Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ १०, १५, कि०४ मनेकान्त में लोग साहित्यकारों एवं साहित्य कृतियों को सर्वोपरि रइधु की साहित्य-साधना का प्रमुख केन्द्र गोपाचल समझते थे तथा साहित्य-सम्मान समाज एवं राज्य का था। वहां के तोमरवंशी राजा डूंगरसिंह एवं उनके पुत्र सर्वश्रेष्ठ उत्सव माना जाता था। राजा कीतिसिंह ने उनकी कवित्व शक्ति से प्रभावित होकर ___ अभी तक इसी प्रकार के दो सम्मान मुझे और पढ़ने राज्य में उन्हें काफी सम्मान दिया था तथा उनकी इच्छाको मिले हैं । दक्षिण भारत में कन्नड कवि विजयण्ण कृत नुसार पिता-पुत्र दोनों ने ही गोपाचल-दुर्ग में लगभग तेतीस 'द्वादशानुप्रेक्षा' नामक ग्रन्थ की समाप्ति पर कवि एवं वर्षों तक लगातार जैनमूर्तियों का निर्माण कराया था। उसकी कृति का गाजे-बाजे के साथ हाथी पर शानदार उत्तर-भारत की सर्वोन्नत ५७ फीट ऊंची आदिनाथ भगजुलस निकालकर उसका सार्वजनिक सम्मान किया गया वान की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा भी गोपाचल दुर्ग में था। इसी प्रकार गोपाचल के कमलसिंह संघवी ने भी उन्ही के हाथों सम्पन्न हुई थी। स्वयं के लिए लिखवाये हुए 'सम्मतगुणणिहाणकव्व' एवं रइध ने लगभग तीस ग्रन्थो की रचना की है जिसमे उसके रचयिता महाकवि रइधू को उक्त रचना की परि- से २२ रचनाए अभी तक उपलब्ध हो चुकी है। उनमें से समाप्ति होते ही हाथी पर विराजमान कर गाजे-बाजे के १६ रचनाएं अपभ्रश में, दो रचनाएँ प्राकृत मे तथा एक साथ कवि एवं उसके काव्य की नगर परिक्रमा कराई थी। रचना हिन्दी में है। कवि की अधिकांश रचनाएँ विशाल मध्यकालीन सामाजिक स्थिति के अध्ययन में इस प्रकार हैं। उसकी मेहेसरचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ, जिवधरचरिउ के उल्लेख अपना विशेष महत्व रखते है। मे ३-३ सौ से भी अधिक कड़वक है । अन्य अपभ्रश रच नाएँ १०० से लेकर २५० कड़वको मे है। इसी प्रकार समकालीन राजा इनकी एक प्राकृत रचना सिद्धन्तत्थसार लगभग २००० कवि र इध ने अपने आश्रयदाता को राजा प्रतापरुद्र गाथा प्रमाण है। दो रचनाएँ अत्यन्त लघु है, जिनमे से द्वारा सम्मानित कहा है। यह प्रतापरुद्र चौहानबंशी नरेश एक मे कुल १८ पद्य है तथा दूसरी हिन्दी रचना 'बारारामचन्द्र का पुत्र था। वह जैन धर्म एवं साहित्य का बड़ा भावना' है, जिसकी पद्यसख्या ३७ है । प्रेमी था तथा उसने अपने मन्त्रिमण्डल मे कई जैनो को __ कवि रइधू का यह साहित्य उत्तर मध्यकालीन भाषा मन्त्रिपद प्रदान किया था। इस विषय पर मैं अन्यत्र प्रकाश साहित्य, इतिहास एवं संस्कृत आदि की दृष्टि से अपना डाल चुका हूं। कई सदस्यो के आधार पर राजा रुद्रप्रताप विशेष महत्व रखता है। उसके प्रकाशन से कई नवीन का समय वि० स० १४६८ से १५२५ के मध्य ठहरता है। तथ्य साहित्य जगत मे अवतरित होगे। प्रसन्नता का विषय ग्रन्थ त्र्ता रइधू है कि प्राकृत एव अपभ्रंश के वरिष्ठ महारथी विद्वान प्रो० प्रस्तुत ग्रन्थ-'पुण्ण सवक हा' के कर्ता महाकवि रइध डा० एच० एल० जैन एव प्रो० डा० ए० एन० उपाध्ये के सम्बन्ध मे अन्यत्र काफी प्रकाश डाल चुका हूं। अतः का ध्यान इस साहित्य की ओर आकषित हुआ है और उनकी प्रेरणा उन्ही के निर्देशन में समग्र रइध-साहित्य रइध यहाँ उसके विषय में विस्तृत चर्चा करना पुनरुक्ति मात्र ही होगी। फिर भी सक्षेप मे इतनी जानकारी आवश्यक ग्रन्थावली के १५ भागो मे यथाशीघ्र प्रकाशित होने जा है कि वे गोपाचल या उसके आस-पास के ही निवासी थे। रहा है । उनकी जाति पद्मावती परवाल थी। सरस्वती देवी ने कई अन्तर्बाह्य साक्ष्यों के आधार पर महाकवि रइधू उन्हे स्वप्न में कवि बनने का आदेश दिया था अतः उन्होने का समय वि० सं० १४४० से १५३० के मध्य सिद्ध होता इस दिशा में पर्याप्त अभ्यास किया और इस प्रकार सफल है। महाजन टोली नं० २ महाकवि बन गये। आरा (बिहार)

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