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महाबोर का मार्ग
परा व काल ज्ञात न था। साथ ही साह जीजा चित्तौड़ 'खटवड' शब्द पाया जाता है। अतः इस गोत्र के साहु के रहिबासी थे तो ये कारंजा यानी मूल स्थान से सैकड़ो. पुरुषो का इतिहास अन्वेषनीय हुमा है। बहुत जगह नहीं हजारों मील दूरी पर मा बसे थे। मतलब उनको इन्होने कई प्रतिष्ठाएँ की है। उन सबका सकलन करने निजी पूर्वजो की कोति याद थी। बस उसका ही उन्होंने से उनके जीवन पर तथा कार्य पर अच्छा प्रकाश पड़ सिर्फ उल्लेख किया । एक विस्मृत इतिहास को जगाया; सकता है । न कि निर्माण किया। प्रत. लेख का सवत् १५४१ यह बहुत कुछ यह भी सभव है कि वघेरवाल जाति के काल श्री सोमसेन का तो है लेकिन कीर्तिस्तभ के निर्माता भाट होते है, उनके पास हजारो साल की वशावती मिलती साह जीजा या उनके पुत्र का नहीं। वे कितने पूर्व हुए है। उनको प्राप्त कर सशोधन करने से यह कार्य पूरा हो यह विषय सच्चे शिल्पकाल मर्मज्ञो से ठहरा जा सकता है सकता है। माशा है कोटा जिले के विद्वान इसके लिए तथा उनके अन्य कार्यक्षेत्र मे सशोधन कर उनके कर्तृत्व
मागे मायेगे या पूरा सहयोग देगे। इस कार्य से और भी व काल पर प्रकाश पड़ सकता है।
मौलिक इतिहास पर प्रकाश पड़ेगा। अतः जिस दिन इस शिरपुर के प्राचीन हेमाडपंथी श्री अतरिक्ष पार्श्वनाथ कार्य का प्रारंभ होगा वह हमारे लिए सुदिन ठहरेगा। के मन्दिर पर जो शके १३३८ का शिलालेख है उसमे अस्तु ।
महावीर का मार्ग
मोहिनो सिंघवी
महावीर। चले चल ! कि बढ़े चल यह सत्पथ है जिस परतू चल रहा है पही महावीर मार्ग है यही विजेता का पथ है इस पर पवाटिका, यह देख सामने घोल शिखर प्रपती प्रटल असा लिए हुए सदा तूफानों के साथ झूमता हुमा अडिग बहा है।
प्रो साधक। पीछे मुख न मोड़ बह देख कल कल करती सरिता कंकरीले, पथरीले पथ को परवाह न करती हुई बहती चली जा रही है, कहती चली जा रही 'पोछे न मई यही श्रेय है यही प्रेय है यही निभेय है चले चल बढ़े चल