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३२, बर्ष ३६, कि.२
के अन्यायो कैसे सुरक्षित रह सकते हैं ? फिर तो ऐसा ही नए प्रकाशन के व्यापार को बन्द कर प्राचीन मूल मागम होगा कि अपने को जन घोषित करते रहो और जैसी चाहो ग्रन्थों के प्रकाशन, पठन-पाठन पर बल दिया जाय। धर्मविमुख प्रवृत्तियां करते रहो । आखिर, रजनाश भा ता क्या कहें ? आज जन-दृष्टि प्रायः 'पर' पर केन्द्रित भगवान न होते हुए, अपने को भगवान धोषित 'कए बैठे हैं। हो बैठी है, सभी 'पर' के सुधार को लक्ष्य बनाए हुए है।
हम एक बात फिर कह दें कि हम जो विचार देते है पूछते हैं हमारा लड़का कैसे धर्मात्मा रह सकेगा या अमुक नम्र होकर देते हैं और वे हर व्यक्ति को विचार कर निर्णय अन्य का सुधार कैसे हो सकेगा? नई पुस्तकें छपाने और के लिए होते है, किसी खंडन-मंडन या उत्तर-प्रत्युत्तर के अन्य साधारण में उनके प्रचार को भी उन्होंने इसीलिए लिए नही होते । पसद आएँ तो ग्रहण करें अन्यथा छोड़ चुन रखा है । ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए कि यदि दें। यह हम इसलिए भी लिख रहे हैं कि कोई सज्जन इन्हें उनका ज्ञान, ध्यान और आचरण ठीक होगा तो आगे सभी समाज में विघटन का मुद्दा न बना लें जैसी कि आज प्रथा ठीक होगा । अतः उन्हें पहिले अपना व्यवहार सुधारने पर चल पडी है। हमारी भावना यही है कि-मूल आगम बल देना चाहिए। आज नेता चिल्लाते हैं, कोई सनता सरक्षित-निर्दोष रहे, विद्वानों का उत्पादन हो, पाठशालाएं नहीं, नेता को खीम उठती हैं। यही खीम यदि नेता को चलें और मल-आगम को विद्वन्मुख से मौखिक रूप मे पढ़ा अपने आचरण के प्रति उठे, तब कार्यसिद्धि हो। हमारा
और सना जाने की परिपाटी पुन: चाल हो। मोखिक इम- निवेदन है कि नेतागण और सर्वसाधारण, सभी मल जिनलिए ताकि कोई गलत रिकार्ड न बने-मभी विद्वान् वाणी को गुरुमुख से पढ़े, उसे समझें और तदनुरूप आचरण विभिन्नमति हो सकते है--कोई अर्थ मे चक भी सकते है। करें तो सभी धार्मिक प्रसग सहज स्थिर और उन्नत हो हम बारम्बार विनम्र प्रार्थना करते रहे है कि अमूल्य जिन- सकते है और जिनवाणी भी सुरक्षित रह सकती है। वाणी की रक्षा हेतु हल्के और काल्पनिक यद्वा-तद्वा लेखन
-सम्पादक (पृ० २४ का शेषांश) गुफाओ में उत्कीर्ण दश्यो से हमे तत्कालीन जैन-समाज अंकन है। राजा अपनी दिग्विजयों में हमेशा दो परिचायकों में प्रचलित आमोद-प्रमोद के माध्यमो एवं साधनों का भी द्वारा घिरा दिखाया गया है, जिनमें एक करा आभास मिलता है। मनोरजन के लिए खेल-कूद, संगीत, है तथा दूसरा पताका । ये दोनो चीजें राजकीय महत्व की नत्य तथा झील-विहार प्रादि का प्रचलन आम था। नृत्य- है। युद्ध-विजय कर वापस आने पर राजा का समारोह संगीत पर स्त्रियों का एकाधिपत्य लक्षित होता है । बांसुरी पूर्वक भव्य स्वागत होता था। एव मदंग आदि वाद्य-वन्द गुफाओ में उत्कीर्ण दृश्यों में स्त्रियों की दशा पर भी इन कलाकृतियों से
सकते हैं। आखेट के दश्यों में लोगों को हिरण का पडता है। समाज में स्त्रियों का सम्मान था। उस्किषियों शिकार तीर-धनुष से, सिंह का शिकार भालों से तथा में कई स्त्रियों को अपने पतियों ने साथ धार्मिक अनुष्ठानों
का शिकार गदा एवं बड़े-बड़े डंडों से करते हुए एवं अन्य समारोहो में भाग लेते हुए दधित किया गया MATAT या है। यद्ध एवं द्वन्द्व के दृश्य भी देखने को है। उन्हें हाथी की सवारी करते हुए तथा आखेट में भाग मिलते है। युद्ध के दृश्यों का अध्ययन करने से पता चलता लेते हए भी चित्रित किया गया है। है कि युद्ध मे तीर-कमान तथा तलवार एव ढाल आदि
इस प्रकार हम पाते हैं कि यदि इन प्राचीन स्मारकों व्यवहार होता था। सतरियों को तलवार एवं उनमें उत्कीर्ण मतियों आदि का गहन अध्ययन किया के अलावा भाला एवडे से लेस भी दिखलाया गया है। जाए तो तत्कालीन जैन समाज के विभिन्न पहलों पर
जाना पडसवारों तथा हाथी-बल का समावेश विस्तृत प्रकाश पड़ेगा तथा बहुत-सी नई जानकारियां था। युद्ध में राजा को स्वय सेना का नेतृत्व करते हुए मिलेंगी।
नेहरू नगर, पटना-१०००१३ दिखबाया गया है। एक दृश्य में चार घोड़ो से जुते रथ का