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वर्शन और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में : स्याहाद और सापेक्षवाद
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म्पर्श होते हैं ?" भगवान् महावीर ने कहा-"मैं इन सत्य को समझाया गया है उसी प्रकार प्राईस्टीन ने भी प्रश्नों का उत्तर दो नयों मे देता है। व्यवहार-नय की अपने सापेक्षवाद में ऐसे उदाहरणो का प्रयोग किया है। अपेक्षा से तो वह मधुर कहा जाता है पर निश्चय-नय की यहाँ बताया गया है-जिस किमी घटना के बारे में हम अपेक्षा से उसमे ५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रम व ८ स्पर्श है।" कहते है कि यह घटना पाज या प्रभी हुई; हो सकता है अगला प्रश्न गौतम म्वामी ने किया-"प्रभो । भ्रमर मे कि वह घटना सहस्रो वर्ष पूर्व हुई हो। जैसे-क-दूसरे कितने वर्ण है ?" उत्तर मिला-"ध्यवहार-नय मे तो से लाखो प्रकाश वर्ष की दूरी पर दो चक्करदार निहारिभ्रमर काला है अर्थात् एक वर्ण वाला है पर निश्चय-नय कामो (क, ख) में बिस्फोट हुए और वहाँ दो नये तारे की अपेक्षा से उसमे श्वेत, कृष्ण, नील आदि पाच वणं उत्पन्न हुए। इन निहारिकामों में उपस्थित दर्शकों के है।" इसी प्रकार राख' और शुक-पिच्छि' के लिए भग- लिए अपने यहाँ की घटना तुरन्त हुई मालूम होगी, किन्त वान महावीर ने कहा-"व्यवहार-नय की अपेक्षा से यह दोनो के बीच लाखों प्रकाश वर्षों की दूरी होने से 'क' का
और नील है पर निश्चय-नय की अपेक्षा से पाच वणं, दर्शक 'ख' की घटना को एक लाख वर्ष बाद घटित हुई दो गध, पाच रम व आठ स्पर्श वाले है।” तात्पर्य यह कहेगा जब कि दूमग दर्शक अपनी घटनामो को तुरन्त हुमा कि वस्तु का इन्द्रिय ग्राह्य स्वरूप कुछ और होता है और 'क' की घटना को एक लाख वर्ष बाद घटित होने और वास्तविक स्वरूप कुछ और। हम बाह्य स्वरूप को वाली बतायेगा। इस प्रकार विस्फोट का परमार्थ काल देखते है जो इन्द्रिय ग्राह्य है। सर्वज्ञ बाह्य ओर प्रान्तरिक नही, मापेक्षकान ही बताया जा सकता है।" (नैश्चयिक) दोनो स्वरूपो को यथावत् जानते है व देखते
उदाहरण को पुष्ट करने के लिए तत्सम्बन्धी वैज्ञाहै । सापेक्षवाद के अधिष्ठाता प्रो० अलबर्ट आइंस्टीन भी।
निक मान्यता को स्पष्ट करना होगा। माधुनिक विज्ञान यही कहते है-"We can only know the relative
के मतानुमार प्रकाश एक संकिण्ड में १,८६,००० मील truth, the Absolute truth is known only to
गति करता है। उसी गति से जितनी दूर वह एक वर्ष the Universal observer.""
में जाता है, उस दूरी को एक प्रकाश वर्ष कहते है। ___ "हम केवल प्रापेक्षिक मन्य को ही जान सकते है,
ब्रह्माण्ड में एक दूसरे से लाखो प्रकाश वर्ष दूरी पर मम्पूर्ण सत्य तो मर्वज्ञ के द्वारा ही जान है।"
अनेको तारिका पुज है। एक निहारिका में होने वाला स्यादाद मे जिस प्रकार गुड, भ्रमर, राख, शुक
प्रकाशात्मक विस्फोट एक लाग्य प्रकाश वर्ष दूर स्थित पिच्छि आदि के उदाहरणो से परमार्थ सत्य व व्यवहार
अन्य निहारिकामो मे या हमारी पृथ्वी पर यदि हम १. भमरेण भन्ने । कइवण्णे पुच्छा? गोयमा । एत्थण
उमसे उतनी ही दूर है तो एक लाख वर्ष बाद मे दीखेगा; दो नया भवति तजहा-णिच्छइयणएय, वावहारि
क्योकि प्रकाश को हम तक पहुंचने मे १ लाख वर्ष यणयस्स कालए भमरे, णिच्छइयणयस्म पचवणे जाव
लगंगे । किन्तु हमे ऐसे लगेगा कि यह घटना अभी ही हो प्रठ फासे ।
-भगवती, १८-६
रही है जिसे हम देख रहे है। मागश यह हुआ कि २. छारियाण भन्ने । पुच्छा ? गौयमा। एस्थण दी
मनुप्य बहुत अशो में व्यावहारिक मत्य को ही अपनाकर नया भवन्ति नजहा-णिच्छवयणाय, वावहारियण
चलता है। यदि उस निहारिका का कोई प्राणी हमसे एय। वावहारियणयम्स लुक्खा छाग्यिा, णच्छइयस्स
मिले व उस घटना के बारे में हमसे बात करे तो हमारा पंचवण्णे जाव अठफासे पण्णत्ते। -भगवती १८-६
और उमका निर्णय एक-दूसरे से उल्टा होगा; पर अपने३. मुयपिक्छेण भन्ते ! कइवणे पण्णते? एव चेव णवरं
अपने क्षेत्र की अपेक्षा से दोनो निर्णय सही होंगे। बावहारियणयस्स णीलए मृअपिच्छे, णंच्छइयस्स
स्याद्वाद-शास्त्र की मप्त भगी भी प्रत्येक वस्तु को णयस्स से सन्त चेव। -भगवती १८-६ . 8. Cosmology Old and New, p. 201.
३. विश्व की रूपरेखा, अध्याय १, पृ०६२-६३ प्र०स. ।