Book Title: Anekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 309
________________ अनेकान्त के २१वें वर्ष की विषय-सूची ११४ १७० अग्रवालो का जैन संस्कृति में योगदान चिदात्म वंदना-मुनि पद्मनन्दि परमानन्द शास्त्री ४६, ६१, १८५ चित्तौड़ का कीर्तिस्तंभ-० नेमचन्द धन्नूसा जैन ८३ अछता समद्ध जैन साहित्य-निषभदास रांका १७४ चित्तोड का दि.जैन कीर्तिस्तम्भ-परमानन्द शा० १७९ अध्यात्म बत्तीसी-अगरचन्द नाहटा १७२ चित्तौड के जैन कीतिस्तम्भ का निर्माणकालअनुसन्धान के पालोक स्तम्भ-प्रो० प्रेम सुमन जैन २११ । श्री नीरज जैन १४६ अपनत्व-~-मुनि कन्हैयालाल जैनग्रन्थों में राष्ट्रकूटोंका इतिहास-रामवल्लभ अमर साहित्य-सेवी-५० कैलाशचन्द सि० शा० २०६। सोमाणी आगम और त्रिपिटकों के सन्दर्भ में अजातशत्रु कुणिक जैन समाज के भीष्म पितामह-डा. देवेन्द्रकुमार २१३ -सुनि श्री नगराज - जैन साहित्यकार का महाप्रयाण-पं० सरमनलाल प्राचार्य जुगलकिशोर जी मुख्तार-डा. कस्तूरचन्द जैन दिवाकर २६२ जी कासलीवाल २७३ आधुनिक जैन युग के 'वीर' -श्रीमती विमला जैन २५६ जो कार्य उन्होंने अकेले किया वह बहुतो द्वारा सम्भव नही-डा. दरबारीलाल कोठिया २६३ इतिहास का एक युग समाप्त हो गया-ड० गोकुल चन्द जैन एम. ए. ज्ञानसागर को स्फुट रचनाएँ-डा० विद्याधर जोहरा पुरकर इतिहास के एक अध्याय का लोप-डा० भागचन्द टूड़े ग्राम का अज्ञात जैन पुरातत्त्व-प्रो० भागचन्द जैन 'भागेन्दु २७५ 'भागेन्दु' ६७ उपाध्याय मेघविजय के मेघ महोदय मे उल्लिखित दर्शन और ज्ञान के परिपेक्ष्य में स्याद्वाद और ___कतिपय अप्राप्त रचनाएँ-अगरचन्द नाहटा ३६ सापेक्षवाद-मुनि श्री नगराज उस मत्युञ्जय का महाप्रयाण-डा. ज्योतिप्रसाद दर्शनोपयोग व ज्ञानोपयोग एक तुलनात्मक अध्ययन एम. ए. पी-एच डी. २२३ -पं० बालचन्द्र सि० शा० एक अपूरणीय क्षति-पन्नालाल साहित्याचार्य २५४ दिगम्बर परम्परा में प्राचार्य सिद्धसेन-१० ऐसे थे हमारे बाबूजी--विजयकुमार चौधरी एम.ए. २४६ कैलाशचन्द सिद्धान्त शास्त्री कतिपय श्रद्धाजलियां-विविध विद्वानों और देवागम स्तोत्र और उसका हिन्दी अनुवादप्रतिष्ठित व्यक्तियो द्वारा १९४-२०६६० बालचन्द सिद्धान्त शास्त्री कवि छीहल-परमानन्द शा० २२६ पं० चैनसुखदास जी न्यातीर्थ का स्वर्गवासकवि टेकचन्द रचित श्रेणिक चरित और पुण्याश्रव डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल कथाकोष-अगरचन्द नाहटा १३४ पं० भगवती दास का ज्योतिषसार - डा० विद्याधर कुलपाक के माणिक स्वामी-डा० विद्याधर जोहरा पुरकर __ जोहरा पुरकर ३३ पारस्परिक विभेद मे अभेद की रेखाएं-साध्वी कुलपाक के माणिक स्वामी-4० के० भुजबली शा. १३१ कनक कुमारी क्या कभी किसी का गर्व स्थिर रहा है १३ पिण्ड शुद्धि के अन्तर्गत उद्दिष्ट,आहार पर विचार गुणों की इज्जत पं० बालचन्द सि. शा. २२६

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