Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 77
________________ गणीन्द्र गौतम का २५०० वा निर्वाण वर्ष परंपरा से चला आया ज्ञान समाविष्ट था। एक विभाग में भगवान महावीर के साधिक एक दर्जन चरित्र है, उनके पौराणिक अनुश्रुतियों एवं इतिहास के आधारभूत प्रथमानु- समसामयिक एवं उत्तरवर्ती श्रेणिक, जीवंधर सुवर्शन सेठ, योग या धर्मकथानुयोग का सूत्र रूप से व्याख्यान था । इस अभयकुमार, धन्यकुमार, शालिभद्र, जम्बू स्वामी आदि के अंगप्रविष्ट के अतिरिक्त अगव ह्य श्रुत में १४ प्रकीर्ण या चरित्र रचे गये, भद्रबाह, स्यूलिभद्र, कालक, कुन्दकुन्द पयन्ना सकलित थे। सामान्यतया इस सम्पूर्ण ज्ञान को आदि कई आचार्यों के भी चरित्र लिखे गये, परन्तु द्वादशांग-श्रुत अथवा 'ग्यारह अग-चौदह-पूर्व' कहा जाता गणधरदेव गौतम स्वामि का एक भी नहीं। गोतम-पृच्छा, है। जैन-धर्म-सस्कृति के मूलाधार इस द्वादशांग श्रुत के गौतम स्वामि समाय जैसी दो एक परवर्ती प्रकीर्णक मूलस्रोत एवं अर्थकर्ता तो भगवान तीर्थंकर देव है, किन्तु रचनाएँ हैं, किन्तु वे चरित्र कोटि में नहीं आतीं। उसके ग्रन्थकर्ता, उपसंहारकर्ता, व्याख्याता एवं प्रकाशन दिगम्बर परम्परा के गुणभद्रीय उत्तरपुराण, पुष्पकर्ता श्री गणधर देव हैं। दन्तीय महापुराण तथा अन्य महापुराणों के अन्तर्गत तदनन्तर, कई शतब्दियों तक यह श्रुतागम रूपी ज्ञान- महावीर चरित मे, और असग, विवुध, श्रीधर रइघु, गंगा गुरु-शिष्य परम्परा से मौखिक द्वार से ही प्रवाहित सकलकीति आदि के महावीर-चरित्रो में प्रकाण्ड वैदिक होती रही। कालदोष से उसमे शनैः-शनैः ह्रास एव आचार्यो, गोतय गोत्रीय ब्राह्मण इन्द्रभूति गौतम के भगवान व्युच्छत्ति भी होने लगो। अन्तत: ईस्वी सन् के प्रारम के महावीर के समक्ष आने, उनका शिष्यत्व स्वीकार करने लगभग, श्रुतरक्षा की भावना से प्रेरित होकर कई श्रुत और उनके प्रधान गणधर के पद पर प्रतिष्ठित होकर धराचार्यों ने अग-पूर्वो के तदावशिष्ट ज्ञान के अधिक उनकी दिव्य ध्वनि की द्वादशांगो में गूथने का संक्षिप्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी अशो को पुस्तकारूढ़ कर दिया उल्लेख मात्र है। और कई अन्यों ने मूलश्रुतागम के आधार से तदनुसारी विविध-विषयक स्वतन्त्र ग्रन्थ भी रचने प्रारभ कर दिये। दिगम्बर परम्रा के सर्वोपरि सिद्धान्तग्रन्थों, धवल एवं पाचवी शती ई० के उत्तरार्ध मे श्वेताम्बर परम्परा-सम्मत जयधवल मे भगवान महावीर के अर्थकर्तृत्व एवं तीर्थोत्पादन तदावशिष्ट आगम या आगमाश भी पुस्तकारूढ़ कर दिये की द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावरूप से प्राचीन गाथाओ के आधार गये। उभय आम्नायो के इनआगमो एव आगमिक ग्रन्थो से प्ररूपणा करते हुए जो विशद एव महत्वपूर्ण वर्णन किया पर विविध एव विपुल टीका साहित्य भी रचा जाने लगा। गया है वह इस परिप्रेक्ष्य मे ध्यातव्य है । गौतम को इस प्रकार जिन-भारती का एक भव्य प्रासाद उत्तरोत्तर भगवान के सम्मुख लाने वाले प्रेरक निमित्त के रूप में उन्नत एव विशाल हाता चला गया जो किसी भी अन्य सौधर्मेन्द्र का भी बहुधा उल्लेख है। दिगम्बर परम्परा के परपर। के घामिक साहित्य से गुणवत्ता, वैविध्य एवं पूराणो, पौराणिक चरित्रो एव कथाग्रन्थो आदि के प्रारभ विपुलता की दृष्टियो से इक्कीस ही है, उन्नीस नही। मे प्राय: यह कथन रहता है कि राजगृह के विपुलाचल तो जैन सास्कृतिक परम्परा की इस महतो उपलब्धि पर रचित समवसरण मे मगध नरेश श्रेणिक गीतम स्वामी का प्रधान श्रेय शायद भगवान महावीर से भी अधिक से उक्त कथानक विशेष को जानने की जिज्ञासा करता है, उनके अपशिष्य, प्रधान गणधर एव सुयोग्य उत्तराधिकारी और तब गौतम स्वामि उस पुराण, चरित्र या कचा का इन्द्रभूति गौतम को है। किन्तु विचित्र बात है कि सम्पूर्ण व्याख्यान करते हैं। वायुभूति और अग्निभूति, दोनों जैन साहित्य मे उनका एक भी व्यवस्थित पुरातन जीवन- इन्द्रभूति गौतम के अनुज-सहोदर थे भारी विद्वान थे और चरित्र उपलब्ध नही है, न तो दिगम्बर परम्परा में और उन्ही के साथ दीक्षा लेकर द्वितीयादि गणधर बने यह न हो श्वेताम्बर परम्परा मे। भगवान महावीर के पूर्ववर्ती उल्लेख भी है। यह भी प्रायः सर्वत्र प्रतिपादित है कि जिस तीर्थकरों अनेक शलाका पुरुषो तथा अन्य कई प्रसिद्ध पुरुषो दिन भगवान महावीर ने निर्वाण लाभ किया उसी दिन, एवं महिलाओं के भी पौराणिक चरित्र लिखे गये। स्वयं प्रायः उसी समय, गौतम स्वामि ने केवल ज्ञान प्राप्त

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