Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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वर्ष ३६ किरण २
ओम् अर्हम्
अनेका
परमागमस्य बोजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर - निर्वाण सवत् २५११ वि० सं० २०४३
जिनवाणी - महिमा
नित पीजो धो-धारी ।
जिनवानि सुधासम जानके नित पीजो धी-धारी ॥ वीर- मुखारविन्द तें प्रगटी, जन्म जरा गद-टारी । गौतमादिगुरु उर घट व्यापी, परम सुरुचि करतारी ॥ सलिल समान कलित, मलगंजन, बुध-मन-रंजनहारी । भंजन विभ्रमधूलि प्रभंजन, मिथ्या जलद निवारी ॥ कल्यानतरु उपवन धरनी, तरनी भवजल-तारी । बन्धविदारन पैनी छैनी, मुक्ति नर्सनी सारी ॥ स्वपरस्वरूप प्रकाशन को यह, भानु-कला श्रविकारी । मुनिमन- कुमुदिनि मोदन- शशिभा, शम सुख सुमन सुवारी ॥ जाको सेवत, बेवत निजपद, नसत प्रविद्या सारी । तीन लोकपति पूजत जाको, जान त्रिजग हितकारी ॥ कोटि जीभ सौं महिमा जाकी, कहि न सके पविधारी । बौल' अल्पमति केम कहै यह, अधम उधारन हारी ॥ 00
अप्रैल-जून १६८६

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