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मागम और त्रिपिटकों के संदर्म में प्रजातशत्र कुणिक
आये इतनी ही सेना से चेटक स्वय तैयार हुआ। ५७ नवलिच्छवी, ऐमे अट्ठारह काशी-कोशल के गण राजामो सहस्त्र हाथी, ५७ सहस प्रश्व, ५७ सहस्त रथ और ५७ की पराजय हुई, कूणिक की विजय हुई।' करोड़ पदातिकों की सेना लिए चेटक मी सग्राम भूमि में
+ वंशाली प्राकार भंगया इटा। गजा चेटक भगवान महावीर का उपासक था।
पराजित चेटक राजा अपनी नगरी में चला गया। उपासक के १२ व्रत उसने स्वीकार किये थे। उसका
प्राकार के द्वार बन्द कर लिये । कूणिक प्राकार को तोडने अपना एक विशेष अभिग्रह था-"मै एक दिन में एक से
मे असफल रहा। बहुत समय तक वैशाली को घेरे वह अधिक बाण नही चलाऊगा।" उसका बाण अमोध था
वही पड़ा रहा, एक दिन प्राकाशवाणी हुई-"श्रमण अर्थात् निष्फल नही जाता। पहले दिन अजातशत्र की
कूलबालक' जब म गधिका। वेश्या में अनुरक्त होगा, तब ओर से कालीकुमार मेनापति होकर सामने आया । उमने
राजा अशोकचन्द्र ( कुणिक ) वैशाली नगरी का अधिगरुड व्यूह की रचना की। राजा चेटक ने शकट व्यूह
ग्रहण करेगा।" कूणिक ने कूलबालक का पता लगाया । की। भयकर युद्ध हुआ। गजा चेटक ने अपने अमोघ
मागधिका को बुलाया। मागधिका ने कपट श्राविका वन बाण का प्रयोग किया। कालीकुमार घराशायी हुमा ।
कूल बालक को अपने आप में अनुरक्त किया । कूल बालक इसी प्रकार एक-एक कर अन्य नव भाई एक-एक दिन
नैमित्तिक वेप बना जैमे-तमे वैशाली नगरी में पहुंचा। सेनापति होकर पाये और राजा चेटक के अमोघ बाण से उमने जाना कि मुनिमुव्रत स्वामी स्तूप के प्रभाव से यह मारे गये। महावीर उस समय चम्पा नगरी में वर्तमान नगरी बच रही है। लोकों ने शत्रु सकट का उपचार पूछा, थे । कालीकुमार आदि राजकुमारी की माताएँ काली तब उसने कहा-यह स्तूर टूटेगा, तभी शत्रु यहा से प्रादि दश र.नियों ने युद्ध-विषयक प्रश्न महावीर से पूछे । हटेगा । लोको ने स्तूप को नोडना प्रारम्भ किया। एक महावीर ने कालीकुमार आदि की मृत्यु का सार वृन्तात बार कूणिक की सेना पीछे हटी, क्योकि ऐसा समझा कर उन्हें बताया। उन रानियों ने महावीर के पास दीक्षा प्राया था। ज्यों ही सारा स्तूर टूटा, कूणिक ने कलबालक
के कहे अनुसार एका एक आक्रमण कर वैशाली प्राकार ग्रहण की।
भग किया। इन्द्र की सहायताकूणिक ने तीन दिनो का तप किया। केन्द्र और
हल्ल-विहल्ल हार और हाथी को शत्रु से बचाने के चमरेन्द्र की आराधना की। वे प्रकट हुए। उनके योग
लिये भगे । प्राकार की खाई में प्रच्छन्न आग थी। हाथी से प्रथम दिन महाशिलाकंटक सग्राम की योजना हुई।
सेचनक इसे अपने विभङ्ग-जान से जान चुका था। वह कगिक शक्रेन्द्र द्वारा निर्मित वचप्रतिरूप कषच से सुरक्षित २. भगवती सूत्र, ७, उद्देशक, मूत्र ३०१, होकर युद्ध मे पाया ताकि चेटक का अमोघ बाण भी उस
३. 'कूलवालक' नदी के कुल के समीप पातापना करता मार न सके । घमासान युद्ध हुमा । कूणिक की सेना द्वारा
था। उमके तपः प्रभाव से नदी का प्रभाव थोडा डाला गया ककर तृण व पत्र भी चेटक की सेना पर
मुड गया। उमसे उसका नाम, 'कुलवालक' हुमा । महाशिला जैसा प्रहार करता था। एक दिन के सग्राम में
(उत्तराध्ययन मूत्र लक्ष्मीवल्लभकृत वृत्ति (गुजराती ८४ लाख मनुष्य मरे। दूसरे दिन रथमूसल सग्राम की
अनुवाद सहित) अहमदाबाद, १९३५, प्रथम खण्ड, विकूर्वणा हुई। चमरेन्द्र देव-निर्मित स्वय चालित रथ
पव ८ । चला। अपने चारों ओर से मूसल की मार करता हुआ ।
समण जह कूलवालए, मागहिन गणि रमिस्मए । सारे दिन वह शत्रु की सेना में घूमता रहा। एक दिन में
राया प्र प्रसोगचदए देमालि नयरी गहिस्सए । ६६ लाख मनुष्यो का सहार हुमा । चेटक और नवमल्लवी,
-वही, पत्र १० १. निरयावलिका सूत्र (सटीक), पा ६-१
५. वही, पत्र ११