Book Title: Anekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 11
________________ अपभ्रंश साहित्य की एक मालित कृति : पुण्णासवकहा काराविउ जि जिणणाह भवणु। साह नेमदास के इस प्रकार के आग्रह करने पर कवि मिच्छामय मोहकसाय समणु ।। ग्रन्थ की रचना आरम्भ कर देता है :बहियण चितामणि जसमयं कु। ....."पुण्णासव विरयणि पुण्ण होई। वंदियण विंद थुउ खल असंकु॥ तुव जसु विच्छारमि एच्छ्लोइ ॥ पुण्णासव० १३०६-१२ पुण्णासव०१६।२४ एक बार अवसर पाकर साहू नेमदास ने रइधू से कवि रइधू साहू नेमदास के स्वभाव एवं चरिक से प्रार्थना की कि "हे रइधू कवि तुम मेरे परम हितैषी हो, स इतना अधिक प्रभावित था कि उसने अपने 'पूण्णासवकहा' तुम्हारी जिह्वा पर सरस्वती विराजमान है, तुम्हारे वचना की प्रत्येक सन्धि के अन्त मे विविध छन्द वाले संस्कृत मत का पान करने से मेरे प्राण तृप्त हो जाते हैं। मेरे श्लोको में उसका गुणगान कर उसे आशीर्वाद दिया है। कथन से तुमने मेरे प्रतिष्ठा कार्यों को सम्पन्न कराया है। उन श्लोका एवं पुण्णासवकहा की विस्तृत आदि एवं अन्त की प्रशस्ति को देखने से यह विदित होता है कि साह नेमतुम्हारे आदेश से मैंने याचक जनो को यथेच्छ दान दिया दास पद्मावती पुरवाल जाति के थे। उनके पूर्वज योगिनी. है। तुम्हारे ही आदेश से मैंने जिन बिहार करवाया है। पुर छोड़कर कालिन्दी के तीर पर बसे हुए चन्द्रबाड नामक अब मेरी एक और इच्छा है कि तुम मेरे निमित्त से 'पुण्णा नगर में आकर बस गये थे। सवकहा' नामक ग्रन्थ की रचना कर मुझे अनुग्रहीत करो रइधु ने नेमदास की छह पीढ़ियों तक का विस्तृत जिससे मैं अपने जीवन को शाश्वत सुख-प्राप्ति की ओर वर्णन किया है और प्रसंगवश कई महत्वपूर्ण सूचनाएं दी मोड़ सकें।" यथा हैं । इनमें से दो सूचनाएँ बड़ी ही रोचक हैं। प्रथम तो भो रइधूव्वुह वढि पमोय । यह है कि नेमदास के पुत्र ऋषिराम को उस समय पुत्ररत्न तुम्हहं पसाएं मह विणि लोय ॥ की उपलब्धि हुई जब वे स्वयं निर्मित जिनविम्ब की संसिद्ध जाय तुहु परम मित्तु। प्रतिष्ठा के समय उस पर तिलक निकाल रहे थे। अतः तउ वयणामिय पाणेण त्तिषु ॥ उसी उपलक्ष्य मे साह ने अपने उम नवोत्पन्न पोते का नाम पइकिय पइट्ठ महु सुहमणेण । 'तिलकू' रख दिया । यथा :___जाचय पूरिय धण कंचणेण ॥ जसु जम्थागमि जिणवर बिंवहं।। उरणु तुव उवएसें जिणविहारु । तिलव पदिण्णउ दुरिय-णिसुमहं ॥ ___ कारा विउ मई दुरिया वहारू । कुलहु तिलउ तिलकू ति वुत्तउ । ............... || पइहोंति वंछिय रायल पुण्णु । पुण्णासव०१३।११।१३-१४ एक्कज्जि चिंता वट्टइ पसण्ण ॥ दूसरी मनोरञ्जक घटना यह है कि साहू नेमदास के तुह सकइत्तण फल कामधेणु । दूसरे भाई साधारण को जब वीरदास नामक द्वितीय पुत्र___ महु साणु रायमाणु पुथु अरेण ॥ रत्न की उपलब्धि हुई तब उन्होने प्रसन्नता पूर्वक रइधू पइ विरइयाइं णाणा पुराण । द्वारा विरचित 'पुणणासवकहा' को हाथी पर प्रतिष्ठित सिद्धतायम जुत्तिए पहाण ॥ करके बड़े ही समारोह के साथ नगर में घुमाया था। पुण्णासउ हउ वयणाउं तुझु । जसु जम्मणि पुण्णास उसत्यो । सो हंउ वंछमि इयचित मझु ॥ हत्थि चडिउ पयडिउ परमत्थ ।। सुकयतें थप्पहि मज्झुणामु । पुण्णासव०१३।१२।२ जिह होइ अयलु सास उ सधामु॥ कवि द्वारा उक्त उल्लेख काफी महत्वपूर्ण है। इससे पुण्णासव० १।६।८-१६ यह विदित होता है कि रइधू के समय में चन्द्रवाइ नगर

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