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प्राच्य भारतीय भाषाओं में पार्श्वनाथ चरित की परम्परा
० डा० राजाराम जैन, आरा
भण्डर जयपुर में सुरक्षित है, जिसमें कुल ६६ पत्र हैं । इन पत्रों की लम्बाई एवं चोड़ाई १० X ४॥ " है । उसके प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पं० में ३५-४० वर्ण हैं। इसका प्रतिलिपि काल वि० सं० १५७७ है। यह प्रति शुद्ध एवं स्पष्ट रूप से लिखित है ।"
संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश, हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओ के कवियों में भगवान् पार्श्वनाथ का जीवन-चरित बड़ा ही लोकप्रिय रहा है । आगम साहित्य एवं विविध महापुराणों में उनके अनेक प्रासंगिक कथानक तो उपलब्ध होते ही हैं, उनके अतिरिक्त स्वतन्त्र, सर्वप्रथम एव महाकाव्य शैली में लिखित जिनसेन (प्रथम कृत पार्श्वभ्युदयकाव्य' (वि०स० वी सदी) एवं वादिराजकृत पार्श्वनाथचरितम्' (वि० सं० २०६२) संस्कृत भाषा मे देवभद्र कृत पासणाहचरियं (वि० सं० १९६८ ) प्राकृत भाषा में तथा कवि पद्मकीति कृत पासणाहचरिउ (वि० सं० १९८१) अपभ्रंश भाषा मे उपलब्ध है। इन काव्य रचनाओ से परवर्ती कवियो को बड़ी प्रेरणा मिली और उन्होने भी विविध कालो एव विविध भाषाओं में एतद्विषयक अनेक रचनाए लिखी, जिनमे से विबुध श्रीधर' (वि०म० १९८६) माणिक्यचन्द्र' (१३वी सदी), भावदेवमूरि ( वि० स० १३५५), असवाल' (१५वी सदी), भट्टारक सकल कीर्ति ' वि० सं० १५वी सदी), कवि रइधू (वि० सं० १५-१६वी सदी) कवि पद्मसुन्दर" एव हेमविजय" (१६वी सदी) तथा पण्डित भूधरदास ३ (१०वी सदी) आदि प्रमुख है। विबुध श्रीधर कृत पासणाह रिउ -
'पार्श्वनाथ चरित' सम्बन्धी उक्त रचनाओं में से विबुध श्रीधर कृत 'पासणाहचरिउ', जो कि अद्यावधि अप्रकाशित है, उस पर प्रस्तुत निबन्ध मे कुछ प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है। इसका कथानक यद्यपि परम्परा प्राप्त ही है, किन्तु कथावस्तु-गठन, भाषा, शैली, वर्णन प्रसंग, समकालीन संस्कृति एवं इतिहास - सम्बन्धी सामग्री की दृष्टि में यह रचना विशेष महत्त्व - पूर्ण है ।
मूल प्रति परिचय
उक्त 'पासणाहचरिउ' की एक प्रति आमेर शास्त्र
अनेक विबुध श्रीवरों की भिन्नाभिन्नता -
जैन साहित्य मे लगभग आठ विबुध श्रीधरों के नाम एव उनकी लगभग उतनी ही कृतिया उपलब्ध होती हैं । यथा – (१) पासणाहचरिउ, (२) बड्ढमाणचरिउ, (1) सुकुमाल चरिउ, (४) भविसयत्तकहा ", (५) भविसयत्त० पचमीचरित्र", (६) भविष्यदत्तपंचमीकथा, (७) विश्वक लोचनकोश" (c) श्रुतावतारकथा " । इनमें से अन्तिम तीन रचनायें संस्कृत भाषा में तथा पांचवीं रचना अप
भाषा में निबद्ध है । अन्तर्बाह्य साक्ष्यों के आधार पर तथा उनके रचनाकालों को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि उन चारों कृतियो के लेखक भिन्न. भिन्न विबुध श्रीधर है । क्योकि उनका रचनाकाल वि० से... "तक है, जो कि प्रस्तुत पासणाहचरिउके रचनाकाल ( वि० सं० १९८६ ) से वर्षो के बाद की है। इनका परस्पर में किसी भी प्रकार का मेल नही बैठता ।
स
अवशिष्ट प्रथम चार रचनायें अपभ्रंश की हैं। उनकी प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कवि विबुध श्रीधर की हैं, आश्रय मे लिखी गयीं । कवि परिचय -
कि वे चारो रचनायें एक ही जो विविध आश्रयदाताओं के
सन्दर्भित 'पासणाहचरिउ' की प्रशस्ति में विबुध श्रीधर ने अपने पिता का नाम गोल्ह एवं माता का नाम वील्हा बतलाया है । इसके अतिरिक्त उसने अपना अम्य किसी भी प्रकार का पारिवारिक परिचय नहीं दिया ।