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अनेकान्त
#. राधाकुमुद मुखर्जी के अनुसार भी महावीर और बुद्ध कर रहे थे, शिशु अजातशत्रु बिम्बसार की गोद मे था। की वर्तमानता मे तो अजातशत्रु महावीर का ही अनुयायी बिम्बसार का ध्यान बुद्ध के उपदेश में न लगकर, पुनःथा। उन्होने यह भी लिखा है कि जैसा प्राय. देखा जाता पुनः अजातशत्रु के दुलार मे लग रहा था। बुद्ध ने तब है, जैन अजातशत्रु और उदायिभद्द दोनो को अच्छे चरित्र राजा का ध्यान अपनी ओर खीचा । एक कथा सुनाई, का बतलाते है; क्योकि दोनो जनधर्म को माननेवाले थे। जिसका हार्द था-तुम इसके मोह मे इतने बँधे हो, यही यही अजातशत्र का समर्पण मात्र पोपचारिक था। मूलत तम्हारा घातक होगा। वह बौद्ध का अनुयायी बना हो, ऐसा प्रतीत नही होता।
वज्जियो को विजय के लिए अजातशत्रु ने अपने मंत्री अजातशत्रु के बुद्धानुयायी न होने में और भी अनेकों
वस्सकार को बुद्ध के पास भेजा। विजय का रहस्य पाने के निमित्त है -देवदत्त के साथ घनिष्ठता, जबकि देवदत्त
लिए सचमुच वह एक षडयन्त्र ही था। अजातशत्रु बुद्ध बुद्ध का विद्रोही शिष्य था, वज्जियो से शत्रता, जबकि
का अनुयायी होता, तो इस प्रकार का छद्म कैसे खेलता । वज्जि बुद्ध के अत्यन्त कृपा-पात्र थे; प्रसेनजित् से युद्ध, जब कि प्रसेनजित् बुद्ध का परम भक्त एव अनुयायी था।
कहा जाता है, मौद्गल्यायन के वधक ५०० निगठों बौद्ध-परम्परा उसे पितृ-हतक के रूप में देखती है,
का वध अजातशत्रु ने करवाया। इससे उसकी बौद्ध धर्म जब कि जैन परम्परा अपने कृत्य के प्रति अनुताप कर लेने
के प्रति दृढता व्यक्त होती है, पर यह उल्लेख अट्टकथा पर उसे अपने पिता का विनीत कह देती है। ये समुल्लेख
का है, अत एक किवदन्ती मात्र से अधिक इमका कोई भी दोनों परम्पराग्रो के क्रमश. दूरत्व और सामीप्य के
महत्त्व प्रतीत नहीं होता। सूचक है।
__ अट्टकथाप्रो के और भी कुछ उल्लेख है । जैसे-बुद्ध ___अजातशत्रु के प्रति बुद्ध के मन में अनादर का भाव की मृत्यु का सवाद अजातशत्रु को कौन सुनाये, कैसे था, वह इस बात से भी प्रतीत होता है कि श्रामण्य-फल सुनाये--अमात्यवर्ग में यह प्रश्न उठा । सबने सोचाको चर्चा के पश्चात् अजातशत्रु के चले जाने पर बद्ध राजा के हृदय पर आघात न लगे, इस प्रकार से यह भिक्षुग्री को सम्बोधित कर कहते है ---"इम राजा का सम्बाद सुनाया जाय । मत्रियो ने दुःस्वप्न-फल के निवारण सस्कार अच्छा नहीं रहा । यह राजा प्रभागा है । यदि यह का बहाना कर 'चतु-मधुर' स्नान की व्यवस्था की। उस राजा अपने घमंराज पिता की हत्या न करता तो ग्राज आनन्दप्रद वातावरण मे उन्होने बुद्ध के निर्वाण का सम्वाद इसे इसी आसन पर बैठे बैठे विरज, निर्मल, धर्म-चक्षु अजातशत्रु को मुनाया । फिर भी सम्वाद सुनते ही अजातउत्पन्न हो जाता।" देवदत्त के प्रसग मे भी बुद्ध ने शत्रु मूच्छित हो गया। दो बार पुन: "चतु-मधुर" स्नान कहा-भिक्षुया! मगधराज अजातशत्रु, जो भी पाप है, कराया गया। तब उसकी मूर्छा टूटी और उसने गहरा उनके मित्र है, उनसे प्रेम करते है और उनसे ससर्ग दुःख व्यक्त किया । एक परम्परा यह भी कहती हैरखते हैं।
मन्त्री वस्सकार ने जन्म से निर्वाण तक बुद्ध की चित्रावलि एक बार बुद्ध राजप्रासाद में बिम्बसार को धर्मोपदेश दिखा कर अजातशत्रु को बुद्ध की मृत्यु से ज्ञापित किया।
इस घटना से बुद्ध के प्रति रही प्रजातशत्रु की भक्ति का १ हिन्दू सभ्यता पृ० १६०-१
दिग्दर्शन मिलता है। बहुत उत्तरकालिक होने से यह कोई , पृ० २६४
प्रमाणभूत आधार नही बनती। २ दीघ निकाय, सामञ्जफल सुत्त ३ प्रौपपातिक सूत्र, (हिन्दी अनुवाद), १०२६; सेन- ६ जातकट्टकथा, थुस जातक, सं० ३३८ प्रश्न, तृतीय उल्लास, प्रश्न २३७
७ धम्मपद अट्टकथा, १०-७ ४ दीघनिकाय, श्रामण्यफल सुत्त
८ घम्मपद अट्टकथा, २, ६०५-६ ५ विनय पिटक, चुल्लबग्ग, सघभेदक खन्धक, ७
& Encyclopaedia of Buddhism, p. 320