Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 13
________________ गतांक से आग: पं० शिरोमणिदास कृत : 'धर्मसार सतसई' 0 श्री कुन्दनलाल जैन प्रिन्सिपल अथ एकादश प्रतिमा वर्णनविषय सकल सौं होइ उदास, सयम सौ राखो शुभ आस । उदय प्रतिज्ञा दिन दिन काम, प्रतिमा कहिए याको नाम ॥१०४।। दोहा -आठ मूल गुण पालिके, व्यसन त्यागि जिनमानि । मल पच्चीस विवजि के, दर्शन प्रतिमा जानि ॥१०५ पांच अणुव्रत पालिक, तीन गुणव्रत धारि । चउ शिक्षाव्रत मनधरी, व्रत प्रतिमा यह सार ।।१०६ सामायिक तिहुंकाल करि, नियम सौ दृढ़चित्त । सामायिक प्रतिमा कही, यही जान तुम मित्र ॥१०७ दो आठ दो चौदस, प्रोषध कर उत्कृष्ट । प्रोषध प्रतिमा यह कही, कहे वचन जिन इष्ट ॥१०८ सचित्त वस्तु सब त्यागि के, पीव प्रासुक नीर । सचित्त त्याग प्रतिमा कही, छोड हरि तजु धीर ॥१०६ चौपाई-दोय दंड दिन ऊगै जोली, अरु पुनि होय रहै दिन तोलो। तासों दिन कहिए प्रमाण, भोजन स्नान कर विधि पान ॥११० यात रात अवर तुम जान, भोजन सकल तजो हित मान । सूक्ष्म थूल मरै जीव जहां, मूढ़ न जाने हिंसा तहां ॥१११ रात को नीर रुधिर सम होय, अन्न मांस सम जानो लोय । भूत पिशाच जे रातें चलें, जहं तहं आनि इकट्ठे मिलें ।।११२ जेंवत (खाते हुए) लोग देख ठहराय, अन्न अपावन करै छिन मांहि । अशुचि वस्तु लै डारें घनी, नीच स्वभाव निशाचर जनी ॥१:३ पतग अनेक परें अकुनाइ, सूक्ष्म जीव को रहै बढ़ाय । यातें पाप अवर नही कोय, महा पाप तुम जानो लोय ॥११४ जहां वस्तु देखी नही जाय, सो पुन रात कही समुझाय । रसोई रात को त्याग व्रती, यात दोष न लागै रति (रत्ती) ॥११५ दिवस पुनि छोडे निज नारि ___सो निशि प्रतिमा कही सुधारि । इह विधि रात्रि भक्ति जो तज, षष्ठम प्रतिमा तासौं भजे ॥११६ निज पर नारी तर्ज जव व्रती, नवधा शील धरै शुभ मती। सुगन्ध तेल भूषण शृगार, मनोज्ञ वस्तु तजि मिष्ट अहार ॥११७ तुच्छ अहार करै तजि भोग, प्रत्याख्यान लेइ नित जोग । ब्रह्मचर्य यह प्रतिमा कही, जो पाले सो श्रावक सही ॥११८ हिंसा कर्म सकल आरम्भ, विवाह वणिज सब छोड़े दंभ । काट नखन नही अग्नि विराधे, वस्त्र धोय नही आयुध वांध ॥११॥ पशु जीव राख न मन्दिर रच, अस्त्र न नित्य नही तिलकहि रच॥

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