Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 105
________________ इससे ऐसा भी न समझें कि हम सत्रों के प्रतिकन हैं, छाग डाल दे, तो ऐसी घटनाओं के बटन को आप उस अपित हम तो नाहते हैं-पत्र लम्बे चलें। जिन्हें ममय हो व्यक्ति का दुर्भाग्य कहकर घटना के सूत्रधार चोर, डाक उनके रंगलर चलें। हमें खशी होगी। यदि कुछ प्रशिक्षणार्थी सम्बन्धित राज्याधिकारियों को कोसेंगे तथा जिसके साथ लम्ने मपय तक, नियमित 'वीर सेवा मन्दिर' का सहयोग रोमी घटनाएं घटी हों उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करेंगे। लेने की दिशा में मोचें। वीर मेवा मन्दिर उनके शिक्षण या कों? इसीलिए न कि वह आपका हमसफर है-आप की मपचिन Bातम्था करेगा सा हमारा ति गम है। भी सी श्रेणी के जिसमें रखकर वह लोगों में जीवित कपणा दम मंबंध में मोचें और 'महासचिव' में संपर्क कर है। आप मौनते कि कल को हमारे साथ भी मीही मार्ग प्रशस्त करें। घटना हो सकती है। हम सब एक ही थैली के चट्टे-बटटे एक बान और समाज में चारों ओर जोर है कि विद्वान ही नो। यदि नहीं पा हमारे साथ घट गया तब हमें मटीं मिलते। इसलिए भी शाम पाने के लिए शिक्षक कौन लेगा? कोई मान्वना भी न देगा और न कोई वैयार किा जा रहें । बडी खगी की बात है कि काम मागे महायता ही करेगा। बम, आप उसके हमदर्द हो आगे बहै और सभी नगर कफ न कफ धारणिया नलनी जाते है। रकों में अनग विगणों के अध्यापकों को णिक्षित कर अब जरा मंबंधित व्यक्ति की विशेषताओं का विश्लेषण जा अतिरिक्त अलाराणि देकर काम नलाया जाने की सजा का THE AATA गों स्कीम ठीक हो। पर टप गह मोनने कि कर्णोपान में प्रामाणिक और मदाचारी भी है फिर भी उसके छापा हो जाय कि हममे किन्हीं म्कलों में जमे हा धार्मिक पद गया. चोरी हो गई । इम में आप आश्चर्य न करें क्योंकि निणात विद्वानों को हानि नठानी पड जाय । क्योंकि यह अयिक मगवादी आदि के माथ ऐसी घटनाओं का कोई अर्थ-यग है. हर व्यक्ति पैमा जगाटा चाहता है. और देने विरोध नहीं--अहिंमक मन्यवादी, प्रामाणिक और मदा. वाला भी पैमा बनाना नाहना है। रोये ों महगे विद्वानों नारी हाक्तित्व में पन हो सका है और धन होने पर को कौन रखेगा? जन उसे मम्ते में शिक्षक मिलने हों। चोरी भी हो सकती है. डाका भी पड़ सकता है और छापा इस दिशा में यदि प्रवन्धकों की दरि मही रहे और वे भी पद सकता है। हां यदि उसके पाम धन (परिग्रह) न विद्वानों को जो जहां जमे रने दें और पहिने पूर्ण निरुणान न पण निरुणान होना तो ऐमी नौवन की संभावना मे अवश्य बचा जा सोही विद्वानों को स्थान दें. और पैमा का लोच न करें तभी ठीक मकता था। और इसी धन आदि पर-वस्तु को हम परिग्रह होगा। अपथा, अर्थ की दष्टि में संक्रवित लोग, पंमा के नाम से संबोधित कर रहे हैं। जो समस्त संकटों का र बचाने के ख्याल में, लगे हरा विद्वाना तक का जवाब दकर कारण बनता है। यह नारा और वलन्द न कर दें कि-विद्वान मिलते ही शायद आप हमारी दष्टि से सहमत हो सकें, इसीलिए नहीं हैं। आगे क्या होगा इमे तो हम नहीं जानते, समय हम उसका संकेत दे रहे हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ही बतायेगा कि विद्वानों को ठोकरें खानी पडेगी या उनका कोई भी व्यक्ति हिमा आदि पाप करने को कब और क्यों सम्मान रहेगा या धर्म की पहाई ठीक चलेगी भी या मजबूर होता है ? वह हिंसा आदि पाप तभी करता है जब नहीं ? हो सकता है कही ये धर्म-वृद्धि के सस्ते बहाने, धर्म उसमें मिथ्यात्व, क्रोध-मान माया, लोभ की मात्रा हो और ह्रास का ही श्रीगणेश न हो! जरा सोचिए। इनकी मात्रा तभी होगी जब उसमें राग-द्वेष हों और राग२. अपरिग्रह ही क्यों ? द्वेष के कारण ही उसमें हास्य, रति-अरति, शोक भय, ऊंचे स्वर में अहिंसा का जयकारा देने वाले तथा जुगुप्सा और वेद भी होंगे। इन सभी बातों को जैन-दर्शन अपनी सत्यवादिता, ईमानदारी और सुशीलपने का दावा में अन्तरंग-परिग्रह कहा गया है और इन्हीं के कारण करने वाले किसी व्यक्ति के घर चोरी हो जाय, डाका पड़ बहिरंग-परिग्रह की तर-तम मात्रा भी होती है। अत: जाय, या कोई आयकर अधिकारी व विक्रीकर अधिकारी सब पापों का मूल-परिग्रह है ऐसा मानना चाहिए और पंच

Loading...

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144