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आचार्य सोमदेव की माधिक विचारधारा
पड़ता है । अतः राजा को कृषकों के साथ इस प्रकार का एवं वाणिज्य पर राजकीय नियंत्रण न होने से व्यापारी अयनय करना सर्वथा अनुचित है।
वर्ग मनमानी करने लगता है। पदार्थों में मिश्रण, तौल में आयात और निर्यात कर नीतिवाक्यामृत में न्यूनता तथा पदार्थों के मूल्य में वृद्धि करना व्यापारी वर्ग आयात और निर्यात कर का भी उल्लेख मिलता है। इम की स्वाभाविक मनोवृत्ति होती है। वणिकजनों के नापसम्बन्ध मे भी आचार्य ने कुछ निर्देश दिए है। उनका तौल में अनियमितता करने तथा मिथ्या व्यवहार के कारण कथन है कि जिस राज्य मे अन्य देश की वस्तुओं पर सोमदेव ने उन्हें पश्यतोहर बतलाया है। पश्यतोहर शब्द अधिक कर लगाया जाता है तथा वहा के राजकर्मचारी स्वर्णकार के लिए रूढ है, किन्तु उक्न दूषित प्रतियो के बलपूर्वक अल्प मूल्य देकर व्यापारियो से बहुमूल्य वस्तुए कारग ही आचार्य मोमदेव ने वणिक्जन को भी पश्यतोहर छीन लेते हैं उस राज्य मे अन्य देशों से माल आना बन्द कहा है। व्यापारी वर्ग को अधिक लाभ लेने से रोकने तथा हो जाता है। इससे राज्य की आय का प्रमुख स्रोत समाप्त वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करने की योर भी उन्होंने हो जाता है। अत. बाहर के माल पर अधिक कर नहीं सकेत किया है। व्यापारी वर्ग मूल्य में वृद्धि करने के लगाना चाहिए । अल्प कर लगाने से विदेशी व्यापारियो उद्देश्य से सचित धान्य भण्डारी का विक्रय रोक देते है। को देश मे माल लाने की प्रेरणा मिलती है और वे बहुत इससे राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत गम्भीर हो जाती है मा माल लाते है। अधिक आयान होने मे उम पर लगने और जनता को अनेक कष्टो का सामना करना पड़ता है। वाले शूल्क से गजा की आय में पर्याप्त वृद्धि होती है। अतः आर्थिक व्यवस्था को ठीक रखने के लिए राजा का
शुल्क स्थानों की सुरक्षा--किमी देश मे बाहर के यह कर्तव्य है कि वह व्यापार मे नाप-तौल की व्यापारी तभी आ सकते है जबकि उनकी सरक्षा की उचित की रक्षा कर । इसके माथ ही राज्य में आर्थिक सव्यवस्था व्यवस्था हो । यदि शूल्क स्थानो पर अथवा मार्ग में उनको एवं उसके मम्मान की रक्षा के लिए व्यापारी वर्ग में सत्य चोर आदि लूट ले या वहाँ के अधिकारी अल्प मल्य देकर निष्ठा उत्पन्न करे। उनकी बहुमूल्य वस्तुप हस्तगत कर ले अथवा उनसे उत्कोच
जहां व्यापारी लेन-देन में झूठ का व्यवहार करते है, आदि लेने का प्रयत्न करे तो वहा पर विदेशी व्यापारियो
जहा की तुला अविश्वसनीय है, उस देश का व्यापारिक का आना बन्द हो जाता है। इसी कारण आचार्य सोमदेव
स्तर अन्य देशो की दृष्टि में हीन और अविश्सनीय हो शुल्क स्थानो की पूर्ण सुरक्षा को अत्यन्त आवश्यक समझते
जाता है। इसके परिणाम स्वरूप राज्य के व्यापार को है। उनका कथन है कि राष्ट्र के शुल्क स्थान जो कि
महान क्षति पहुचती है। इस कारण व्यापार में मत्यता न्याय से सुरक्षित होते है अर्थात् जहा अधिक कर ग्रहण न
का पालन परम आवश्यक है। जहां पर व्यापारी लोग करके न्यायोचित कर लिया जाता है तथा चोरो आदि
मनमाना मूल्य बढाकर वस्तुओं को बेचते हैं और कम से द्वारा चुराई गई प्रजा की धनादि वस्तु पुन लौटा दी जाती
कम मूल्य में खरीदते है वहां की जनता दरिद्र हो जाती है वहाँ पर व्यापारियो को क्रय और विक्रय योग्य वस्तुओं को
है"। अत: राजा को वहां की ठीक व्यवस्था करनी अधिक दुकानें होने के कारण वे स्थान राजा को कामधेनु
चाहिए। अन्न, वस्त्र और स्वर्ण आदि पदार्थों का मल्य के समान अभिलषित वस्तुए प्रदान करने वाले होते हैं ।
देश, काल और पदार्थों के ज्ञान की अपेक्षा से होना व्यापारी वर्ग पर राजकीय नियंत्रण-राज्य का चाहिए"। जो राजा यह जानता है कि मेरे राज्य में या अन्तिम लक्ष्य जनता का कल्याण एवं उसकी सर्वतोमुखी अमुक देश में अमुक वस्तु उत्पन्न हुई है अथवा नही उसे उन्नति करना है। व्यापारी वर्ग जन कल्याण के मार्ग मे देशापेक्षा कहते हैं। इस समय अन्य देश से हमारे देश में बाधक बन सकता है। अत. उस पर कठोर नियन्त्रण रखने अमुक वस्तु का प्रवेश हो सकता है अथवा नहीं इसे काला का आचार्य सोमदेव ने राज्य को निर्देश दिया है। व्यापार पेक्षा कहते है। राजा का कर्तव्य है कि वह उक्त देश