Book Title: Anekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 257
________________ २३४ अनेकात "यह शरीर नश्वर है ...."हमारी इच्छा से यह प्राप्त देश के आर्थिक विकास एवं प्रौद्योगिक प्रगति हेतु नहीं हमा और न हमारे रवखे यह रह सकेगा..."अव धनिक वर्ग के सहयोग के लिए उनका ध्यान उनके कर्तव्यों भारत को पूर्ण स्वाधीन बनाकर छोड़ेगे। इसी मे सब कुछ के प्रति बड़ी चतुराई से भाकर्षित किया है। श्रेय और इसी में देश कल्याण है।" इस प्रकार स्फूति भारतवर्ष तम्हारा, सम हो भारत के सत्पुत्र उदार। दायक उद्बोधन प्राप्त कर ऐसा कौन होगा जिसका हृदय " हृदय फिर क्यों देश विपत्ति न हरते, करते इसका बेड़ा पार ॥ . स्वातंत्र्य समर मे कूदने के लिए न मचल उठता हो। _ + + + + साथ ही राष्ट्र हित की भावना से सम्पूर्ण देश में शान्ति एवं व्यवस्था बनी रहे भय पातक, एव अराजकता न फैले चक्कर में विलास प्रियता के मत भूलो अपना देश । इसके लिए समस्त लोगों को समय समय पर चेतावनी + + + + देते रहे। विदेशी सरकार के दमन चक्र का साहसपूर्वक कल कारखाने खुलवाकर मेटो भारत के क्लेश । सामना करने के लिए पाप कहा करते थे स्वतंत्रता को प्राणों से प्रिय मान कर उसकी रक्षा ___"सरकारी दमन के प्रति हमारी नीति 'शठ' प्रति करना किसी भी समाज तथा व्यक्ति का सर्व प्रथम कर्तव्य शाठय' न होकर रमे पशुबल का उत्तर प्रात्मबल से देना माना गया है। जो जाति समाज अथवा व्यक्ति अपनी है इसी में हमारी विजय निहित है। हमे क्रोध को क्षमा राष्ट्रीयता का सम्मान करते हुए प्राण निछावर करने मे से अन्याय को न्याय से प्रशान्ति को शान्ति से और द्वेष गौरव की अनुभूति करता है वह सम्माननीय है । स्वतत्रता को प्रेम से जीतना चाहिए तभी स्वराज्य रसायन सिद्ध हो अमूल्य निधि है । उसको सुरक्षा हमारा परम कर्तब्य है । सकेगी।" उसकी अमरता राष्ट्रीय एकता में निहित है जिसका गांधी जी के अछुतोद्धार कार्यक्रम के प्रति आपके प्राधार "भाषा" है। श्री मुख्तार जी हिन्दी को राष्ट्र हृदय में पूर्ण श्रद्धा थी। आपके विचारानुसार अछूत जन्म भाषा मानकर उसके प्रचार एवं प्रसार मे जीवन पर्यंत से नही कर्म से होता है । मलमूत्र स्पर्श से अस्पयं नहीं लगे रहे। इस कार्य हेतु उन्होंने प्रत्येक देशवासी से अपील हो सकता है इसके सम्बन्ध में प्रापने अत्यन्त सुन्दर उदा की है-"राष्ट्र भाषा के प्रचार के लिए हिन्दी में लिखें, हरण प्रस्तुत किया है हिन्दी मे बोले पत्र व्यवहार हिन्दी में हो, अधिक से 'गर्भवास 'भौ' जन्म समय में कौन नहीं अस्पृश्य हुमा। अधिक हिन्दी पुस्तकों तथा समाचार पत्रों का प्रकाशन कौन मलों से भरा नहीं ? किसने मलमूत्र न साफ किया" पठन तथा मनन हो।" इस प्रकार वर्तमान भाषा समस्या किसे अछूत जन्म से तब फिर कहना उचित बताते हो। का सरल हल निकाल कर राष्ट्रीय एकता का मार्ग प्रशस्त तिरस्कार भंगी चमार का करते क्यों न लजाते हो॥ कर युगवीर जी सचमुच युग निर्माता के पद पर पासीन राष्ट्रोन्नति हेतु स्वास्थ एवं बलिष्ठ नवयुवकों को हुए हैं। आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए आपने गौ संवर्धन की प्रागे चल कर उनका दृष्टि कोण केवल समाज सिफारिश जोरदार शब्दों में की है। आपके कथनानुसार अथवा राष्ट्र के सकुचित क्षेत्र तक सीमित नही रह सका कमजोर नवयुवक पीढ़ी का कारण गौवध तथा घी दुग्ध उनका उदार हृदय विश्व कल्याण की भावना से भर उठा की अशुद्धि तथा उनकी मंहगाई है। अतएव इन सब के तभी तो उनकी भावना रहीनिराकरण हेतु प्रत्येक सद्गृहस्थ नागरिक से गौ संवर्धन इति भीति व्यापे नहीं, जग में वृष्टि समय पर हुमा करे में पूर्ण सहयोग देने का निवेदन युगवीर जी यदा कदा धर्म निष्ठ होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे॥ करते रहे हैं जिससे राष्ट्र को पुनः भीम अर्जुन सदृश्य रोग मरी दुभिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे। राष्ट्रीय पुरुष प्राप्त हो सकें। परम अंहिसा धर्म जगत में, फैल सर्व हित किया करे॥

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