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१० वर्ष ३६, ति० २
अनेकान्त
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'पासणाचरिउ' की समाप्ति के एक वर्ष बाद प्रणीत अपने से कवि का कुल जीवन-काल वि० सं० ११६४ से १२३० बडढमाणचरिउ' में भी उसने अपना भाव उक्त परिचय ही तक माना जा सकता है। प्रस्तुत किया है। वह गृहस्थ था अथवा गृह विरत त्यागी,
निवास एवं सावना स्थान तथा समकालीन राजा
aani इसकी उसने कोई भी चर्चा नही की। कवि की 'विबुध'
'पासणाहचरिउ' की प्रशस्ति में उसने अपने को हरनामक उपाधि से यह तो अवश्य ही अनुमान लगाया जा
याणा देश का निवासी बताया है और कहा है कि वह सकता है कि अपनी काव्य प्रतिभा के कारण उसे सर्वत्र
वहा से 'चदप्पहचरिउ' की रचना-समाप्ति के बाद यमुना सम्मान प्राप्त रहा होगा, किन्तु इससे उसके पारिवारिक
नदी पार करके 'ढल्ली आया था। उस समय वहां राजा जीवन पर कोई भी प्रकाश नहीं पड़ता। 'पासणाहचरिउ' अनगपाल तोमर का राजा था जिसने ।
अनगपाल तोमर का राज्य था, जिसने कि हम्मीर जैसे एवं 'वडढमाणचरिउ' की प्रशस्तियों के उल्लेखानुसार कवि बीर राजा को भी पराजित किया था। यथा-णिरुदल ने 'चंदप्पहचरिउ"" एवं संत 'जिणेसरचरिउ नामक दो वट्रिय हम्मीर वीरु......पास ४२। रचनाएं और भी लिखी थीं। किन्तु ये दोनोअभी तक १८वी गदी के अज्ञात कर्तक 'इन्द्रप्रस्थ प्रबन्ध ५८ अनुपलब्ध ही हैं। हो सकता है कि कवि ने अपनी इन नामक ग्रन्थ मे उपलब्ध तोमरवशी १६ राजाओं में से उक्त प्रारम्भिक रचनाओं की प्रशस्तियों में स्व.विषयक कुछ अनंगपाल १६वॉ राजा था। इनमे अनंगपाल नाम के ३ विशेष परिचय दिया हो, किन्तु यह मब तो उन चनामों राजा है। जिनमें से प्रस्तुत अनगपाल तीसरा था। इसने की प्राप्ति के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।
जिस सम्मीर वीर को पराजित किया था प्रतीत होता है काल निर्णय -
कि वह वागढा नरेश हालिराव हम्मीर रहा होगा, जो विबुध श्रीधर की जन्म अथवा अवसान सम्बन्धी एक बार का भरकर अग्दिल में जा घुसता था और उसे तिथियां भी अज्ञात है। उनकी जानकारी के लिए मन्दर्भ- गैद डालता था। इसी कारण हम्मीर को हालिराव' सामग्री का सर्वथा अभाव है। हनना अवष्य है कि कवि की सज्ञा प्रदान की गई थी, जैसा कि 'पृथिवीराजरासो' मे की उपलब्ध निम्न चार रचनाओ की प्रशस्तियों में उनका एक उल्लेख मिलता है :रचना-समाप्तिकाल अकित है। इनके अनुसार 'पासणाह- "हॉहते ढीलन करियलकारिय अरि मध्य । चरिउ' तथा 'वड्ढमाणचरिउ' का रचना-समाप्तिकाल ताथ विरद हम्मीर को “हाहुलिराव" सुकथ्य ।। क्रमशः वि० सं० ११८६ एवं ११६० तथा समाल चरिउ सम्भवतः इसी हम्मीर को राजा अनगपाल ने हराया एवं भविसयत्तकहा का रचना माप्तिकाल क्रमश ति० होगा। युद्ध मे उसके पराजित होते ही उसके साथी अन्य सं० १२०८ और १२३० है"। जमा कि पूर्व में बनाया राजा भी भाग खड़े हुए थे । यथा - जा चुका है, 'पासणाहचरिउ' एव 'वड्ढमाण चरिउ' गे सेबय सोण कीर हम्मीर वि सगरु मेल्लि चल्लिया ॥छ। जिन पूर्वोक्त 'चंद पहचरिउ' एवं 'स-जिणसरचरिउ' नामक
-पास० ४।१३।२ अपनी पूर्वरचित रचनाओ के उल्ने । कवि ने किए है, वे अर्थात मिन्धु, सोन एव कीर नरेशो के साथ राजा आद्यावधि अनुपलब्ध ही हैं। उन्हें छोड़कर बाकी उपलब्ध हम्मीर भी सग्राम छोड़कर भाग गया। चारों रचनाओं का रचनाकाल वि० स० ११८६ से १ ३० विबुध श्रीधर ने जिम दिल्ली नगर की चर्चा की है, तक का सुनिश्चित है । अब यदि यह मान लिया जाय कि आधुनिक दिल्ली का ही वह तत्कालीन नाम है। कवि के कवि को उक्त प्रारम्भिक रचनाओ के प्रणयन मे ५ वर्ष समय में वह हरयाणा-प्रदेश का ही एक प्रमुख नगर था। लगे हो तथा उसने २० वर्ष की आयु से साहित्य-लेखन 'पृथिवीराजरासो' में पृथिवीराज चौहान के प्रसंगों में का कार्यारम्भ किया हो तब अनुमान , कवि की कुल आयु ढिल्ली के लिए 'दिल्ली' शब्द का ही प्रयोग हुआ है। लगभग ६३ वर्ष की सिद्ध होती है और जब तक अन्य उसमे इम नामकरण की एक मनोरंजक कथा भी कही गई ठोस सन्दर्भ सामग्री प्राप्त नहीं होती, तब तक मेरी दृष्टि है, जिसे तोमरवंशी राजा अनंगपाल की पुत्री अथवा