गया । एक शिक्षक ने हमें इसका इशारा भी किया । इससे ऐसा न समझे कि हम किसी के सम्मान के पक्षपाती नहीं हम सम्मान देना चाहते है पर लक्ष्मी से पहिले सरस्वती को । और ऐसा करना दखना हमारी धमनियों और रक्त मे समाया हुआ है । हम तब भी पीड़ा होती है जब कोई किसी विद्वान् व्यक्ति कभी अमु का धन या धन का सम्मान न कर; उसका खुशामद करें । यतः हमारी दृष्टि में सन्मान और खुशामद दानां क्रमश उठे और गिरे, दो मिन स्तर है । हाँ, ता कम्प्यूटर की बात है। हम तो ऐसे शिक्षणसत्रों का कम्प्यूटर और कम्प्यूटर तैयार करने की फैक्टरी ही कहूँगे, जिनस अल्पकाल में ही शिक्षक रूपी- कम्प्यूटर नए कम्प्यूटर का तैयार करत हा और तैयार नय कम्प्यूटर अन्य नए कम्प्यूटरो का इनसे एक साथ यह भो होगा कि हम स्वयं आचार-विचार पारूकर बच्चा का कोई आदर्श उपस्थित करने के कष्ट से छुटकारा भी मिला रहेगा कम्प्यूटर, कम्प्यूटरो का निर्माण सस्ते मे ही करते रहुग । अस्तु; इस विषय में हम ता बाद में लिखेगे । पहिले आप ही सोचिए कि यह उपाय धर्म-शिक्षा म कितना कारगर रहूँगा कही ऐसा ता नहीं कि जैसे सरकारी कम्प्यूटर कभी-कभी प्रायः गलत बिजली बिल बनाते है, वैसे अक्षकचरे धर्म-कम्प्यूटर जैन धर्म की गलत तस्वीर खींच धर्म को विकृत करने में सहायी सिद्ध हो । सोचिए

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