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अनेकान्त
ही पर्याप्त रूप से जान पाये है। सापेक्षवाद की जटिलता बतख । उमने कहा-बतख क्या होता है ? मैने कहाके बहुत से उदाहरणो मे एक उदाहरण यह भी है जो एक पक्षी जिसकी गईन मोडदार होती है। उसने कहासाधारणतया बुद्धिगम्य भी नही हो रहा है कि यदि दो मोड क्या होती है ? मैंने अपनी बांह को मोड़ कर इस मनुष्यों की भेट हो तो उन दोनो के बीच का अन्तर एक प्रकार से टेढी करके दिखाया-मोडदार इसे कहते है। ही (समान ही) होना चाहिए-यह एक दृष्टिकोण मे तब उमने कहा-अच्छा अब मै समझ गया दूध क्या है ? सत्य है, एक से नहीं। यह मब इस बात पर निर्भर करता इस कहानी को मुन लेने के बाद उस भद्र महिला ने है कि वे दोनों घर पर ही रहे हों या उनमे से कोई एक कहा-मुझे सापेक्षवाद क्या है अब यह जानने की कोई विश्व के किमी दूर भाग की यात्रा करके इमी बीच में दिलचस्पी नही रही है।" प्राया हो।
सापेक्षवाद की कठिनता के इन कुछ उदाहरणो की सापेक्षवाद की जटिलता को प्रो० मैक्सवोर्न ने अत्यन्त
नगह सरलता के उदाहरणों की भी कमी नही है पर यहाँ विनोदपूर्ण ढंग से समभाया है। वे लिखते है-"मेग मात्र एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा। सापेक्षवाद के एक मित्र एक बार किसी डिनर पार्टी में गया। उसके
आचार्य प्रो. अलबर्ट माईस्टीन से उनकी पत्नी ने कहापास बैठी एक महिला ने कहा-प्राध्यापक महोदय ' "मैं मापेक्षवाद कमा है कैमे बनलाऊँ ?" माईस्टीन ने क्या आप मुझे थोडे शब्दो मे बताने का कष्ट करेगे कि एक दृष्टान्न में जवाब दिया-'जब एक मनुष्य एक वास्तव मे मापेक्षवाद है क्या ? उसने विस्मृत मुद्रा मे मन्दर लडकी से बात करता है तो उसे एक घण्टा एक उत्तर दिया-क्या तुम यह चाहोगी उससे पूर्व मैं तुम्हे मिनट जैमा लगता है । उसे ही एक गर्म चूल्हे पर बैठने एक कहानी सुना हूँ। मैं एक बार अपने फासीसी मित्र दोनो उमे एक मिनट एक घण्टे के बराबर लगने लगेगा के साथ सैर के लिए गया। चलते-चलते हम दोनो प्यासे -यही मापेक्षवाद है।" इसीलिए कहा गया है कि स्याहो गये । इतने मे हम एक खेत पर पाये। मैंने अपने हाद और सापेक्षवाद कठिन भी है और सहज भी। मित्र से कहा-यहाँ हमे कुछ दूध खरीद लेना चाहिए।
व्यावहारिक सत्य व तात्त्विक सत्य उमने कहा-दूध क्या होता है ? मैने कहा-तुम नही
म्याद्वाद मे नयो की बहुमुखी विवक्षा है, पर यहाँ जानते, पतला और धोला धोला...."। उसने कहा
केवल व्यवहारनय व निश्चय-नय को ही लेते है। इनकी घोला क्या होता है ? मैने कहा-धोला होता है जैसे
व्याख्या करते हुए प्राचार्यों ने कहा है'-"निश्चय-नय "It is so mathematical that only a few
वस्तु के तात्त्विक (वास्तविक) अर्थ का प्रतिपादन करता hundred men in the world are competent
है और व्यवहार-नय केवल लोक-व्यवहार का।" एक बार to discuss it."
गौतम स्वामी ने भगवान् श्री महावीर से पूछा-"भग-Cosmology Old and New, p 127.
वन् ! फणित-प्रवाही गुण मे कितने वर्ण, गन्ध, रस व २. If two people meet tuice they must have
lived the some time between the two 3. Cosmology Old and New, p. 197. meetings' is true from one point of view ४. तत्त्वार्थ निश्चयो वक्ति व्यवहारश्च जनोदितम् । and not from another. It all depends
-द्रव्यानुयोगतर्कणा घ२३ । upon whether both of them have been ५. फाणियगुलेण भन्ते ! कइ वण्णे कइ गन्धे, कइ रसे, stey.at-home or one has travelled tea कई फामे पण्णत्ते ? गोयमा ! एत्यण दो नया भवन्ति distant part of the Universal and them त निच्छइएणएय। वावहारियणयस्स । वावहारियणस्स came back in the interim.
गोड्डे फाणियगुले, निच्छइयणयस्स पंचवण्णे, दुगन्धे, -Cosmology Old and New, p. 206. पचरसे, प्रठ फासे।
-भगवती, १८-६