Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 88
________________ १४, वर्ष २६, ०६ शची मष्ट सुन्दर शुभ गात, विकसित बदन कहें ते बात । सदा काल नव, योवन रहे, कोमल देह सुगंध अति बहे ॥१०१ कठिन नीक उर कुच कलस.विराज, मुख की ज्योति कोटि शशि लाज। कोटि सत्ताईस देवी मन हरनी, भोग विलास रूप सुख धरनी ॥१०२ शृंगार बहुत आभूषण लिए, हाव भाव विघ्रम रस किए। अति कटि क्षीण, कमल दल नैन, कला गीत बोले शुभ न ॥१०३ जनम सफल पुनि हमरो भयो, जब तुम आनि देव पद लयो। ऐसे वचन सुने सुखदाई, भयो आनन्द महा सुख पाई ॥१०४ एक घड़ी मे अवधि प्रकाश, पूरब पुण्य सकल हित भास । में तप पूरब कोन्हों घोर, व्रत क्रिया पाली अति जोर ॥१.५ में जिनेन्द्र पूजे अति शुद्धि, पात्रहिं दान दियो हित बुद्धि । सो वह पुण्य फलो मोहि आज, सकल मनोरथ पूरे काज ॥१०६ सकल हेतु जानो सुर राय, वह व्रत तप पुण्य यहाँ न बाय । है जिनेन्द्र पूजा इक सार, सो मैं करौं सकल सुख कार ॥१०७ यह विचारि उठि ठाड़े भये, देविन सहित स्नान हित गये । अमृत वापिका रत्ननि जड़ी, महा सुगंध कमल बहु भरी ॥१०५ तहां स्नान करे सुख हेतु, बढयो प्रेम, रस, बहु सुख देत । करी विनोद क्रीड़ा सुख पाय, मानन्द - उमग्यो अत न आय ॥१०॥ उज्ज्वल कोमल वस्त्र सुगंध, पहरें देव महा सुख बंध । कंकम कुण्डलमुक्कट अनूप, भूषण अनेक को कहै स्वरूप ॥११० गीत नृत्य वादित्र निघोष, देविन सहित चल्यो सुर पोष । जिनवर मन्दिर देखे जाय, बहु आनन्द करे. सुर राय ॥१११ अष्टो विधि ले - पूजा करी, शीस नवाय जिन.स्तुति विस्तरी। जनम सफल मेरो. अति भयो, जब - मैं तुम्हरौ दर्थत लमो ॥११२ सकल धर्म फल प्रकटयो बाज़, नन 'नहारि देने. जिमसज । देविन सहित प्रदक्षिणा दई, बहुत भक्ति करि शुभ मति भई॥११३ कर जोड़े, ते बंढे, पाय, पुनि.. इलामन पे बैठे, आय । बीणा-बैन मग डफदाल,. नचे अप्सरा रूप रसाल, ११४ किनन्नर गावे (स्वर) सुरधरि जी, बहुत सौम्य रस उपज उहाँ । विकसित वदन देवी मुंह मुख देखें, रूप राशि छवि भानु विशेष ॥११५ शीत उष्ण, वर्षा, नही. तहाँ, जरा रुजा. भय ,दुख न जहाँ । रात दिवस दीस नही भेद, भल.पुनि-मूत्र विजित स्वेद ॥११६ शुक्र रुधिर तहां- अस्थिन वर्म, मांस · नसा भेवा, नहीं कर्म । धातु उपधातु रहित तनु आग, मम स्फटिक मणि सोहे काय ॥११७ निद्रा आलस. पल महीं भेष, चढह विमान विक्रिया भेष । दीप समुद्र असंख्यनि फिर जिन बाबा करि पातक हरै॥११८

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