Book Title: Anekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 146
________________ कवि टेकचन्द रचित श्रेणिक चरित और पुन्याश्रव कथाकोष १३५ नागरी प्रचारिणी सभा काशी के प्रकाशित हस्त मन वच वृषभजिनंद के, बो निस दिन पाय ॥ लिग्वित हिन्दी ग्रंथो का सक्षिप्त विवरण नामक ग्रथमान तात निति मंगल रहै सब उगल जाय ॥१॥ के पृष्ठ ३७६ मे टेकचदकी दो रचनामो का विवरण दिया वदो प्रजितनाथ सभव, अभिनंदन के पूज़ पाय॥ है-टेकत्रद प्राचार्य शाहीपुर के राजा उम्मेदसिंह के प्रणा, सुमति पदम जिन बदु , फिर सुपाचं प्याउ मनल्याय आक्षित । सवत् १८२२ के लगभग वर्तमान। सेऊ चन्द्रप्रभ जिन स्वामी, पुष्पदन्त पूजू सुखवाय ॥ वत कथा कोष (पद्य) १७-१९३ । टेकचंद (जन)-(१) शीतल वदो श्रेयान्स जिन, प्रणम् वासु पूज्य सिरनाय ।। पच परमेष्ठी की पूजा (पद्य) ३२-२१५ विमलनाथ प्रणमु प्रनन जिन धर्मनाथ सबक सषदानी ॥ इससे एक नवीन और महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है शांतिनाथ फिर कुथ जिनेश्वर अरहन से मल्लि गण स्वामी कि कवि टेकचदने बुद्धि प्रकाशसे पहले एक और बड़े ग्रन्थ मुनि सुव्रतमै नभू नमि नेमि मनाय पारस हित ठानी। की रचना मेवाड़ के शाहपुर में रहते हुये नृप उम्मेद के वर्द्धमान प्रादिक चोवीसो, बंदू मगलदासुरांनी ॥३॥ राज्य में की थी। यह पूण्यास्रव कथा कोप जिसका नाम इन प्रतिसय जुत देव ज्यो, सुरग सूति मुखदाय । प्रति के प्रारम्भ में 'ब्रत कथा कोश दिया। है १२३२० तिन अतिशय के नाम प्रब, सुनौ भविक मन लाय॥ श्लोक परिमित वृहतग्रथ पूर्ण हुआ। इसकी ३५२ पत्रो || चौपाई॥ की प्रति सरस्वती भण्डार जैन मदिर खुर्जा के स ग्रह में तन पसेव मल तन में नांही, संसथान सम चतुर कहाही॥ बतलाई गई है १२३२० श्लोक की सध्या तो विवरण मे संहनन बन वृषभनाराच, काय सुगध मधुर जिनवाच ॥५ लिखी गई है। ग्रथकार ने तो ग्रथ सख्या १४००० से । महारूप लच्छित सुभ जानि, रुधिर सुपेद प्रनत बल मानि ॥ भी अधिक बतलायी है । इस तरह टेकचंद एक बहुत बडा ये दस जनमत जिन के होय, सो भगवंत और नहि कोय ॥६ और अक्छा कवि मिद्ध होता है जिसने सवत् १८२२ मे शाहपुर ने १८२६ मे माडल नगर-विदिशा में और सवत् ॥ पद्धडी छद ।। १९३३ गयसेन गढ में तीन बडे अथ पद्य में बनाये । जो सम्यक कथा सुनै अनुप ॥ सो जाने दय धर्म सरूप ॥ नागरी प्रचारिणी सभा की बैवापिक खोज रिपोर्ट इत्यादिक सब धर्म अंग ज.नि, (मन् १९१७-१६ नक की) गय बहादुर हीरालाल सम्पा तातं सिव सुरसुख होय आनि ॥४०॥ दित गवर्नमेंट प्रेस इलाहाबाद से १९८० में छपी थी । दोहा-यह पुन्याश्रव प्रन्थ जो, सुने पड़े मन लाय॥ वह अब प्रायः नही हैं। अतः उसमें छपे हुए 'ब्रत कथा सो जिय पुण्य सग्रह करे, पूरव पाप नसाय ॥४६॥ कोश' का प्रकाशित विवरण नीचे दिया है। शाहिपुरा शुभ थान मै भलो सहारो पाय॥ धर्म लियो जिन देव को, सु नरभव सफल कराय ॥५०॥ No. 193 Brata Katha Kosa by Teka नृप उमेद तापुर विष, कर राज बलवान ॥ Chand Substance-country made paper. Lines -352. Size 121"X8". Lines per page--14. तिन अपने भुजबल थकी, प्ररी सिर कीन्हें पानि ॥५१॥ Extent-12,320 Slokas. Appearance-new ताके राज सुराज में ईति भीति नहीं जांनि ।। charactor-Nagari. Date of Composition- अब भूपुर में सूष याको, तिष्ठ हरष जानि ॥५२॥ Samvat 1822 or A. D.1765. Date - f Manus करी कथा इस ग्रंथ को, छंद बंधपुर माहि॥ cripts-Samvat 1956 or 1899. A.D. Place of प्रन्थ करन कुछ बीच में, मा कुल उपजी नांहि ॥५॥ deposit Sarswati Bhandara, Jain Mandir, साहि नगर साह मे भयो, पायो शभ अवकास ।। Khurja. पूरन पंथ सूख ते कियो, पुण्याश्रव पुण वास ॥५४॥ ॐनमः सिडेन्यः ।। श्री परमात्मने नमः ॥ प्रथ ॥चौपाई॥ श्री व्रत कथा कोष भाषा लिख्यते सवत् अष्टादस सत जांनि, अपर बीस दोय फिरि प्रामि।

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