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अनेकान्त
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नथ मन्दिर नहीं आदिनाथ जिन मन्दिर का निर्माण कराया था जैसा कि आद्य - प्रशस्ति में स्पष्ट उल्लेख मिलता है :सित्ययक पइट्ठावियउ जेण पढमब को भणियइँ सरिसु तेण । [tive] कारावेवि जाहेयो णिकेउ पविइष्णु पंचवण्ण सुकेउ । पप परिय जेम पासही परितु जपु वितेम ।।
पास० १।१।१-२
अर्थात् आपने नाभेय-निकेत [आदिनाथ जिनमन्दिर ] का निर्माण कराकर उस पर पाच वर्ण वाले ध्वज को फहराया है। जिस प्रकार आपने उक्त मन्दिर का निर्माण कराकर उसकी प्रतिष्ठा कराई है, उसी प्रकार यदि मैं 'पार्श्वचरित' की रचना करूं तो आप उसकी भी उसी प्रकार प्रतिष्ठा कराइये ।
उक्त वार्तालाप कवि श्रीधर एव नट्टल साहू के बीच का है। उस कथन में पार्श्वनाथपरित नामक ग्रन्थ के निर्माण एवं उसके प्रतिष्ठित किए जाने की चर्चा तो अवश्य बाई है, किन्तु पार्श्वनाथ के मन्दिर के निर्माण को कोई चर्चा नहीं और कुतुबुद्दीन ऐबक ने नट्टल साहू द्वारा निर्मित जिस विशाल जैन मन्दिर को ध्वस्त करके उस पर "कुब्बतउल-इस्लाम" नाम की मस्जिद का निर्माण कराया थ वह पार्श्वनाथ का नही आदिनाय का मन्दिर था। पार्श्वनाथ मन्दिर के निर्माण कराए जाने के समर्थन मे विद्वानो ने जो भी सन्दर्भ प्रस्तुत किए हैं उनमें से किसी एक से भी उक्त तथ्य का समर्थन नहीं होता" प्रतीत होता है कि पार्श्वचरित को ही भूल से पार्श्व मन्दिर मान लिया गया जो सर्वया भ्रमात्मक है। इसमे सुधार होना अत्यावश्यक
है ।
इसी प्रकार साहू नट्टन को अहस मान लिया गया, जो कि सर्वथा मिथ्या है। विधिवत् अध्ययन न करने अथवा उनकी समझने या आनुमानित आधारों पर प्रायः ऐसी हो भ्रम पूर्ण बातें कह दी जाती है जिनसे यथार्थ तथ्यों का क्रम हो लड़खड़ा जाता है । पासणाहचरिउ की प्रशस्ति के अनुसार अन एवं नट्टल दोनों वस्तुतः घनिष्ट मित्र थे, पिता-पुत्र नहीं । बल्हण राज्यमन्त्री था, जब कि नट्टत साहू दिल्ली नगर का एक सर्वश्रेष्ठ सार्थवाह, साहित्य रसिक उदार,
का पुत्र मूलग्रन्थ का भाषा को न
दानी एवं कुशल राजनीतिज्ञ वह अपने व्यापार के कारण अग, बग, कलिंग, गौड़, केरल, कर्नाटक, चोल, द्रविड, पांचाल, सिंध, खश, मालवा, लाट, जट्ट, नेपाल, टक्क, कोंकण, महाराष्ट्र, भादानक, हरयाणा, मगध, गुर्जर एवं सौराष्ट्र जैसे देशों में प्रसिद्ध तथा वहां के राजदरबारों में उसे सम्मान प्राप्त या" कवि ने इसी नट्टल साहू के आश्रय में रहकर 'पासणाहचरित' की रचना की थी। इस रचना की आदि एवं अन्त की प्रशस्तियों एवं पुष्पिकाओ में साहू नट्टल के कृतित्व एवं व्यक्तित्व का अच्छा परिचय प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तुत "पासणाहचरित" मे कुल मिलाकर १२ संधियएव २४० कवक है। कवि ने इसे २५०० प्रत्य प्रमाण कहा है। कवि ने वर्ण्य विषय का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया है :
सध १- आद्य प्रशस्ति के बाद वैजयन्त विमान से कनकप्रभदेव का चयकर वामादेवी के गर्भ में आना । मन्धि २ - राजा हयसेन के यहां पार्श्वनाथ का जन्म एव बाल लीलाएँ ।
सन्धि ३ - हयसेन के दरबार मे यवन नरेन्द्र के राजदूत का आगमन एवं उसके द्वारा हयसेन के सम्मुख यवन नरेन्द्र की प्रशसा ।
सन्धि ४ - राजकुमार पार्श्व का यवन-नरेन्द्र से युद्ध तथा मामा रविकीर्ति द्वारा उसके पराक्रम की प्रशमा ।
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सन्धि ५ रविकीति द्वारा पार्श्व मे अपनी पुत्री के साथ विवाह कर ले का प्रस्ताव। इसी बीच में वन में जाकर जलते हुए नाग-नानी को अन्तिम बेला में मंत्र-प्रदान एवं वैराग्य ।
सन्धि ६ हयसेन का शोक सन्तप्त होना पार्श्व की घोर तपस्या का वर्णन ।
सन्धि ७- पार्श्व तपस्या एवं उन पर कमठ द्वारा किया गया घोर उपसर्ग
सन्धि ८६ - कैवल्य प्राप्ति एवं समवशरण- रचना एवं धर्मोपदेश |
सन्धि १० रविकीति द्वारा दीक्षा ग्रहण सन्धि ११ – धर्मोपदेश ।