Book Title: Anekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 263
________________ २४० अनेकान्त तरह उनके द्वारा प्रकाशित सभी ग्रंथ मौलिक और आदर्श का अगाध भंडार है इसने मापको सदा के लिए अमर कर रूप है। दिया है। काव्यरचना पर भी उनका पर्याप्त अधिकार था। "मेरी आप समन्वयी सुघारक और राष्ट्रीय विचार धारा के भावना" की रचना ने तो उन्हें विश्वविख्यात कर दिया महा मानव थे । सन् १९२० से बराबर खादी पहनते रहे था यह रचना सर्वप्रथम 'जैन हितैषी' के अप्रेल-मई १९१६ थे। आपने ही सर्वप्रथम बीर शासन जयती (श्रावण कृष्णा के सयुक्तांक में प्रकाशित हुई थी। अनेक देशी-विदेशी प्रतिपदा) की खोज कर उसका प्रचार किया था । भाषानों में इसके अनुवाद हुए थे फोनोग्राफ के रेकार्डों तक जैन इतिहास के क्षेत्र में आपने अभूतपूर्व कार्य किया मे यह भरी गई थी इससे इसकी विशिष्ट लोकप्रियता का था। अनेक प्राचीन समन्तभद सिद्धसेन पात्रकेसरी विद्यानन्द परिज्ञान हो जाता है। अमृत चन्द्र आदि दि० जैनाचार्यों का इतिहास अधकार में सन् १९०० मे आपने 'अनित्यपंचाशत्' का सुन्दर छिपा पड़ा था आपने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से उसे प्रकाश हिन्दी में पद्यानुवाद किया था और भी आपने अनेक सुन्दर में लाकर दि० परम्परा के गौरव को ख्यापित किया था उद्बोधक कविताये लिखी थी इनका एक भव्य संग्रह इस दृष्टि से अाप दि० परपरा के अनन्य सरक्षक सिद्ध हुए 'युगवीर-भारती' के नाम से अहिंमा मन्दिर, दिल्ली से यह मानना ही होगा कि अगर मुख्तार सा० न होते तो प्रकाशित हुआ है। महावीर-जिनपूजा और बाहुवलि दि. परम्परा का इतिहास ही अस्त व्यस्त हो जाता । जब जिनपूजा भी आपके नई शैली के श्रद्धा-सुमन है। भी कोई व्यामोह छल से प्राचीन दि. प्राचार्यो को अर्वाचीन आपकी समीक्षाए भी बड़ी लाजवाब होती थी। ग्रथ सिद्ध करने की कोशिश करता तो आप उसकी पूरी खबर परीक्षा के चार भाग, विवाह क्षेत्र प्रकाश, जिन पूजाधि- लेकर उसे निरूत्तर करने में कोई कसर नहीं रखते थे। धिकार मीमासा आदि इनमे प्रमुख है ये अत्यन्त सावधानी अापके इतिहास विषयक निबधो का एक विशाल संग्रह मे अकाट्य युक्तियो और प्रमाणो के साथ अतीव परिश्रम 'जनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश' (प्रथम खड) पूर्ववः लिखी गई है और इसीलिए आजतक उनका जवाब के रूप में प्रकाशित हो चुके है। इसके सिवा 'पुरातन जैन त्यागियो और विद्वानो से नही लग पाया है । दस्सा पूजा- वाक्य सूची' की १७० पृष्ठ की विस्तृत प्रस्तावना मे भी धिकार पर आपने कोर्ट में गवाही तक दी थी। अनेक जन प्राचार्यों और उनके और उनके ग्रन्थो का इसी तरह ‘सन्मति सूत्र और सिद्धसेन' नाम का आपका इतिहास सग्रहीत है। विस्तृत निबध है जिसका अग्रेजी अनुवाद भी अलग से प्राचार्य प्रवर समन्तभद्र के तो श्राप महान् भक्त ही प्रकाशित हुअा है उसका भी प्राज तलक प्रज्ञा चक्षु प० थे उनका सांगो-पाग इतिहास तैयार कर आपने उन्हे १-२ सुखलाल जी से जवाब तक नहीं बन पाया है। शताब्दी का तो सिद्ध किया ही उनकी समस्त उपलब्ध अप संपादन कला के भी प्राचार्य थे । १ जुलाई कृतियो का मौलिक हिन्दी अनुवाद कर अपार श्रद्धा-भक्ति १६०० मे प्राप महासभा के मुखपत्र साप्ताहिक मुखपत्र का भी परिचय दिया और इस तरह अपने आराध्य को जैन गजट (देव वन्द) के सम्पादक बनाये गये। ३१ दिसम्बर जन-जन के हृदय का हार बना दिया। जिस तरह तुलसी १९०६ तक के श्राप के सम्पादन काल में जैन गजट की दास जी ने 'रामचरित मानस की रचना कर अपन ग्राहक संख्या ३०० से १५०० तक हो गई थी इससे प्राराध्य रामचन्द जी को लोक मानस में उतार कर जाना जा सकता है कि प्रारकी सपादन कला कितनी उच्च प्रख्यात कर दिया, एव जिस तरह सत्पुरष कानजी स्वामी कोटि की थी। फिर आप अक्टूबर १९१६ मे 'जैन हितैषी' ने समयसारादि के माध्यम से अध्यात्म की गगा प्रवाहित के संपादक बने और २ वर्ष तक रहकर उसे काफी चमका कर अपने श्रद्धेय भगवत्कृन्द कुन्द को जन-जन का प्रिय दिया। फिर नवम्बर १९२६ मे मासिक 'अनेकांत' का बना दिया। सपादन प्रकाशन किया। यह पत्र अनेक विषयों के ज्ञान इससे हम यह फलितार्थ निकाल सकते है कि-जहाँ

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